तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – अगर ऐसा हुआ तो फिर आसान नही होगी बाबा विश्वनाथ की नगरी में मोदी की राह
तारिक आज़मी
देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। सभी दल एक दुसरे को नीचा दिखाने के लिये अपने अपने दाव खेल रहे है। सब अपनी अपनी सीट पक्की करने के फिराक में भले लगे है मगर जनता आज भी खामोश है। जनता शांति से सभी दलों का सही मायने में निरक्षण कर रही है। सडको गलियों में समर्थक भले किसी को जीत और किसी की हार का परचम पकड़ा रहे हो मगर ये समर्थक है न कि वोटर। आम वोटर तो खामोश ही है, इस बार न कोई किसी की लहर है और न ही जनता सडको पर अभी आई है।खबरिया चैनल भले दल विशेष के प्रवक्ता बनकर उसके पक्ष की लहर कही दिखाए मगर इस बार कोई लहर किसी की आम जनता के बीच नही दिखाई दे रही है। पांच सितारा होटलों जैसी करोडो के लागत से बने स्टूडियो में बैठ कर नमामि गंगे को भले सफल दिखाया जाए मगर हकीकी ज़िन्दगी में शायद कुछ और ही हकीकत बयां हो रही है।
इस बीच सबसे पहली लिस्ट में भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वाराणसी सीट पर दुबारा प्रत्याशी बना कर घोषणा किया गया है। बनारस में अभी अन्य कोई दल का प्रत्याशी नही आया है बल्कि कल रावण ने भीम आर्मी से आकर यहाँ हुंकार भरी है। साथ ही कहा कि चौकीदार को खबरदार करने आया हु और चुनाव लडूंगा। मगर अभी कांग्रेस तथा सपा बसपा गठबंधन में से किसी भी तरफ से प्रत्याशी की घोषणा नही हुई है। इसी दौरान विगत दिनों प्रियंका गाँधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ने की बात पर कार्यकर्ताओ से कहा था कि बनारस से क्यों नही ? इसके भी सियासी मायने लगाये जाने लगे है। मगर अभी कोई भी घोषणा नही होने के कारण कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। मगर प्रियंका गाँधी बनारस से चुनाव लड़ने का फैसला करती है तो ये निश्चित है कि पूर्वांचल में खो चुकी सियासी ज़मीन को कांग्रेस एक बार फिर से पा लेगी। प्रियंका चुनाव जीतेगी अथवा नही ये तो जवाब 23 मई को ही मिल पायेगा मगर प्रियंका सियासी फलक पर अपना राजनितिक सितारा बुलंद कर बैठेगी ये पक्की बात है।
क्या रहा पिछले चुनावों के नतीजो में
वर्ष 2009 से अगर हम इस सीट पर सियासी निगाह डाले तो बहुत कुछ तस्वीर बयान करने के लिए काफी होगी, इस साल यहाँ से भले मुरली मनोहर जोशी चुनाव जीत गए थे मगर उनको एक बढ़िया टक्कर बाहुबली विधायक मुख़्तार अंसारी से मिली थी। ये चुनाव मुख़्तार ने जेल में रहते हुवे लड़ा था। इस बात को अगर नज़रंदाज़ न करे तो फिर समझने को बहुत कुछ हो जायेगा। इस चुनाव में सपा के प्रत्याशी को मिले मतों में मुस्लिम मतों का अनुमान अगर एक तरफ रखकर अनुमान लगाये तो मुख़्तार केवल उन्हों मतों से चुनाव हार गए थे। बहुबल के बाद सियासत में मुख़्तार का ये पहला बड़ा मैच कहा जा सकता था। सियासी ज़मीन पर मुख़्तार को ये कामयाबी मिल तो गई होती मगर आखिर के लम्हों में दलित मतों का पोल न होना और मुस्लिम मतों का एक हिस्सा सपा को जाना मुख़्तार को हार का स्वाद चखा गया। भले मुरली मनोहर जोशी चुनाव जीते थे मगर चुनाव लड़ने के अंदाज़ ने बसपा द्वारा दिल जीता गया था।
इसके बाद 2014 लोकसभा में अरविन्द केजरीवाल के मुकाबले भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी एकतरफा मुकाबले में चुनाव जीत गए। चुनावी रिज़ल्ट को अगर ध्यान से देखा जाए तो इस चुनाव में मोदी के मुकाबले कांग्रेस के अजय राय, ने भी बढ़िया मतों को इकठ्ठा किया था। वही बसपा और सपा के प्रत्याशी भी कही से एकतरफा मुकाबले में शुन्य तो नही रहे। अब अगर कांग्रेस, सपा और बसपा को मिले मतों पर नज़र डाली जाए और उसको आम आदमी पार्टी के केजरीवाल के मतों से मिला दे तो ये आकडे भाजपा के पेशानी पर बल देने वाले थे। मौजूदा हालात को मद्देनज़र अगर रखे तो ये संभव है, क्योकि ध्यान देने वाली बात ये होगी कि सपा बसपा गठबंधन ने राहुल और सोनिया के खिलाफ चुनावो में प्रत्याशी नही उतारने का फैसला किया था।
