आखिर हार गए जिंदगी की जंग वाजपेयी

अंजनी रॉय

भारतीय राजनीति में अजातशत्रु, भीष्म पितामह, शिखर पुरुष जैसे शब्दों से पुकारे जाने वाले देश के 10 वें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आखिरकार आज मौत से हार गए। लम्बे समय से मौत के सामने ‘अटल’ खड़े रहे वाजपेयी अपने चहेतों को शोक संतप्त छोड़ गए। भारत ही नहीं बल्कि पड़ौसी मुल्क से भी वाजपेयी के निधन पर कई नेताओं ने शोक जताया है।

राजनीतिक क्षेत्र में अटल बिहारी वाजपेयी की छवि उन्हें सभी राजनेताओं से अलग करती है। इस कारण पक्ष ही नहीं विपक्ष में उनका मुरीद बन जाता था। उन्हें हर कोई सम्मान देता था। जनसंघ की स्थापना से लेकर प्रधानमंत्री बनने के सफर में वाजपेयी ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन हर कठिनाई का ‘अटल’ इरादों के साथ पार किया।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अगुवाई में अटल बिहारी वाजपेयी भी जनसंघ की स्थापना के समय सन 1951 में जनसंघ के शुरुआती संस्थापक रहे। अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के टिकट पर सन 1957 के चुनावों में तीन-तीन सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से एक साथ चुनाव लड़े। और बलरामपुर से संसद पहुंचे।

वाजपेयी पहले गैर-कांग्रेसी पीएम रहे, जिनकी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। इससे पहले भी वो दो बार पीएम बनें थे, लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे। वाजपेयी की अगुवाई में ही 23 दलों से बनी एनडीए सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

वाजपेयी अन्य सभी दक्षिणपंथी नेताओं की तुलना में ज्यादा सेकुलर माने जाते रहे। उनकी प्रशंसा समूचा विपक्ष भी करता था। ये कारण था कि राजग ने 23 दलों के साथ सरकार बनाई और कार्यकाल भी पूरा किया। विदेश मंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी ने सन 1977 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया। ये देश के लिए गौरवपूर्ण क्षण था।

उन्होंने तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों को दरकिनार कर साल 1998 में पोखरन में परमाणु धमाका कर भारतीय इतिहास को सबसे गौरवपूर्ण क्षण दिया। भारत-पाकिस्तान में तनातनी के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी का पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ से हाथ मिलाना भारत-पाक संबंध को पुनर्जीवित किया।

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