तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – कडवा सच है कि अपने रहनुमाओं की अदा पर फ़िदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो

तारिक आज़मी

शहादत को अगर राजनितिक रूप दिया जाने लगे तो ये देश के लिये खतरनाक हो सकता है। मुल्क किसी एक का नही है, ये मुल्क किसी एक दल अथवा धर्म का नहीं है। ये मुल्क हर हिन्दुस्तानी का है। सबको इससे प्रेम है। मुझको भी है और आपको भी है। हम या आप कभी नही चाहते है कि मुल्क का बुरा हो। शायद इसीलिये हर पांच साल में एक दिन हम अपना काम धाम छोड़ कर अपने रहनुमा को चुनते है। हमको पता होता है कि जिस रहनुमा को हम चुन रहे है ये जीत जाने के बाद हमसे कम से कम बीस फिट की दूरी से मिलेगा। मगर फिर भी हम अपने मुल्क से अपने मोहब्बत का इज़हार करने के लिये वोट देने जाते है।

अब देखिये न पुलवामा के कांड को। इसको कांड नही कहा जा सकता है बल्कि एक दहशतगर्द जहान्नामियो द्वारा किया गया दहशत का कायरतापूर्ण कार्य कहा जा सकता है। पूरा मुल्क उबाल खा रहा है। लोग कैंडल मार्च निकाल रहे है। कही पाठ हो रहे है तो कही कुरआन खानी। मंदिरों से भीड़ निकल कर शहीदों को श्रधांजलि दे रही है तो मस्जिदों के नमाज़ी भी नमाज़ पढ़कर सड़क पर निकल कर पकिस्तान मुर्दाबाद के नारे बुलंद कर रहे है। पाकिस्तान की इस नापाक हरकत का मलाल सबको है। अगर सिंह ने शहादत पाई है तो नासिर ने भी शहादत पाई है। किसी धर्म मज़हब से ऊपर है मुल्क ये बात जग ज़ाहिर है। मगर आज अचानक सोशल मीडिया पर कुछ चिरकुटपने की हरकते देखने को मिल रही है। फेक आईडी बनाकर अथवा फर्जी बातो को पोस्ट बना कर लोग नफरत के सौदे करने पर तुले है।

कल की ही बात है मैं एक मुस्लिम बाहुल इलाके के चौराहे पर खड़ा था। एक जुलूस निकला जिसमे लगभग 200 मुस्लिम युवक थे। सबके हाथो में मोमबत्ती थी और जुबा पर पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा था। हाथो में तिरंगा था और लबो पर पाकिस्तान मुर्दाबाद था। उनके चेहरे उनके लफ्जों का साथ दे रहे थे। उनके दिलो में पाकिस्तान के लिये नफरत चेहरे से साफ़ समझ आ रही थी। लगभग एक किलोमीटर की परिक्रमा कर वह जुलूस उसी चौराहे पर वापस आकर पाकिस्तान का पुतला फुकता है। नारे बुलंद थे पाकिस्तान मुर्दाबाद। चंद लम्हे बीते थे। लगभग 25-30 लोगो का जुलूस और आता है दुबारा उसी इलाके से होते हुवे। इस बार जुलूस में बहुसंख्यक लोग थे। ये युवा थे। उसने हाथो में भी तिरंगा था। उनके शब्दों में भी पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा था। मगर तरीके थोडा अलग थे। बीच चौराहे पर खड़े होकर मुस्लिमो के बीच उनके नारे रास्ता बदल रहे थे। नारे में एक शब्द और जुड़ गया था कि हिंदुस्तान में रहना होगा तो वन्देमातरम कहना होगा, अब आप बताओ ये कौन सा नारा था या कौन सी श्रधांजलि थी। इसमें कई और उत्तेजक नारे थे। मगर हम उनके दिलो की मंशा को भी समझ सकते है। मेरे आस पास दो चार और खड़े थे जिनके कैमरे शुरू थे। तो छपास रोग के कारण जज्बा अधिक था। आखिर जब हम सभी ने एक इशारा करके कैमरा नीचे किया और शांत खड़े हो गये तो शायद छपास रोग का इलाज संभव हुआ और जुलूस अपने सही तरीके पर आ गया,

क्या करियेगा साहब, वो एक शेर दुष्यंत का है न कि अपने रहनुमाओं की अदा पर फ़िदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो। अब आज ही बलिया जनपद के एक समाचार पर आपका ध्यान दिलाता चालू। एक फेसबूक यूजर को बलिया के पकड़ी थाना क्षेत्र के बनकटा का रहने वाला था ने फेसबुक पर पाकिस्तान जहा शायद उसकी अम्मा का मायका रहा होगा की जय कहना शुरू कर दिया और सैनिको के लिये अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहा था। अचानक विरोध का स्वर तेज़ होता गया और मामला थाना चौकी तक पहुच गया। थाने में मुकदमा दर्ज होता है देशद्रोह का। जब पुलिस छापा मारती है तो वो जो खुद को फेसबुक का शूरवीर बन रहा था भाग जाता है। क्षेत्रीय चर्चाओ की माने तो भगा दिया जाता है। खैर हमको क्या वह भागे या भगा दिया जाए, हम मुद्दे की बात करते है। मुद्दा ये रहा कि इतने बड़े खुद को शूरवीर समझने वाले साहब एक पाण्डेय जी के सुपुत्र (कुपुत्र) निकले। मेरा यहाँ इस घटना का उल्लेख करने का केवल एक कारण है कि देशद्रोह किसी धर्म और जाती द्वारा नही सिखाया जाता है बल्कि कुछ कुत्ते होते ही है।

