हलीम कालेज प्रकरण – हसीब साहब ये जांच का नाटक क्यों, अपने लोगो से खुद को क्लीन चिट दिलवा लो न
तारिक आज़मी
कानपुर. शहर के अल्पसंख्यक स्कूल में आज का दिन एक बार फिर हंगामे भरा रहा. अभी तक जो लोग खामोश बैठे तमाशा देख रहे थे वह आज हसीब के साथ खड़े दिखाई दे रहे है. कारण समझने में शायद किसी को वक्त नहीं लगेगा मगर फिर भी लोग उसके साथ है क्योकि हर एक को अपनी नौकरी प्यारी है. क्षेत्रीय चर्चाओ के अनुसार जब लोग अपनी आबरू तक हसीब के भतीजे को दे चुके मगर आवाज़ नहीं निकली तो फिर ये दो चार लोगो का समर्थन क्या मायने रखता है. साहब नया फैसला आया और कल कुछ शिक्षिकाये जाकर हसीब के खिलाफ दर्ज मुक़दमे को खत्म करने के लिये वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से मिलेगी. इसको कहते है पॉवर आप समझ सकते है. उनकी मांग होगी कि विद्यालय में गठित जाँच कमेटी के फैसले के बाद हसीब के प्रकरण में कोई कार्यवाही हो.
कातिल जो हमारा है वह दिलवर तुम्हारा है, तुम झूठ को सच लिख लो अखबार तुम्हारा है
ये शेर हसीब के ऊपर लगभग पूरा का पूरा सेट होता है. खुद को किसी हिटलर के तरह समझने वाले हसीब ने तत्काल प्रबंध तंत्र के लोगो को बुलाया और शिक्षिका के प्रकरण में एक अपने लोगो की जाँच कमेटी का गठन कर दिया. साथ ही साथ सब मैनेज करते हुवे कल तीन अध्यापिकाओ को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पास अपने समर्थन में भेज रहा है. जाँच कमेटी भी ऐसे लोगो की गठित किया गया है जो इस विद्यालय के धन के बंदरबाट में उसका साथ देते है. यही नहीं हसीब के सब रिश्तेदार है और उसके अवैध कामो में संरक्षण देते है. इससे यह साफ़ ज़ाहिर है कि जाँच में क्या होना है. अब आसानी से समझा जा सकता है कि ये जाँच कमेटी किस प्रकार से निष्पक्ष हुई. यही नहीं पीड़ित शिक्षिका को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करके उसका विद्यालय में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया है.
शायद पैसो में बड़ी शक्ति होती है. मगर लोग भूल रहे है कि जिस प्रकार से एक महिला के कपडे सड़क पर फाड़े गए है उसकी जगह अगर उनके परिवार का कोई सदस्य होता तो वह क्या करते. नियमो और कानून के हिसाब से तो इस बर्खास्तगी का कोई मतलब नहीं बनता है मगर जिसकी लाठी उसकी भैस की कहावत आपने ज़रूर सुनी होगी. अन्याय और ज़ुल्म जितना बढ़ जाये मगर एक न एक दिन उसका खात्मा होना निश्चित है. इसको जिसकी लाठी उसकी भैस नहीं तो और क्या कहेगे क्योकि जाँच कमेटी के नाम पर अपने लोगो को बैठा कर जाँच अपने पक्ष में करवाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है.
जो भी हो नियमो की धज्जिया उडाता हुआ यह जाँच कमेटी का फरमान शायद इन्साफ का गला घोट दे. इसको शायद जाँच कमेटी नहीं बल्कि सेटलमेंट कमेटी कहा जा सकता है. अब वक्त क्या करवट लेगा इसका खुलासा हो जायेगा हम अगले अंक में बतायेगे किस तरह हर साल रोज़े में आने वाले करोडो के फंड का क्या होता होगा इस विद्यालय में प्रयोग. जुड़े रहे हमारे साथ.