क्या अमेरिका और ईरान के बीच सीधे युद्ध के लिए उलटी गिनती शुरू हो चुकी है ?
आफताब फारुकी
2 मई से ईरान के तेल निर्यात पर पूर्ण रूप से अमरीकी प्रतिबंधों के बाद क्या दोनों देश सीधे युद्ध की तरफ़ बढ़ रहे हैं ?यह वह सवाल है, जो आज मीडिया से लेकर दुनिया भर के राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है। ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने अमरीकी प्रतिबंधों को उम्मीदों पर प्रहार बताते हुए ईरानी जनता से एकजुटता और प्रतिरोध की मांग की है।वहीं विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ का कहना है कि दोनों देशों के बीच सीधे युद्ध की संभावना तो नहीं है, लेकिन हां कुछ घटनाएं (सीमित) सैन्य टकराव का कारण बन सकती हैं।
ग़ौरतलब है कि तेहरान पहले ही कई बार यह चेतावनी दे चुका है कि अगर अमरीका, ईरानी तेल के निर्यात को बंद कराने में सफल रहता है तो स्ट्रेट ऑफ़ होरमुज़ से कोई भी देश अपना तेल विश्व बाज़ार में नहीं पहुंचा सकता। ईरान और अमरीका के बीच तनाव में वृद्धि और फ़ार्स खाड़ी में सैन्य टकराव के मद्देनज़र वाशिंगटन ने तेहरान को एक आधिकारिक संदेश भेजा है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी स्थिति में अमरीका, ईरान से सीधे नहीं टकराना चाहता है।
ईरान की न्यूज़ एजेंसी तसनीम से बात करते हुए अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ सादुल्लाह ज़ारेयी ने कहा है कि इस बात के अनेक साक्ष्य मौजूद हैं कि अमरीका, ईरान से टकराने से बच रहा है, इसीलिए वह आर्थिक, राजनीतिक और मीडिया वार पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर रहा है।
अगर हम पिछले 50 से 60 वर्षों के दौरान अमरीका द्वारा लड़े गए युद्धों पर एक नज़र डालेंगे तो यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि दुश्मनी और तनाव अपने चरम पर पहुंच जाने के बावजूद अमरीका, किसी भी ऐसे देश से सीधे नहीं टकराया है जो सैन्य क्षमता के लिहाज़ से शक्तिशाली रहा है।
इसके बावजूद, नाइन इलेवन की आतंकवादी घटना के बाद अमरीका ने इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान समेत जितने देशों में भी सैन्य हस्तक्षेप किया है, उसे कहीं भी सफलता हासिल नहीं हुई है। ईरान क्योंकि मध्यपूर्व का सबसे शक्तिशाली देश है, इसलिए अमरीका सीधे ईरान से टकराने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहता है। ईरान की इस्लामी क्रांति की फ़ोर्स आईआरजीसी हो या ईरानी सेना, क्षेत्रीय परिस्थितियों को देखते हुए हमेशा ही युद्ध के लिए तैयार हैं और यह बात अमरीका से ज़्यादा अच्छी तरह से और कौन जानता है?