झूठा हुआ है खुलासा, नानी माँ के तरह वाराणसी के एसएसपी कहानी सुना रहे है – स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद

तारिक आज़मी

वाराणसी. काशी के लंका थाना क्षेत्र के रोहित नगर इलाके में 19 दिसम्बर 2018 को मलबे में मिले सैंकड़ों शिवलिंगों के सन्दर्भ में वाराणसी पुलिस द्वारा किये गये खुलासे को आज स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद ने मात्र लीपा पोती की कार्यवाही बताते हुवे कहा है कि वाराणसी के एसएसपी ने नानी माँ के तरह मनगढ़ंत कहानी सुना कर मामले का पटाक्षेप करने का दावा किया है जो सर्वथा झूठा दावा है। उन्होंने कहा कि जो कहानी काशी की पुलिस ने सुनाई है उसकी आशा हमें पहले से ही थी। इसीलिए हम न्यायिक जांच की मांग कर रहे थे। हमारी मांग अनवरत जारी रहेगी और इसके लिये हम न्यायालय की भी शरण लेंगे।

ज्ञातव्य हो कि वाराणसी एसएसपी ने कल इस घटना का खुलासा करते हुवे बताया था कि उक्त सभी शिवलिंग मदनपुरा के एक मकान जो सुमन मिश्रा के नाम है की छत गिर जाने के कारण वहा से फेके गये मलवे में से आया है और उसका विश्वनाथ कारीडोर से कोई लेना देना नही है। इस खुलासे के बाद आज स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद के साथ कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय और आम आदमी पार्टी के संजीव सिंह ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेस का आयोजन किया था। इस प्रेस कांफ्रेस में संजीव सिंह ने वाराणसी एसएसपी के बयान को इंगित करते हुवे कहा कि वो रासुका लगा दे, हम डरने वालो में नहीं है। मगर घटना का सही खुलासा करे।

क्या कहा अजय राय ने

प्रेस कांफ्रेस में पूर्व कांग्रेस विधायक अजय राय ने कहा कि हम धर्म का राजनैतिक फायदा नही लेते है। अगर हमको राजनैतिक फायदा लेना होता तो हम पूर्वांचल की सबसे बड़ी दुर्गा पूजा का आयोजन करते है और निरंतर करते आ रहे है। हमारे लिये धर्म आस्था का विषय है न कि राजनितिक है। धर्म की मार्केटिंग करने वाले भाजपा के लोग है जो जनवरी में होने वाले प्रवासी सम्मलेन को सिर्फ कुम्भ की मार्केटिंग कर के राजनितिक फायदा लेने के लिये प्रवासी भारतीय सम्मलेन दिसंबर में करवा रहे है।

उन्होंने कहा कि जो धर्म का राजनितिक फायदा लेते है वह धर्म की मार्केटिंग करते है। हम धर्म को आस्था का हिस्सा मानते है। कहा कि मैं इसी काशी में पैदा हुआ हु, यही पला बढ़ा और खेला कूदा हु अगर मुझको धर्म का राजनैतिक फायदा लेना होता तो मैं पहले ही लेता। उन्होंने कहा कि भाजपा कारीडोर बना रही है तो बनाये मगर मंदिर न तोड़े मंदिर से हमारी आस्था जुडी है।

क्या कहा स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद ने

वही स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद ने पुलिस की पूरी कार्यशाली को प्रश्नों के घेरे में खड़ा करते हुवे कहा कि वाराणसी के एसएसपी ने सिर्फ नानी माँ के तरह एक कहानी सुना दिया और मामले की लीपापोती कर डाली। हमने उनके बताये हुवे मकान का जाकर निरिक्षण किया है और वहा की आम जनता से भी हमने बात किया है। पुलिस अधीक्षक ने कुछ ज्यादा जल्दबाजी दिखाया और मामले की लीपापोती कर डाली है। उन्होंने मीडिया पर भी निशाना साधते हुवे कहा कि इस मामले में मीडिया ने अपना किरदार सही नही निभाया और किसी भी मीडिया ने पुलिस खुलासे के सम्बन्ध में स्थल निरिक्षण न करके पुलिस की कहानी को जैसी मिली वैसी ही जनता के सामने परोस दिया। ये कही न कही मीडिया की विश्वनीयता पर भी सवालिया निशाँन लगा रहा है। उन्होंने इस खुलासे के विरुद्ध बिन्दुवार मीडिया से बताया।

क्या कमी थी पुलिस के खुलासे में जो स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद ने गिनवाया