अगर प्रियंका गांधी वाराणसी से मोदी के खिलाफ चुनाव लडती है तो पूरी उम्मीद है कि सपा बसपा गठबंधन अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगा अथवा कमज़ोर प्रत्याशी उतार देगा। इस स्थिति में फायदा प्रियंका गांधी को मिलने की पूरी संभावना है। प्रियंका यहाँ से अपने सियासी फलक का सितारा बुलंद करती दिखाई दे रही है। इसकी वजह यहाँ के मतों में जातिगत मत है। बनारस में लगभग 3 लाख मत मुस्लिम वोटर है। यहाँ के मुस्लिम वोटर किसी एक पार्टी के समर्थक न होकर दल विशेष का विरोध करते है। अमूमन देखा जाता है कि जो दल अथवा प्रत्याशी भाजपा को हरा रहा होता है ये वोटर उसको ही वोट करते है। इनकी पोलिंग भी खासी दमदार होती है। पिछले चुनावों में मुस्लिम वोट लगभग 2।40 हज़ार के करीब पोल हुआ था। इस बार रमजान के वजह से शायद कम वोट पड़े मगर फिर भी 2 लाख मतों में कोई दाग तो नज़र नही आता है। प्रियंका के चुनाव लड़ने और सपा बसपा गठबंधन के चुनाव में प्रत्याशी नही खड़ा करने के वजह से फिर प्रियंका के चुनावों की शुरुआत ही 2 लाख मतों से होती दिखाई दे सकती है।
वही बसपा के वोट बैंक समझे जाने वाले दलित मतों का पिछले बार विभाजन हुआ था और इसमें काफी वोट भाजपा के खाते में जाने की चर्चा रही। इस बार अगर इसका विभाजन हुआ तो इस 80 हज़ार दलित मतों में सबसे अधिक सेंधमारी भीमआर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ़ रावण द्वारा किये जाने की संभावना है। ऐसे में ये कही न कही से भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित होगा। दूसरी तरफ जीएसटी और नोटबंदी जैसे मुद्दु से परेशान बनिया वर्ग जिसका वोट इस लोकसभा में कुल 3।25 हज़ार के लगभग है और ये भाजपा के ट्रेडिशनल वोटर माने जाते है उनकी नाराज़गी कांग्रेस को फायदेमंद हो सकती है। अगर कांग्रेस ने बढ़िया तरीके से इस मुद्दे को भुनाया और उनकी नाराज़गी की चिंगारी को और हवा दिया तो इसमें सेंधमारी और आसन होगी। अगर 20-25 प्रतिशत मत भी इसके टूटे तो ये भाजपा के लिए बड़ा नुक्सान होगा। वही तीसरा सबसे बड़ा जातिगत वोट है ब्राह्मण, ब्राह्मण मतदाताओ की संख्या लगभग ढाई लाख के करीब है। माना जाता है कि विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने में जिनके घर सबसे ज्यादा नुक्सान में रहे हैं उनमें ब्राह्मण ही हैं और एससी/एसटी संशोधन बिल को लेकर भी नाराजगी है। इस हिसाब से ये नाराज़गी अगर वोट देते समय दिखाई दि तो फिर भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है।
इसके अलावा यादवों की संख्या बनारस लोकसभा में डेढ़ लाख है। इस सीट पर पिछले कई चुनाव से यादव समाज बीजेपी को ही वोट कर रहा है। लेकिन सपा के समर्थन के बाद इस पर भी सेंध लग सकती है। वही भूमिहार 1 लाख 25 हज़ार, राजपूत 1 लाख, पटेल 2 लाख, चौरसिया 80 हज़ार हैं। इनके वोट अगर थोड़ा बहुत भी इधर-उधर होते हैं तो सीट का पूरा समीकरण ही इधर का उधर हो सकता है। आंकड़ों के इस खेल को देखने के बाद अगर साझेदारी पर बात बनी और जातीय समीकरण ने साथ दिया तो प्रियंका गांधी मोदी को टक्कर दे सकती हैं। अगर प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो हार जीत से पहले कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक बड़ा संदेश में कामयाब हो जाएगी।
दुसरे आप्शंस भी चुन सकती है कांग्रेस
अगर दुसरे आप्शंस पर गौर किया जाए तो सियासी ज़मींन के मद्देनज़र अपनी इस सीट को पाने के लिए दुसरे आप्शंस भी कांग्रेस के पास हो सकती है। जैसे किसी बड़े नाम वाले ब्राह्मण प्रत्याशी जो राजनैतिक चेहरा न हो उसको उतार कर कांग्रेस भाजपा के लिए मुश्किलें खडी कर सकती है। मंदिर बचाओ आन्दोलन से मशहूर हुवे स्वामी अविमुक्त्रेश्वरानंद से लेकर विश्वनाथ मंदिर और संकट मोचन मंदिर से जुड़े नामो पर भी कांग्रेस विचार कर सकती है। ये नाम ब्राहमण मतों को अपने तरफ झुकाने के लिए लाया जा सकता है। अगर ब्राह्मण मत 50 प्रतिशत भी भाजपा से अलग हुआ तो सीट पर बढ़िया टक्कर देखने को मिल सकती है। क्योकि यहाँ गेम चेंजर के तौर पर फिर मुस्लिम मतदाता काम करेगा। वही पटेल समाज पर जितनी पकड़ पिछली बार अनुप्रिया पटेल की रही है इस बार कृष्णा पटेल भी अपनी पकड़ पटेल मतों पर बना चुकी है। ध्यान देने की बात ये होगी कि कृष्णा पटेल इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन में है। ऐसे में इसका नुक्सान भाजपा को हो सकता है।