तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – प्रोफ़ेसर साहब अपनी नही तो कम से कम महामना के इस बगिया की लाज रख लेते
बीएचयु के प्रोफेसर कौशल मिश्रा को खूब खरी-खरी सुनाई रविश कुमार ने अपने ब्लॉग में
तारिक आज़मी
महामना की बगिया से हम जैसे लोगो को बहुत लगाव है। कारण स्पष्ट है कि हम इसी बगिया के एक फुल है। एक समय था कि भले विश्वविद्यालय में राजनीत होती रही मगर उसका स्तर काफी उंचा रहा था। उसका कारण ये भी होता था कि उस समय प्रोफ़ेसर कोई भी किसी दल के प्रतिनिधि के तरह नही रहते थे। सभी उच्च कोटि की शिक्षा प्रदान करते थे। भले जितने भी राजनितिक दाव उस समय लगते हो मगर विश्वविद्यालय का माहोल कभी ऐसा गर्म नही होता था। हां ठीक है चार बर्तन आपस में टकराते ज़रूर थे मगर वह टूटते नही थे। ये वह समय था कि बिडला हास्टल और लोहिया हास्टल पूरा एक हुआ करता था। आज देखे न कितने हिस्सों में तकसीम होकर दोनों हास्टल है मगर आज भी जब देखो तब महामना कि बगिया गर्म हो जाती है। इसका कारण है कि अब लगता है राजनीती छात्रो के अलावा यहाँ के शिक्षा कार्य में जुड़े लोगो में भी घर कर गई है।
अभी हाल फिलहाल में तो देश की एक शान बीएचयु के एक प्रोफ़ेसर साहब बड़ी चर्चा का केंद्र बने हुवे है। उनकी चर्चा इतनी हो चुकी है कि लाखो की विजिट रखने वाले रविश कुमार में उनके कृत्यों पर पूरा अपना ब्लॉग लिख कर राष्ट्रपति से उनके निलंबन के सम्बन्ध में भी पूछ डाला कि क्या उनको निलंबित किया जायेगा। प्रोफ़ेसर साहब है बीएचयु के राजनीती शास्त्र के विभागाध्यक्षा प्रोफ़ेसर कौशल मिश्रा। लगता है प्रोफ़ेसर साहब अपने सब्जेक्ट में इतना रम गये है कि उनके शब्दों में भी उनके विषय आ गये है। तभी तो उन्होंने फेसबुक पर रविश कुमार का नंबर डालते हुवे पोस्ट लिखा और लोगो को रविश के खिलाफ उकसाया।
अब वैसे प्रोफ़ेसर साहब आप काफी मशहूर हो गये है। मगर एक बात मेरे दिमाग में आ रही है। आपको कम से कम बतौर प्रोफ़ेसर खुद का मयार बना कर रखना चाहिये था। विश्वविद्यालय का जब मैं छात्र था तो शायद आपको जानता भी नही रहा। या फिर शायद आप उस समय इतने पापुलर नही होंगे। आप एक शिक्षा जगत से जुडी शक्सियत है और उस बगिया द्वारा आपकी रोटी रोज़ी चल रही है जिसको महामना ने अपने खून पसीने से सीचा है। कम से कम आप अपनी न सही उस महामना के बगिया की लाज रख देते। आज आपका फेसबुक पेज देख रहा था। काफी बढ़िया पोस्ट करते है।
हिंदी को माता बताया आपने अच्छी बात है देश की मातृभाषा हिंदी है। उसका कम से कम सम्मान कर दिया होता। अपने खुद के पोस्ट देखे सर सैकड़ो गलतिया उसी पोस्ट में मिलेगी और खुद आप पेशोपेश में पड़ जायेगे कि झीगुर या फिर झिंगुर ने देखे पोस्ट को। एक पोस्ट महबूबा मुफ़्ती संबोधित देखा मैंने। वाह क्या भाषा शैली है गुरुवार देखिये वैसे मुझको मालूम है कि आप सभ्य और शिष्ट व्यक्ति है। बस आवेश में कभी कभी दिले से ऐसे लफ्ज़ निकल जाते है। खुद देखिये इसको
आप एक शिक्षक है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र से। गुरुदेव साथ उठाना बैठना भी थोडा स्तरीय होना चाहिये न। अब आपके साथ बैठा इंसान टेबल पर बैठ कर खैनी मलने की तैयारी कर रहा है ऐसा फोटो सात साल पहले खीच कर आखिर क्यों फेसबुक पर डाल दिया आपने। गुरु देव आपके लिये महामना की बगिया केवल हो सकता है आजीविका का माध्यम हो अथवा आपके स्वयं द्वारा किये जा रहे राजनितिक विश्लेषण और राजनीत का जरिया हो। हम लोगो के लिये जो उस बगिया के पूर्व छात्र है उनके लिये विश्वविद्यालय हमारा अभिमान है। आप इस फीलिंग और इस भावना को शायद नही समझ सकेगे। पप्पू की अडिबाज़ी कभी वाइट हाउस तक की राजनीत का निचोड़ निकाल देती थी। लम्बा समय हुआ मुझको वहा गये हुवे मगर लगता है अब शायद उस जगह भी राजनितिक निचोड़ नही निकल रहा होगा बल्कि राजनीत की पाठशाला चल रही होगी।
