निषाद पार्टी के अलग होने से हुवे डैमेज को कंट्रोल करते हुवे सपा ने खेला ये राजनितिक दाव

आदिल अहमद

लखनऊ.योगी के गढ़ गोरखपुर में भाजपा को पटखनी देने में निर्णायक भूमिका निभाने वाली निषाद पार्टी ने गठबंधन का साथ छोड़ दिया है। मात्र 3 दिन के बाद योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद निषाद पार्टी ने गठबंधन से खुद को अलग कर दिया है। ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि निषाद पार्टी लोकसभा चुनाव में बीजेपी का दामन थाम सकती है। निषाद पार्टी के मीडिया प्रमुख निक्की निषाद उर्फ रितेश निषाद ने गोरखपुर में पत्रकारों से कहा है कि निषाद पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच महाराजगंज लोकसभा सीट को लेकर मतभेद था, निषाद पार्टी इसे अपने चुनाव चिन्ह पर लड़ना चाहती है जबकि समाजवादी पार्टी इसके लिये तैयार नहीं है। निषाद पार्टी के कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे और उन लोगों ने पार्टी से इस्तीफा देना शुरू कर दिया।

भले ही निषाद पार्टी के मीडिया प्रभारी इस बात पर जोर दे रहे है कि पार्टी के अन्दर खुद के चुनाव निशान पर चुनाव लड़ने का दबाव और विवाद था, मगर फिजाये कुछ और भी बयान कर रही है। राजनितिक जानकारों की माने तो ये गठबंधन से अलग होकर अगर निषाद पार्टी खुद चुनाव लडती है तो इसका फायदा भाजपा को होना निश्चित है। वही राजनितिक महत्वाकांक्षा अगर जोर पकडती है तो फिर निषाद पार्टी भाजपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ सकती है।

निषाद पार्टी के अलग होने से हुवे डैमेज को कंट्रोल करने के लिए सपा ने भी बढ़िया राजनितिक दाव खेला है। सपा ने योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर से निषाद नेता राम भूआल निषाद को जहा पार्टी का प्रत्याशी बनाया है वही दुसरे तरफ कानपुर सीट से एक और निषाद नेता राम कुमार को टिकट देकर निषाद पार्टी पर बढ़िया राजनितिक जवाब का दबाव दिया है। अब देखने वाली बात होगी कि निषाद पार्टी इस सपा के दाव पर क्या जवाब देती है।

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