मध्य प्रदेश – ‘भावांतर भुगतान याेजना’ हुई आलोचनाओ का शिकार, भाजपा के पेशानी पर परेशानी का पड़ा बल
अनिल आज़मी
डेस्क. दाल के दामो में आई भारी गिरावट और किसानो को होने वाले नुक्सान ने एक बार फिर मध्य प्रदेश में किसानो के हालात का मुद्दा गर्म कर दिया है. आज स्थिति को यदि देखे तो दाल में उड़द बोने वाले कारोबारियों की उपज सरकारी खरीद नहीं शुरू होने पर औने पौने दामो में बिक रही है. इस दौरान सरकार ने ‘भावांतर भुगतान याेजना शुरू किया है. कही न कही भाजपा सरकार ने इसको शुरू कर किसानो को अपने तरफ आकर्षित करने का मन बनाया होगा. मगर इसकी आलोचनाये अधिक होना शुरू हो गई है. आज किसानो की स्थिति कुछ इस तरह है कि प्रदेश की मंडी में टमाटर का फुटकर दाम 70 रुपया किलो है वही उड़द का दाम किसानो को 15 रुपया किलो मिल रहा है. इसका मतलब कही न कही से होता है कि किसानो को एक किलो टमाटर आज खरीदने के लिये लगभग 5 किलो टमाटर बेचना पड़ेगा.
किसानो द्वारा अपनी फसल के लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर इसी साल किसानों के हिंसक आंदोलन का गवाह मध्य प्रदेश बन चूका है. अब एक बार फिर यह मुद्दा गरमाने की आहट महसूस हो रही है. हालत यह है कि दमोह ज़िले के किसान सीताराम पटेल (40) ने पिछले वर्ष कीटनाशक पीकर कथित रूप से इसलिए जान देने की कोशिश किया, क्योंकि मंडी में उड़द की उनकी उपज को औने-पौने दाम पर ख़रीदने का प्रयास किया जा रहा था. कारोबारियों ने पटेल की उड़द के भाव केवल 1,200 रुपये प्रति क्विंटल लगाए थे, जबकि सरकार ने इस दलहन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था.
पटेल सूबे के उन हज़ारों निराश किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने इस उम्मीद में दलहनी फसलें बोयी थीं कि इनकी पैदावार से वे चांदी काटेंगे. लेकिन तीन प्रमुख दलहनों की कीमतें औंधे मुंह गिरने के कारण किसानों का गणित बुरी तरह बिगड़ गई थी और खेती उनके लिए घाटे का सौदा साबित हो रही थी. मध्य प्रदेश की मंडियों में उड़द के साथ तुअर और मूंग दाल एमएसपी से नीचे बिक रही थी. यह स्थिति कमोबेस आज भी बनी हुई है
किसान नेता सिरोही ने आरोप लगाया था कि भावांतर भुगतान योजना सूबे में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कृषकों के बड़े वोट बैंक को साधने की नीयत से पेश की गई है. उन्होंने दावा किया कि बगैर ठोस तैयारी के शुरू की गई योजना अपनी जटिलताओं और विसंगतियों के कारण खासकर दलहन उत्पादक किसानों को ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा पा रही है.
खैर जो भी हो, भाजपा सरकार को किसानो के वोट की चिंता तो ज़रूर सता रही होगी क्योकि जो योजनाये विधान सभा चुनावों के मद्देनज़र उन्होंने खडी किया था वह योजना अब कही न कही आलोचनाओ का शिकार होने लगी है. अब देखना होगा की शिवराज सरकार किस प्रकार किसानो के गुस्से को ठंडा करती है या फिर इस अग्नि में अपनी सत्ता को जला लेती है.