प्रश्न बड़ा विचित्र है गुरु जी, पुलवामा में धोखे से हुवे सेना पर हमले का दुःख हमको भी है। उसके दुःख के लिये हमको आपके प्रमाणपत्र की वैसे आवश्यकता नही है। वो मिया जैसा शब्द और आतंकवाद को धर्म से जोड़ने वाला पोस्ट मैंने आपके वाल पर देखे। गुरु जी, हमारी सेना को जब खुली छुट मिली है तो वह पूरी तरह से सक्षम है उसको किसी सहयोग की आवश्यकता नही है। आज रात को हमला करेगी तो कल सुबह की चाय लाहोर में किसी जुम्मन मिया के दूकान पर भारतीय मुद्रा देकर पी रहे होंगे हम लोग। शायद आपको संज्ञान से उतर गया हो तो स्मरण करवा दू कि अटल बिहारी जी इस देश के प्रधानमंत्री थे और अमेरिका थोडा उछल रहा था। एक शब्द कहा था अटल जी ने, अमेरिका के भी पसीने छुट गये थे। इसका तात्पर्य होता है कि भारतीय सैन्य शक्ति अमेरिका से भी कमज़ोर नही है। विश्वास तो करे प्रभु।
रही बात अब जैसा आप रविश के लिये लिख बैठे। भले आपने पोस्ट डिलीट कर डाली है तो एक बात बतायेगे गुरुदेव, क्या आप रविश के पडोसी है या फिर उसके घर के पेइंग गेस्ट। आपको कैसे पता कि जश्न हो रहा है। कही सपना तो नही देख लिया था और सुबह सुबह फोन उठाया और पोस्ट डाल दिया। तनिक ये भी नही सोचा कि आपकी स्वयं की पहचान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से है। अगर उसके जवाब में कोई आया जैसा कि रविश ने अपने ब्लॉग में आपको जवाब दे डाला है और खूब मुहब्बत के साथ खरी खरी सुना डाली है, तो क्या इतनी भी चिंता नही कि इसका असर केवल आपके ऊपर नही बल्कि विश्वविद्यालय के छवि पर पड़ेगा। मालूम नही आपने ब्लॉग पढ़ा है कि नही लीजिये भेज रहा हु रविश के ब्लाग पढ़ ले
पढ़े क्या लिखा है रविश कुमार ने अपने ब्लॉग में
(साभार रविश कुमार के ब्लॉग से)
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मदन मोहन मालवीय जी की आत्मा रो रही होगी। एक भव्य यूनिवर्सिटी बनाने के प्रयासों से गिरा उनका पसीना बनारस में ही सूख गया है। नहीं सूखा होता तो उनके खून-पसीने से बनी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU)का एक प्रोफेसर कौशल मिश्रा मेरा नंबर फेसबुक पर शेयर नहीं करता और भारत विरोध के लिए बधाई देने के नाम पर भीड़ को नहीं उकसाता। प्रोफेसर कौशल मिश्र बीएचयू में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष हैं। उम्मीद है कि उस विभाग के छात्रों और बाकी प्रोफेसरों को शर्म नहीं आती होगी तो कम से कम शर्म की वर्तनी आती होगी। महामना की यूनिवर्सिटी में ऐसा गया गुज़रा प्रोफेसर होगा, हमने कल्पना नहीं की थी।
ALTNEWS के अर्जुन सिद्धार्थ ने कौशल मिश्रा के फेसबुक पेज को खंगाला है। पाया है कि वे कई तरह की भ्रामक बातें फैलाते रहते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी का वैसा बयान पोस्ट किया है जो उन्होंने दिया ही नहीं है। यही नहीं, प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ भी हेरा-फेरी की है। 2004 में उज्जैन की शिप्रा नदी में स्नान की तस्वीर को जनवरी 2019 में यह कहते हुए पोस्ट किया है कि गंगा में स्नान की तस्वीरे हैं। कौशल मिश्रा आप नेता पर हमले के लिए बीजेपी के कार्यकर्ताओं को उकसाने के आरोप में 2014 में गिरफ्तार भी हो चुके हैं।
पूरा बनारस इस यूनिवर्सिटी से गौरव पाता है। अगर बनारस के लोगों में सोचने-समझने की शक्ति समाप्त नहीं हुई है, नेताओं की भक्ति में बर्बाद नहीं हुई है तो एक बार एक मिनट के लिए सोचें कि क्या एक प्रोफेसर को ऐसी हरकत करनी चाहिए थी? क्या बीएचयू को बर्बाद करने में बनारस के बुद्धिजीवी भी खुशी-खुशी शामिल होना चाहते हैं? 2014 के पहले बनारसी लोगों की ठाठ सुना करता था कि पप्पू चाय की दुकान पर व्हाइट हाउस की पॉलिटिक्स का धुआं उड़ा देते हैं लेकिन अब क्या हो गया है। उनके बनारस का प्रोफेसर फेसबुक पर लोगों को उकसा रहा है। भड़का रहा है। पप्पू चाय की दुकान है या बुद्धिजीवी बनारस छोड़ गए हैं?