स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद ने कहा कि घटना 19 दिसम्बर 2018 को पूर्वाह्न ही पुलिस के संज्ञान में आ गई थी जब वे  मौके से शिवलिंग गाड़ियों में भरकर लंका थाने ले गए थे। यदि मलबा बताई गई जगह से ही गया था तो फिर इतनी सी जानकारी करने में वह भी इतने संवेदनशील मामले में पुलिस को 50 घण्टे से भी अधिक समय क्यों लगा ? मूर्तियों के लंका थाने पहुंचने पर ही वाराणसी विकास प्राधिकरण के तहसीलदार अविनाश द्वारा उनको तत्काल गंगा में विसर्जित करने की कोशिश क्यों की गई ? यदि मूर्तियां बताए गए मन्दिर की ही हैं तो फिर किस आधार पर सरकारी विषेशज्ञ जिसका उल्लेख विशाल सिंह द्वारा 20 दिसम्बर 2018 की शाम दिए गए वक्तव्य में है यह कह रहे थे कि मूर्तियां चुनार से लाई गई और निर्मित/अर्धनिर्मित प्रतीत होती हैं ? यह कैसे मान लिया जाए कि इतना अन्धेरा था कि मलबा फेंकने वालों को मूर्तियां दिखी ही नहीं, पर वे बाकायदा मलबा भरते और उठाते रहे? यह भी कैसे समझा जाए कि अॅंधेरे के कारण मजदूरों को मूर्तियां दिखीं नहीं। एक दो मूर्ति होती तो बात अलग थी। दो सौ के करीब मूर्तियां और उनमें भी कोई तो खूब भारी हैं। मजदूर सामान्यतः बेलचे से मलबा खॅंचिया में भरते हैं। कैसे उनके बेलचे में वे आ पाई और उन्हें पता ही न चला ? जबकि कुछ मूर्तियाँ तो इतनी वजनी हैं कि उन्हें कोई एक व्यक्ति आसानी से उठा ही नहीं सकता।

स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद ने कहा कि यदि मलबा की जगह में अॅंधेरा था तो मूर्तियां उन्हें खॅंचिया में, गधे की पीठ पर लादते समय या ट्रैक्टर की ट्राली में लोड करते समय दिख जानी चाहिए थी। क्या इन सभी स्थानों में अॅंधेरा था ? स्वयं को उच्चाधिकारी और जिम्मेदार व्यक्ति मानने वाले विशाल सिंह ने 20 दिसम्बर 2018 को सायंकाल अर्थात् घटना के प्रकाश में आने के लगभग 30 घण्टे बाद वीडियो वक्तव्य दिया है जिसमें वे कहते दिख रहे हैं कि मूर्तियां सोनारपुरा की दुकान से ली गई और राजनैतिक लाभ के लिए मलबे में फेंकी गई लगती है तो फिर यह गणेश महाल के मन्दिर की कैसे हो गईं ? क्या विशाल सिंह को गलत जानकारी पुलिस द्वारा दी गई थी ? या फिर विशाल सिंह अलग से कोई जांच करवा रहे थे ? या फिर उन्होंने कहानी गढ़ने की शुरुआत कर दी थी?

उन्होंने मीडिया को बताया कि हमने जांच की अवधि में ही दिनांक 20 दिसम्बर 2018 को सायं 5 बजे प्रेस कान्फ्रेन्स करके कुछ सबूत सामने रखे थे। रोहित नगर के मलबे में से जो टाइल्स के टुकड़े मिले थे ठीक उसी पैटर्न के टाइल्स चित्रा सिनेमा के सामने डम्प मलबे से भी उठाये थे और यह भी बताया था कि इसी तरह का टाइल्स दुर्मुख विनायक मन्दिर की तोड़ी जा रही दीवाल के शेष अंग में आज भी लगा है। इतने बड़े सबूत की जांच की अधिकारियों ने क्यों उपेक्षा की ? हमने यह भी कहा था कि रोहित नगर के मलबे की प्रकृति (पत्थर, ईट और मिट्टी) चित्रा सिनेमा के सामने डम्प कोरिडोर के मलबे से मिलती है। तब क्यों नहीं दोनों जगह के मलबे का तुलनात्मक परीक्षण किया गया और इतने बड़े तथ्य की उपेक्षा कर निष्कर्ष सामने रख दिया गया?

उन्होंने कहा कि गणेश महाल के जिस मकान से मलबा फेंका गया बताया गया है प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया है कि वहां मन्दिर की दीवार पर कोई टाइल्स नहीं लगाए गए थे। गणेश महाल के जिस मकान का मलबा पुलिस की कहानी में फेंका गया बताया गया है वह इतना बड़ा नहीं कि उसमें इतने शिवलिंग स्थापित रहे हों। प्रश्न यही है कि आधे बिस्वा के करीब के इस प्लाट में किस तरह इतने शिवलिंग स्थापित रहे हैं? उन्होंने बताया कि आज दोपहर हम स्वयं स्थान के निरीक्षण के लिए गए थे। गणेश महाल के लोगों ने भी हमसे बातचीत में बताया कि वहां इतने शिवलिंग स्थापित नहीं थे और इतने शिवलिंग वहां कभी देखे नहीं गए थे तो फिर पुलिस किस आधार पर वहां शिवलिंगों के होने की बात कह रही है ? पुलिस ने अपनी कहानी के समर्थन में कोई सबूत, कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं प्रस्तुत किया है जिससे उनकी कहानी को बल मिलता हो। पुलिस ने यह भी नहीं बताया कि रोहित नगर के प्लाट पर कितनी ट्राली मलबा गणेश महाल के उक्त मकान से ले जाया गया और लगभग कितनी ट्राली मलबा अभी भी वहा विद्यमान है। इसका आकलन क्यों नहीं किया गया ?

