दुधवा टाइगर रिजर्व बनेगा पर्यटकों का आक्रर्षण  केन्द्र, आज खुलेगें द्वार

पर्यटक पार्क खुलने का बेसब्री से कर रहें इंतजार

फारुख हुसैन

पलिया कलां खीरी। प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी दुधवा टाइगर रिजर्व अपनी साजो सज्जा के साथ पर्यटकों को लुभाने के लिये तैयार हो चुका है और आज पंद्रह नंवबर को दुधवा के द्वार खोल दिये जायेगें। पर्यटक बेसब्री से दुधवा टाइगर रिजर्व के खुलने का इंतजार कर रहे हैं। जिससे जंगल के अंदर खुले में विचरण कर रहे वन्यजीवों और प्राकृतिक के सौंदर्य को महसूस कर सकें देख सके।

आपको बता दे कि विश्व के प्रचलित उद्यानों में से एक उद्यान दुधवा टाइगर रिजर्व भी है जहां देश विदेश से पर्यटक घूमने के लिये आते हैं जहां वो उद्यान की प्राक्रतिक सुंदरता और उद्यान में विचरण कर रहें वन्यजीव और पंक्षी जो अपने क्रिया कलापों और कलरव से बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं और उद्यान की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं ।इसी सुंदरता और मन को लुभा देने वाला उद्यान जो कि लखीमपुर खीरी के भारत नेपाल सीमा के तराई क्षेत्र में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र है ।

यह भारत और नेपाल की सीमाओं से लगे लगभग आठ सौ चौरासी किलोमीटर में फैला विशाल वन क्षेत्र है ।जहां बाघों और बारहसिंगा की भरमार है। बताया जाता है कि यह उद्यान पहले आम उद्यानों की तरह ही था जहां पर पहले वन्य जीवों का लगातार शिकार किया जाता रहा था जिसके फल स्वरूप वन में बारहसिगों का संख्या लगातार कम होती गयी और साथ ही अन्य वन्यजीवों की संख्या पर भी फर्क पड़ा और साथ ही कई प्रजातियां पूरी तरह से विलुप्त भी हो गयी ।ऐसे ही हालातों को देखकर 1 फ़रवरी सन 1977 ईस्वी को दुधवा के जंगलों को राष्ट्रीय उद्यान  घोषित किया गया,परंतु इसके नाम के अनरूप यह क्षेत्रफल के अनुसार काफी कम था जिसके चलते लगभग सन् -1987/88 ईस्वी में किशनपुर वन्य जीव विहार को दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में शामिल कर लिया गया इसके साथ साथ इसे बाघ संरक्षित क्षेत्र भी घोषित कर दिया गया।

इसके उपरान्त बाद में 66 वर्ग कि०मी० का बफ़र जोन को भी सन् 1997 ईस्वी में सम्म्लित कर लिया गया जिसके बाद अब इस संरक्षित क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 884 वर्ग कि०मी० हो गया है। इस वन और इसकी वन्य संपदा के संरक्षण की ओर ध्यान देते हुए सन् 1860 ईस्वी में सर डी०वी० ब्रैन्डिस का आगमन होते ही इसकी शुरूआत कर दी गयी । सन 1861 ई० में इस उद्यान का 303 वर्ग कि०मी० का हिस्सा ब्रिटिश इंडिया सरकार के अन्तर्गत संरक्षित कर दिया गया, साथ ही सन् 1958 ई० में 15॰9 वर्ग कि०मी० के क्षेत्र को सोनारीपुर सैन्क्चुरी घोषित किया गया, जिसे बाद में सन 1968 ई० में 212 वर्ग कि०मी० का विस्तार देकर दुधवा को सैन्क्चुरी का दर्ज़ा मिला।जिसके बाद वनयजीवों के शिकार पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गयी खाशकर जिसकी वजह मुख्यता बारासिंहा प्रजाति के संरक्षण को ध्यान में रख कर किया गया। तब इस जंगली इलाके को नार्थ-वेस्ट फ़ारेस्ट आॅफ़ खीरी डिस्ट्रिक्ट के नाम से जाना जाता था किन्तु सन् 1937 में बाकायदा इसे नार्थ खीरी फ़ारेस्ट डिवीजन का खिताब भी हासिल हुआ।जिससे वन्यजीव प्रेमियों में बहुत ही खुशी दिखाई दी ।

वैसे दुधवा में हिरनों की पाँच प्रजातियां पायी जाती हैं जिसमें  चीतल, सांभर, काकड़, पाढ़ा और बारहसिंगा है और साथ ही अन्य वन्यजीवों में बाघ, तेन्दुआ, भालू, स्याही, उड़न गिलहरी, हिस्पिड हेयर, बंगाल फ़्लोरिकन, हाथी, सूँस (गैंजैटिक डाल्फ़िन), मगरमच्छ, लगभग 400 पक्षी प्रजातियां एंव सरीसृप, उभयचर, तितिलियों के अतिरिक्त दुधवा के जंगल तमाम अज्ञात व अनदेखी प्रजातियों का घर है।परंतु जानकारों के अनुसार

इस दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना के समय यहाँ बाघ, तेंदुए, गैण्डा, हाथी,बारहसिंगा, चीतल, पाढ़ा, कांकड़, कृष्णमृग,चौसिंगा, सांभर, नीलगाय, वाइल्डडॉग, भेड़िया, लकबग्घा, सियार, लोमड़ी, हिस्पिड हेयर,जंगली भैसा, रैटेल, ब्लैक नेक्ड स्टार्क, वूली नेक्ड स्टार्क, ओपेन बिल्ड स्टार्क, पैन्टेड स्टार्क, बेन्गाल फ़्लोरिकन, पार्क्युपाइन, फ़्लाइंग स्क्वैरल के अतिरिक्त पक्षियों, सरीसृपों, उभयचर,