यही नहीं, कर्नाटक से बीजेपी की सांसद हैं शोभा करांदलाजे। इनका ट्विटर हैंडल @ShobjaBjp। इन्होंने कई पत्रकारों की तस्वीर के साथ ट्वीट किया है कि हमारा काम है देशद्रोहियों को एक्सपोज़ करना। इसमें मेरी भी तस्वीर है। सांसद महोदया को मेरे बारे में पता ही क्या होगा। अपने और हमारे प्रधानमंत्री से एक बार पूछ लें कि रवीश कुमार को एक्सपोज़ क्यों नहीं कर पाए पांच साल में। मैंने ट्वीट कर एक्सपोज़ कर दिया है और अब आप उसे दो घंटे का लाइव इंटरव्यू दे दीजिए। क्या अब भी आपको शक है कि यह काम संगठित रूप से नहीं हो रहा है। इसे पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर सांसद तक का समर्थन नहीं है। समर्थक प्रोफेसरों से लेकर सामान्य समर्थकों का समर्थन नहीं है। क्या अब भी आपको शक है कि अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी इस तरह की राजनीतिक संस्कृति का समर्थन नहीं करते हैं।
सोशल मीडिया पर मुझे या अभिसार, रोहिणी सिंह, निधि राजदान, बरखा दत्ता को जो गालियां और धमकियां दी गई हैं वो इन्हीं लोगों के उकसाने पर दी गई हैं। इनकी सरकार है। सरकार की शह पर समर्थकों से लेकर नेताओं तक में भय समाप्त हो गया है। लोक मर्यादा का भी डर नहीं है। सबको पता है कि कुछ नहीं होगा। बीजेपी सांसद लोगों को क्यों उकसा रही हैं। बीएचयू का प्रोफेसर लोगों को भड़का रहा है। क्या अब भी आपको नहीं लगता है कि देश गर्त में धकेला जा चुका है। एक ऐसा तंत्र खड़ा कर दिया गया है जो अब किसी को भी देशद्रोही बताकर उसके मार दिए जाने की परिस्थिति रच सकता है। हमेशा भीड़ ही क्यों बनाते हैं ये लोग। ज़ाहिर है बुलंदशहर के इंस्पेक्टर सुबोध सिंह जैसों को मार दिए जाने के लिए।
गालियों के अलावा मुझे गोली मार देने से लेकर काट देने की धमकियां मिली हैं। पुलिस को शिकायत कर दी गई है। क्या पुलिस बीएचयू के प्रोफेसर पर कार्रवाई कर सकती है? क्या पुलिस बीजेपी की सांसद शोभा जी से पूछ सकती है कि ज़रा एक्सपोज़ करने के प्रमाण तो दीजिए। उन्होंने किस आधार पर मुझे देशद्रोही बताया है। चुनाव में कौन सा पैसा खर्च होता है देशभक्तों को पता नहीं है क्या। मुझे बताया गया है कि बीएचयू के चांसलर रिटायर जस्टिस गिरिधर मालवीय हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्तावक रहे हैं। उनसे कुछ हो पाएगा, कार्रवाई करने का साहस है भी या नहीं, मैं नहीं जानता। मगर जस्टिस गिरिधर मालवीय को पत्र ज़रूर लिखूंगा ताकि महामना मालवीय की आत्मा को अफसोस न रहे कि मैंने उनकी विरासत संभाल रहे उनके वारिसों को नहीं झकझोरा था। इसका फैसला महामना की आत्मा करेगी कि उनके नाम पर जीने वाले में किरदार था या नहीं। वैसे मेरी अपील राष्ट्रपति से है। भारतभर की यूनिवर्सिटी के चांसलर या अभिभावक वही माने जाते हैं। क्या वे प्रोफेसर कौशल मिश्र को बर्ख़ास्त करेंगे? अगर नहीं तो मुझे बेहद अफसोस के साथ यह राय बनानी पड़ेगी कि ट्रोल संस्कृति को मंज़ूरी देने के मामले में आदरणीय राष्ट्रपति भी जाने-अनजाने में शामिल हैं। यह कितना दुखद होगा। क्या भारत के महान गणतंत्र के अभिभावक राष्ट्रपति एक प्रोफेसर को बर्खास्त तक नहीं कर सकते? विकल्प उनके पास है। अपनी पूर्व राजनीतिक विचारधारा के मोह में फंसे रहे या फिर बर्खास्त कर अभिभावक होने की परंपरा को आगे बढ़ाएं।