उन्होंने कहा कि गणेश महाल के जिस भवन का मलबा बताया गया उसके मालिकों और मलबा ढोने वाले मजदूरों के विरुद्ध क्या कार्यवाही की गई? जबकि उनके इस कृत्य से बहुत बड़ी अशान्ति फैल सकती थी क्योंकि हिन्दू देवताओं को नीचा दिखाने जैसा काम करके धार्मिक उन्माद ये फैला रहे थे। जिस दिन मलबा रोहित नगर में मिला था उसी दिन विशाल सिंह का वक्तव्य आ गया था कि मलबा विश्वनाथ कोरिडोर का नहीं है। इस वक्तव्य का आधार क्या था ? जिस गणेश महाल के मकान में से मलबे के साथ शिवलिंग फेंके जाने की कहानी पुलिस द्वारा बताई गई है उसके मालिकों ने तत्काल सामने आकर यह बात क्यों नहीं कही कि ये मूर्तियां हमारे यहां की हैं और मजदूरों की भूल से और अॅंधेरे के कारण मलबे के साथ चली गई हैं ? सारे शहर में लोग दुःखी होते रहे और इन लोगों ने क्यों स्पष्टता नहीं की?

उन्होंने कहा कि यदि यह कहें कि उन्हें पता ही नहीं चला कि उनके यहां की कुछ मूर्तियां मलबे में चली गई हैं तो इसका मतलब उनके यहां हजारों मूर्तियां होनी चाहिए। क्योंकि इसी सूरत में किसी को पता नहीं चल सकता कि हजारों की संख्या में मूर्तियां हों तो फिर डेढ़ दो सौ इधर उधर हो जाएं तो पता न चले। तो फिर वहां की हजारों मूर्तियां कहां हैं ? पुलिस ने कहानी तो खूब बनाई पर जिस व्यक्ति के मकान से इतनी सारी मूर्तियां मलबे में फेंक दी गई हैं न तो उसे गिरफ्तार किया है, न ही उसे प्रस्तुत किया है और न ही उसका कोई बयान जारी किया है। जब इतनी बड़ी घटना के हो जाने पर क्षेत्रीय लोग, पार्षद, नेता और धार्मिक लोगों ने उस स्थान पर पहुंच कर लोगों की भावना को संभाला तो फिर पुलिस ने उन पर अशान्ति फैलाने का आरोप लगाकर कार्यवाही करने की बात वह भी रासुका जैसी कार्यवाही करने की बात क्यों फैलाई ? जिस व्यक्ति के घर से इतनी बड़ी घटना की गई और जिस ठेकेदार ने संवेदनशील मामले को घटित किया उसके ऊपर अभी तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं ?

उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुवे कहा कि गणेश महाल वाला मकान जिस व्यक्ति का है उससे हम लोगों ने सम्पर्क करने का प्रयास किया। वह व्यक्ति डरा हुआ है। क्या शासन उसे बलि का बकरा बना रहा है ? आज स्थान का निरीक्षण करने के दौरान हम सबने देखा कि उक्त मन्दिर की स्थापित और मन्दिर के परिसर में स्थित सूखकर गिर चुके पीपल के पेड के चबूतरे पर स्थापित मूर्तियाँ आज भी वहाँ पर हैं। जिनकी संख्या मुख्य शिवलिंग और नन्दी को लेकर 34 है। यह कहा जा रहा है कि वहाँ बहुत जर्जर मन्दिर और बरामदा था जबकि वहाँ मन्दिर तो था बरामदे की बात तो वहाँ के किसी ने नहीं बताई। कहा जा रहा है कि बरामदे के मलबे को सुमन मिश्र द्वारा ठेके पर साफ कराया जा रहा था। उक्त मलबे में छत गिरने के कारण तमाम शिवलिंग क्षत-विक्षत हो गये थे जो अन्य पत्थर के टुकडों के साथ मिल जाने के कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि कोई भी मूर्ति छत के गिरने से खरोच तक नहीं आई है। क्षेत्र के लोगों ने बार-बार इस चमत्कार का उल्लेख किया।

इस पत्रकार वार्ता में प्रमुख रूप से अजय राय पूर्व विधायक,  संजीव सिंह आप नेता, विश्व्नाथ मन्दिर महंत परिवार के राजेन्द्र तिवारी, महाराजमणि सनातन जी महाराज, कुवँर सुरेश सिंह, शम्भूनाथ बाटुल, यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी, सतेंद्र मिश्रा, सुनील शुक्ला, मसत्य प्रकाश श्रीवास्तव, प्रकाश पाण्डेय, डॉ अभय शंकर तिवारी, पण्डित रवि त्रिवेदी, संजय पाण्डेय प्रेस प्रभारी, अजय पाण्डेय, मृदुल कुमार ओझा आदि लोग प्रमुख रूप से सम्मलित थे।

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