भक्ति के अपार पर्व का प्रतीक है छठ मईया पर्व

प्रदीप दुबे विक्की

ज्ञानपुर(भदोही) चार दिवसीय सूर्य उपासना का कठिनतम व्रत होता है छठ पूजा। उपनिषद, पुराणों में भी सूर्य उपासना का उल्लेख है । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी से प्रारंभ हुआ यह व्रत सप्तमी को सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त हो जाता है ।स्वच्छता व शुद्धता के साथ प्रथम दिन व्रती महिलाएं नहाय- खाय के साथ ही व्रत शुरू करती हैं । शाम के समय महिलाएं लौकी की सब्जी, चने की दाल व चावल खाकर रहती हैं । इसके पूर्व प्रातः काल सूर्य देव को पूजा पाठ कर आमंत्रण देती हैं ।और इस कठिन व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके साथ ही प्रार्थना भी करती हैं , कि इस कठिन व्रत को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें । मान्यता है , कि इस कठिन व्रत करने से घर में सुख शांति व समृद्धि आती है । सच्चे मन से व्रत करने पर नव विवाहिताओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।कुंवर गंज वार्ड नंबर 10 की निवासिनी उषा पटवा ने बताया कि शादी के बाद से ही वह इस व्रत को कर रही हैं । इससे घर में सुख शांति आती है । उनके घर में सदैव हंसी-खुशीका माहौल बना रहता है ।सूर्यदेव ही एक ऐसे देवता है जो प्रत्यक्ष हैं ।प्रतिदिन हमें दर्शन देकर अनुग्रहित करते हैं ।इनकी कृपा से ही धरती पर जीवन है ।इसी तरह गोपीगंज निवासिनी मंजू मोदनवाल ने बताया कि स्वच्छता शुद्धता व अंतकरण की शुद्धता का व्रत है छठ पर्व । प्रथम दिन नहाय-खाय के दिन स्वच्छता व शुद्धता पर विशेष जोर दिया जाता है। दूसरे दिन खरना को नमक का त्याग कर दिया जाता है ।इस दिन नदी और सरोवर के तट पर जहां पूजा करनी है वहां पर बेदी बना कर पूजा पाठ कर दीपक जलाते हैं । साथ ही कन्या व गाय को खीर पूडी का भोग लगाकर ही इसे ग्रहण किया जाता है। और फिर शुरू हो जाता है निर्जला व्रत जो चौथे दिन सूर्य देव को अर्ध्य देने के साथ समाप्त होता है ।

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