सरकारी उपेक्षा का शिकार पुरातन काल का यह दुर्गा मंदिर
फारुख हुसैन
सिंगाही खीरी। नैपाल बॉडर की सीमाओं से लगे तराई क्षेत्र सिंगाही का अपना अनोखा पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व रहा है। जिले की शायद ही ऐसी कोई तहसील हो जहां पर ऐतिहासिक इमारतें अपनी उत्कृष्टता के चलते आकर्षित न करती हों लेकिन इसे क्षेत्र की बदनसीबी ही कहेंगे कि प्रदेश सरकार ने र्प्यटन का दर्जा तो दे दिया बाद मे प्रदेश सरकार की नजरें इनायत नहीं हुईं। इससे क्षेत्र के ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल न सिर्फ देश व प्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर उभरने से वंचित रह गए बल्कि अब तो अपने वजूद को समेटने के लिए खुद से जंग लड़ते नजर आ रहे हैं। क्षेत्र के प्राचीन होने के अनेक साक्ष्य मौजूद हैं। सिंगाही स्टेट मे प्राचीन दुर्गा मन्दिर आज भी है।
फिर भी पुरातत्व विभाग की इस पर नजर नहीं पहुंची है न ही विभाग की ओर से सर्वेक्षण किया गया जिस कारण इस मन्दिर का जीर्णाेद्धार नहीं हो सका है। सिंगाही का प्राचीन दुर्गा मन्दिर करीब 140 साल पुराना बताया जाता है। कहते हैं कि जिस स्थान पर दुर्गा मन्दिर बना है वहां पर डेढ़ सौ साल पुराना पीपल का पेड़ था। मां दुर्गा जी की मूर्ति की आकृति निकली थी। उस दौरान राजाओं का राज चलता था। ग्रामीणों ने जब पीपल के पेड़ में मां दुर्गा की आकृति देखी और पूजा अर्चना शुरू हो गयी उसके बाद मां दुर्गा की मान्यता हो गयी। दूर -दराज से लोग दर्शन करने के लिए आने जाने लगे।
धीरे-धीरे ग्रामीणों ने यहां पर भव्य मन्दिर निर्माण की येाजना बनाई। कुछ निर्माण हुआ भी लेकिन उसके बाद काम रुक गया। सालों बाद पूर्व विधायक राम चरन शाह ने ग्रामीणों की मदद से मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ करया और
मंदिर का निर्माण होने के बाद वहां पूजा अर्चना शुरू कर दी गयी। आज भी यह मन्दिर दुर्गा मंन्दिर के नाम से प्रचलित है। जिस पीपल के पेड़ में दुर्गा जी की मूर्ति की आकृति बनी थी। वह पीपल का पेड़ आज भी मन्दिर में है। श्रद्धालु जब पूजा अर्चना करने जाते है तो सर्व प्रथम पीपल के पेड़ की पूजा करते है। इस मंदिर में 1995 में पूर्व विधायक स्वर्गीय राम चरन शाह ने शतचण्डी यज्ञ का आयोजन कराया गया था। पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते यह प्राचीन दुर्गा मन्दिर का जीर्णाेद्धार नहीं हो सका।