किसी धोखे में न रहिए, हमारे सऊदी घटक दमन के बादशाह
आदिल अहमद
ब्रिटिश पत्रिका आब्ज़रवर ने विशलेषक किनान मालिक का एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें लेखक का कहना है कि धोखे में न रहिए हमारे सऊदी घटक दमन के बादशाह हैं।
सऊदी अरब के भीतर जिस तरह कार्यकर्ताओं को कुचला जा रहा है और मुहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में जिस तरह सऊदी अरब ने यमन पर युद्ध थोप दिया है उससे साफ़ ज़ाहिर है कि सुधार की बातें केवल दिखावा है।
लेखक ने आगे कहा है कि सऊदी अरब में राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं को मौत की सज़ा तक दी जा रही है जबकि उनका अपराध बस यह है कि उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में हिस्सा ले लिया और सरकार के खिलाफ़ नारे लगा दिए तथा प्रदर्शनों की वीडिया बनाकर उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया।
इन कार्यकर्ताओं में इसरा अलग़मग़ाम भी शामिल हैं जो मानिवाधिकार के क्षेत्र में काम कर रही थीं। यह कार्यकर्ता पूर्वी इलाक़ों के रहने वाले हैं जो शीया बहुत इलाक़े हैं। इन लोगों को दो साल से अधिक समय हो गया है कि जेल के भीतर बंद रखा गया है और सरकारी वकील उन्हें फांसी देने की मांग कर रहा है।
आब्ज़रवर का कहना है कि इन कार्यकर्ताओं की विपदा को देखकर साफ़ पता चलता है कि यह दावे पूरी तरह खोखले हैं कि सऊदी अरब में आज़ादी आ गई है। पश्चिम में सूचनाओं का सैलाब आ गया कि सऊदी अरब में नए सुधार हो रहे हैं और विशेष रूप से 2030 विजन के तहत बदलाव किया जा रहा है जो क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान की महत्वाकांक्षी योजना है।
लेखक का कहना है कि यह बात सही है कि बिन सलमान ने महिलाओं को ड्राइविंग की अनुमति दे दी है और उन्हें स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने की इजाज़त भी मिल गई है। यही नहीं सिनेमा भी खुल गए और राक संगीत के कार्यक्रम भी हुए। लेकिन यह भी सही है कि सऊदी अरब के नरेश अब भी कैदियों को यातनाएं दे रहे हैं कार्यकर्ताओं की गरदनें काट रहे हैं और अपनी विनाशकारी नीतियों से तबाही फैला रहे हैं जिसके उदाहरण के रूप में यमन युद्ध को पेश किया जा सकता है।
सऊदी अरब नक पिछले साल दर्जनों की संख्या कार्यकर्ताओं, धर्मगुरुओं, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को गिरफ़तार किया है। इन गिरफ़तारियों के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कहा कि व्यापक और योजनाबद्ध रूप से की जाने वाली यह गिरफ़तारियां बहुत चिंता का विषय हैं।
लेखक का कहना है कि हाल ही में सऊदी अरब ने अपने युद्धक विमानों से यात्री बस पर हमला कर दिया जिसमें दर्जनों की संख्या में स्कूली बच्चे मारे गए और सबसे बड़ी बात यह है कि आतंकवाद और चरमपंथ को बढ़ावा देने में सऊदी अरब सबसे अधिक लिप्त है।
1970 के दशक से ही सऊदी अरब वहाबी विचारधारा का व्यापक रूप से प्रचार कर रहा है। उसने मदरसों और मस्जिदों को फंड दिया तथा अफ़ग़ानिस्तान से लेकर सीरिया तक उसने चरमपंथी संगठनों को धन उपलब्ध कराया है। आतंकी संगठन अलक़ायदा का सरग़ना ओसामा बिन लादेन भी सऊदी नागरिक था और 11 सितम्बर के हमलों में लिप्त अधिकतर हमलावर भी सऊदी नागरिक थे। वर्ष 2009 में अमरीकी सरकार ने एक ज्ञापन जारी किया था जिसमें सऊदी अरब के बारे में लिखा था कि दुनिया के अनेक इलाक़ों में सक्रिय वहाबी आतंकी संगठनों का वित्तीय स्रोत सऊदी अरब ही है और सऊदियों ने इन संगठनों की मदद से पश्चिम में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की।
सऊदी शासन के गंभीर पापों पर पश्चिमी नेता केवल हंस रहे हैं जबकि इसकी क़ीमत यमन के बच्चों और सऊदी अरब के कार्यकर्ताओं को अपनी जानें देकर अदा करनी पड़ रही है।