मणिपुर फर्जी मुठभेड़ मामला – केंद्र की याचिका हुई ख़ारिज

जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ही करेगी सुनवाई

आफताब फारुकी

नई दिल्ली : मणिपुर फर्जी मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सेना के करीब 300 जवानों व पूर्व सैन्यकर्मियों व केंद्र की याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ही इस मामले की सुनवाई करती रहेगी। दरअसल सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि सुनवाई कर रही पीठ ही मामले की सुनवाई जारी रखे या फिर कोई और बेंच सुनवाई करे।

गौरतलब है कि सेना के करीब 300 जवानों व पूर्व सैन्यकर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई जस्टिस लोकुर और जस्टिस ललित की बेंच से न कराने का आग्रह किया था। याचिका में कहा गया था कि कोर्ट की ओर से आरोपियों को हत्यारा कहने से जवानों के अंदर भय और पक्षपात की भावना घर कर गई है। अटॉर्नी जनरल ने सेना और मणिपुर पुलिस की याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीबीआई जांच का आदेश सैन्य बलों की नैतिकता गिराने वाला है क्योंकि सेना वहां बेहद कठिन हालात में काम कर रही है।

अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर भी ऐतराज जताया जिसमें जस्टिस लोकुर और जस्टिस ललित की बेंच ने कहा था कि जिन लोगों ने कत्ल किया है, वो खुलेआम घूम रहे हैं। मणिपुर पुलिस की तरफ से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले को जस्टिस लोकुर और जस्टिस ललित की बेंच को नहीं सुनना चाहिए। इस बात पर जस्टिस ललित ने कहा कि जो टिप्पणी की गई थी वो किसी पुलिसवाले के खिलाफ नहीं थी। अगर आप चाहते हैं तो हम आदेश जारी कर सकते हैं।  इस मामले में केंद्र ने कहा कि सेना के जवान जीवन और मौत से लड़ रहे हैं। अगर कोर्ट की ये टिप्पणी है, तो उनका मोरल गिरता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि आप ये कहना चाहते हैं कि हम केस को मॉनिटर न करें।

इसके जवाब में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस मामले की सुनवाई किसी दूसरी बेंच में हो और सीबीआई स्वतंत्र हो कर जांच करे। उधर, मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये कोर्ट का काम नहीं है कि वह आदेश दे कि किसे गिरफ्तार करना है। ये जांच एजेंसी का काम है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट मणिपुर में अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं के 1,528 मामलों की जांच के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा है। कोर्ट ने पिछले साल 14 जुलाई को एक एसआईटी गठित की थी और एफआईआर दर्ज कराने और कथित अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं के मामलों की जांच का आदेश दिया था। मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षाबलों और पुलिस पर कथित रूप से 1528 फ़र्ज़ी मुठभेड़ और अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं का आरोप है।

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