शिक्षा के व्यापारीकरण में मिली आम जनता को लूट खसोट

फारुख हुसैन

सिंगाही खीरी। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए निजी स्कूलों में प्रवेश से बाजारवाद ने ऐसा कब्जा किया, जनता के हिस्से में केवल लूट आई। कान्वेंट और हाइटेक शिक्षा व्यवस्था के नाम पर गली गली में खुली शिक्षा की दुकानें भारी लूट कर रही हैं और बेहतर भविष्य के नाम पर मासूम बच्चों पर किताबों का बोझ बढ़ा है। दूसरे स्कूलों की प्रतियोगिता में बच्चों पर अधिक नंबर लाने का दबाव बच्चों पर है। इसमें बच्चों की शारीरिक मानसिक शोषण हो रहा है। इसका उदाहरण अप्रैल में भीषण गर्मी की दोपहरी में स्कूल से आते बच्चों को देखकर लगाया जा सकता है। हद तो हो गई जब देखी देखा सरकारी स्कूल भी इसकी राह पर हैं। जबकि देश की शिक्षा की गुणवत्ता पर अभी भी सवाल है।
90 के दशक में स्कूलों का बाजारवाद पूरे सिस्टम पर ऐसे हावी हुआ कि छोटे से छोट कस्बो में शिक्षा से पैसे कमाने की होड़ हो गई। हर स्कूल में फीस सैकड़ों में नहीं हजारों में हैं।

भारी फीस पर सुविधा नहीं

46 डिग्री तापमान में लोग कूलर तथा पंखे में नहीं बैठ पा रहे हैं तो वहीं स्कूलों में बच्चों के बिजली व होने पर बिना पंखा के पढ़ने पड़ रहा है। एक कमरे में 20 छात्रों को पढ़ना चाहिए तो 30 से 40 छात्र पढ़ रहे ऐसे में बेचैनी के कारण बच्चों को स्कूल में उल्टी-दस्त की शिकायत हो सकती है।

स्कूल न हो गया आइपीएल हो गया

निजी स्कूलों ने छेत्र का ट्रेंड बनाकर जिस तरह अभिवावकों की जेब पर डाका डालना शुरू किया है वह काबिले तारिफ है। पढ़ाई की जगह दिखावा अधिक हो गया है। आइपीएल में टीमें अलग-अलग किट पहनती है इसी तरह स्कूलों में ड्रेस भी हो गई हैं।

स्कूल पसंद का ही ब्रांड

ड्रेस किस कंपनी व जूते, बस्ते तथा स्टेशनरी किस कंपनी की होगी इसका ठेका उठाया जाता है। ऐसे में कोई अभिवावक स्कूल के सिवा कहीं से भी ड्रेस, जूते, स्टेशनरी नहीं खरीद सकता है। अभिवावक चुपचाप शोषण सहते हैं। जबकि स्कूल मालिक का कमीशन सेट रहता है।

इस गर्मी में कौन सी हो रही पढ़ाई

इस अप्रैल में भीषण गर्मी पड़ रही है, लेकिन हर छोटा-बड़ा स्कूल खुला हुआ है। बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जाते हैं तो तापमान 32 से 34 डिग्री होता है लेकिन दोपहर एक बजे छुट्टी होती है तो पारा 42 से 43 डिग्री होता है। इसमें बच्चे झुलस जाते हैं।

कहीं कोई गाइड लाइन नहीं

यूनीसेफ का गाइड लाइन साफ कहती है कि पढ़ाई में बच्चों पर कोई दबाव नहीं होना चाहिए। बच्चों के शारीरिक दंड देने पर सख्ती नहीं की गई बल्कि बच्चों को किस परिवेश तथा माहौल में पढ़ाया जा रहा है यह भी मानक तय किए गए हैं। लेकिन कोई स्कूल एक भी मानक पूरा नहीं करता है। अभिभावक डर से शिकायत नहीं करता और साहब कमीशन लेकर देखते नहीं।

डीएम का आदेश यह नहीं मानते

डीएम साहब ने ठंड या गरमी में छुट्टी घोषित की तो सरकारी स्कूल तो बंद हो गए लेकिन निजी स्कूल नहीं बंद हुए।

शिक्षा विभाग से रहती सेटिंग्स

शिक्षा विभाग इन निजी स्कूलों का कोई डाटा तैयार नहीं करता न ही मानक की जांच करता है। असल में पहले से ही सिस्टम को साधा जाता है और करोड़ों का खेल होता है। कोई पूछने वाला नहीं है कि आखिर इतना बड़ा शैक्षिक साम्राज्य किस तरह खडा़ कर लिया गया।

कार्रवाई के लिए शिकायत का इंतजार

जिला विद्यालय निरीक्षक आरके जायसवाल कहते हैं कि जो हो रहा है वह गलत है लेकिन यदि कोई शिकायत आती है तो फिर कार्रवाई की जाएगी। और उनकी फीस निर्धारित है अगर उससे ज्यादा फीस लेते हैं तो कार्रवाई भी की जाएगी अब सवाल यह है कि क्या शिकायत न आने पर ऐसे ही निजी स्कूलों की मनमानी चलती रहेगी।

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