मछलियाँ व अर्थोपोड्स की लाखों प्रजातियाँ निवास करती थी और साथ  पहले दुधवा की लाइफ लाइन कहीं जाने वाली सुहेली नदी जिसमें न जाने कितने प्रकार की मछलियां और साथ ही न जाने कितने प्रकार की जलीय जीव जन्तु थे जो नदी में अक्सर अठखेलियां करते दिखाई दे जाते थे।परंतु सुहेली नदी में सील्ट जमा होने के कारण और उसकी सफाई के अभाव के चलते उसका असतित्व ही मिटने से सब समाप्त जैसा हो गया और साथ ही दुधवा की  नकौआ  नदी भी है परंतु यदि उस पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन उसका भी असतित्व खत्म हो जायेगा ।इसके साथ ही उद्यान में मुख्यतः साल और शाखू के वृक्ष बहुतायत से मिलते है ।दुधवा इसके बाद वन्यजीव प्रेमियों की गुजारिश के चलते यहां वन्यजीवों के बचाव की भी योजनायें तैयार की जाने लगी ।और इन्हीं परियोजनाओं में बाघ परियोजना,गैंडा परियोजनाओं बनाई गयी और इसके साथ साथ और भी अन्य योजनाओं पर गौर किया जाने लगा ।परियोजनाओं के बनने से इस की जनसंख्या व्रद्धि में फर्क पड़ा ।

फिलहाल दुधवा टाइगर रिजर्व के खुलने से पहले ही आनलाइन बुकिंग के माध्यम से यहां पहले दिन ही काफी मात्रा में पर्यटक उद्यान के अन्दर जाकर आन्नद उठा सकेगें। दुधवा उद्यान स्थापना के समय से ही पर्यटकों, पर्यावरणविदों और वन्य-जीव प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। थारू हट और सफारी की सुविधाएं पर्यटकों के आकर्षण और कौतूहल के प्रमुख केंद्र हैं। पर्यटकों के रूकने के लिए दुधवा में आधुनिक शैली में थारू हट उपलब्ध हैं। रेस्ट हाउस- प्राचीन इण्डों-ब्रिटिश शैली की इमारते पर्यटकों को इस घने जंगल में आवास प्रदान करती है, जहाँ प्रकृति दर्शन का रोमांच दोगुना हो जाता हैं।

दुधवा टाइगर रिजर्व के वनों में ब्रिटिश राज्य से लेकर आजाद भारत में बनवायें गये लकड़ी के मचान कौतूहल व रोमांच उत्पन्न करते हैं।जिसणें एक मचान ट्री हाउस भी है जिसका निर्माण दुधवा टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक पीपी सिंह ने पर्यटकों के लिए लगभग छ: वर्ष पूर्व करवाया गया था ।यह ट्री हाउस विशालकाय साखू पेड़ो के सहारे लगभग पचास फुट ऊपर बनाया गया है। डबल बेडरूम वाले इस ट्री हाउस को सभी आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है। लगभग चार लाख रूपए की लागत से बना हुआ शानदार ट्री हाउस पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बिंदु बना हुआ है। जानकारी होने पर पर्यटक इसे देखे बिना चैन नहीं पाते हैं ।

थारू संस्क्रति कभी राजस्थान से पलायन कर दुधवा के जंगलों में रहा । यह समुदाय राजस्थानी संस्क्रुति की झलक प्रस्तुत करता है, इनके आभूषण, नृत्य, त्योहार व पारंपरिक ज्ञान अदभुत हैं, राणा प्रताप के वंशज बताने वाले इस समुदाय का इण्डों-नेपाल बार्डर पर बसने के कारण इनके संबध नेपाली समुदायों से हुए, नतीजतन अब इनमें भारत-नेपाल की मिली-जुली संस्कृति, भाषा व शारीरिक सरंचना हैं। परंतु समय के बदलाव के चलते उनमें भी काफी बदलाव आया है परंतु फिर भी आपको उस संस्क्रति के कुछ अंश जरूर देखने को मिलेगें ।

ठहरने का स्थान 

दुधवा में ठहरने के लिये थारूहट दुधवा, वन विश्राम भवन बनकट, किशनपुर, सोनारीपुर, बेलरायां, सलूकापुर , सठियाना में ठहर सकते हैं ।दुधवा टाइगर रिजर्व बनेगा पर्यटकों का आक्रर्षण  केन्द्र,आज खुलेगें दुधवा के द्वार।पर्यटक पार्क खुलने का बेसब्री से कर रहें इंतजार

महावीर कौजलिग डी डी दुधवा टाइगर रिजर्व ने हमसे बात करते हुवे बताया कि पर्यटन सत्र की पूरी तैयारियां हो चुकी है और दुधवा पूरी साज सज्जा के साथ पर्यटकों को लुभाने के लिए तैयार है और इस बार पर्यटकों को दुधवा में काफी बदलाव दिखाई देगा जिससे पर्यटक रोमांचित और प्रशंसित होंगे। जिसमें गाइडों के साथ साथ वन कर्मी भी पूरी तैयारी के साथ पर्यटकों को वन्यजीवों और प्राकृतिक के लुभावने दृश्य दिखाने को तैयार है।

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