अब आज ही मैं रविश कुमार का ब्लाग पढ़ रहा था। रविश जी से काफी कुछ सीखने को मिलता है। उनके शब्द शायद कल सही थे कि दूसरा रविश नही होगा। मैं अक्सर रविश कुमार के लेख और ब्लाग पढता रहता हु। जानकारी मिली कि कुछ लोगो के द्वारा ये कहकर रविश कुमार, प्रशांत भूषण, नसीरुद्दीन शाह के नंबर वायरल किये जा रहे है कि वह जश्न माना रहे है। अब बात ये नही समझ आ रही है कि जो लोग ये पोस्ट वायरल कर रहे है वो क्या रविश कुमार अथवा नसीरुद्दीन शाह, प्रशांत भूषण, जावेद अख्तर के पडोसी है या उनके घर के पेइंग गेस्ट है जो उनको पता है कि वो लोग जश्न मना रहे है। अब सवाल ये है कि आखिर ऐसे किसी के ऊपर झूठा इलज़ाम लगाकर क्या खुद को लोग देश भक्त साबित कर रहे है। ऐसे तो देश भक्त नही होते है लोग। हा अगर सवाल पूछना देशद्रोह में आता है तो सवाल पूछने पर आप नाराज़ हो सकते हो। बस सिर्फ इतना बता दो कि जिन जवानों की आवाज़ रविश ने बुलंद किया वो कहा तक गलत है। आखिर क्यों सीआरपीऍफ़ का जवान शहीद का दर्जा नही पाता है। आखिर कैसे इतनी सुरक्षा के बीच इतने भारी तय्दात में विस्फोटक वहा तक पहुच गया,। क्या इसके ऊपर एक शब्द की सुरक्षा में चुक हुई ज़ख्म को भर सकता है। ज़रा उस परिवार से पूछो जिसका पालन पोषण करने वाला अकेला युवक इस घटना में शहीद हुआ। उसका एक भाई अपाहिज है, उसके पिता का खेत रेहन है। रेहन जानते है क्या ? यानी गिरवी रखा हुआ है। क्या उसके परिवार को कुछ दिनों बाद कोई सहारा देने वाला रहेगा। क्या करेगा उसका अपाहिज भाई। कहा से उसके परिवार का खर्च चलेगा।

अगर ऐसे सवालो को उठाना आपको बुरा लगता है तो दिन भर महंगा मल्टीमिडिया मोबाइल लेकर घर के नर्म मुलायम बिस्तर पर बैठ कर काफी चाय की चुस्किया लेते हुवे देश भक्ति का प्रमाण पत्र तकसीम करो और लिख डालो मोबाइल से क्रांति। मगर सवाल कोई भी हो उसका जवाब ज़रूर होता है। रविश अगर सवाल उठाये तो जवाब बनता है। आखिर कब तक सत्ता के बगल में बैठ कर रेड कारपेट का मज़ा लूटना है। पत्रकारिता का नियम सत्ता का विरोध होता है न कि सत्ता के समर्थन में खड़े होकर जयकारा लगाना होता है। एक और काम भी तो हो सकता है कि एक सर्कुलर जारी करवा दो कि सवाल पूछना मना है।

याद रखे एक बार फिर से दुष्यंत का शेर दोहराता हु कि अपने रहनुमाओं की अदा पर फ़िदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो। कोई भी हमारा रहनुमा अजर अमर नहीं है। दस साल, बीस साल, तीस साल, पचास साल, शायद इससे अधिक नही मगर हमारा मुल्क लाखो करोडो साल का है और आगे भी लाखो करोडो साल का रहेगा। हमको उस मुल्क की फिजा के लिये अपने प्राण नेछावर करने है न कि किसी अपने रहनुमा की अदा और वायदों पर जान कुर्बान करनी है। अब बोल सकते है जय हिन्द मगर दिल से बोले जय हिन्द न कि जय रहनुमा। हिन्दुस्तान जिन्दाबाद था, जिन्दाबाद है और जिन्दाबाद रहेगा। हमारे सैनिक हमारे वीर जवान तो बहुत बड़ी बात हो गई। उस मौलाना बनकर फिरने वाले खब्बिस की औकात नही जो हमारे मुल्क के किसी दस साल के बच्चे से लड़ ले। कसम पैदा करने वाले कि दस मिनट में वो खब्बिस की औलाद धुल चाट रहा होगा। ये आम भारतीय का जज्बा है। कोई भीड़ तंत्र नही। सिर्फ एक अपने गली के नुक्कड़ का वो दस साल का छोटू ही उसको धोबिया पछाड़ मार मार कर धुल चटवा देगा।

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