परिषदीय विधालय में बच्चों के ड्रेस में उड़ाई गई शासनादेश की धज्जियां

फारूक हुसैन

सिंगाही खीरी। परिषदीय विद्यालयों के बच्चों की ड्रेस में शासनादेश की धज्जियां उड़ाई गईं। व्यवस्था थी कि विद्यालय प्रबंध समिति का अध्यक्ष और प्रधानाध्यापक बच्चों की ड्रेस नाप के अनुसार सिलवाए, लेकिन कमीशन के खेल में नेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ ने काम किया। सबसे खास बात तो यह है कि सब कुछ जानने के बाद भी जिम्मेदार चुप बैठे हैं और न ही उनके रुख से पर्दा हट रहा और न ही कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। बच्चों की ड्रेस के लिए जो 200 रुपये प्रति बच्चा जारी किया गया वह महंगाई के चलते पर्याप्त नहीं माना जा रहा है। पिछले कई वर्षों से महंगाई बढ़ गई, लेकिन धनराशि उतनी की उतनी ही है। रही सही कसर कमीशन का खेल पूरा कर रहा है। अब स्थिति यह है कि 200 रुपये के बजाय बच्चों को 120 रुपये से लेकर अधिकतम 150 रुपये तक की ड्रेस पहनाई नहीं उनके ऊपर थोपी जा रही है। विद्यालयों के अध्यापकों का कहना है कि उन्हें तो मजबूर कर ड्रेस दी गई। कहीं स्थानीय नेताओं का दबाव रहा तो कुछ स्थानों पर स्थानीय अधिकारियों की मूक रजामंदी से न चाह कर भी उन्हें ड्रेस खरीदनी पड़ी। ऐसा नहीं है कि जिम्मेदारों को नहीं पता है, लेकिन सभी जानबूझ कर चुप बैठे हुए हैं। अध्यापकों का कहना है कि एक बार गहराई से जांच कर ली जाए तो खेल की पूरी पोल ही खुल जाएगी।

कागजों तक सीमित होकर रह गई जांच टीम

बच्चों की ड्रेस की जांच के लिए शासन स्तर से तो टास्क फोर्स बनाए ही गए थे। अलग-अलग जिलों के अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वहीं जिला स्तर पर भी हर विकास खंड के लिए नोडल अधिकारी बनाकर उनके आधीन हर न्याय पंचायत पर अधिकारी लगाए गए, लेकिन ड्रेस वितरण पूरा हो गया। लोगों का कहना है कि अगर अधिकारी सही से जांच कर लें तो सब कुछ सामने आ जाएगा।

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