हाल-ए-सियासत : आसान तो नही दिखाई दे रही है काशी में प्रधानमंत्री मोदी की राह, जाने क्या है सियासी आकडे और अभी तक सियासत की सरगर्मिया

तारिक आज़मी

लखनऊ. पिछले लोकसभा चुनावों के तरह इस बार कोई लहर नही दिखाई दे रही है। लगभग हर सीट पर भी भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है। एक वाराणसी की ही सीट को भाजपा आसान समझ रही थी मगर इस सीट के राहो को भी कठिन करने के लिए प्रियंका गांधी एक सप्ताह तक वाराणसी में रहने की योजना बना रही है। इस दौरान प्रियंका गांधी पूर्वांचल की अन्य सीट पर भी जायेगी मगर केंद्र बिंदु वह वाराणसी को ही बनायेगी।

बताते चले कि वाराणसी कभी कांग्रेस का मुख्य गढ़ रहा करती थी। बदलते परिवेश से यह सीट भाजपा के खाते में चली गई। 1992 के बाद से सिर्फ एक लोकसभा चुनावों को छोड़ दे तो हर बार यहाँ भाजपा का वर्चस्व रहा है। कांग्रेस यहाँ से अपने 27 साओ से चल रहे वनवास को खत्म करना चाहती है। इस 27 सालो के वनवास के दौरान कांग्रेस को एक मौका 2004 लोकसभा चुनावों में हासिल हुआ था जब वाराणसी सीट से राजेश मिश्रा ने चुनाव जीता था। एक बारगी तो लगा कि इतिहास खुद को बदलते हुवे 2009 में मुख़्तार के सर सिरमौर देगा मगर आखरी लम्हों में मुख़्तार अंसारी लगभग 20 हज़ार मतों से भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के हाथो हार गए।

2014 में कांग्रेस ने एक प्रयास अजय राय को लाकर वाराणसी में किया था। इस दौरान दिल्ली के वर्त्तमान और उस समय के तत्कालीन पूर्व रह चुके मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ ताल ठोका था। केजरीवाल के समर्थन में काफी नामी गिरामी शक्सियते चुनाव प्रचार के लिए वाराणसी आई। मगर अंत में केजरीवाल को भारी मतों से हार का सामना करना पड़ा था। वही मोदी ने काफी बड़े अंतर से ये चुनाव जीत लिया था। इस दौरान कांग्रेस के अजय राय तीसरे नंबर पर थे मगर दुसरे और तीसरे नंबर का मतों में काफी बड़ा फासला था। चुनाव लगभग एकतरफा हो गया था और नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभाल लिया।

वाराणसी ने अच्छे दिनों के इंतज़ार में सांसद नही प्रधानमंत्री चुना था। शायद उम्मीदे भी काफी रही होंगी मगर वाराणसी को आशातीत सुविधाये नहीं मिली और वाराणसी आज भी लगभग उसी जगह खड़ा नज़र आ रहा है। विकास की बाट जोहते वाराणसी में माँ गंगा की धारा आज भी अविरल होने के लिए व्याकुल है और गंगा हेतु विशेष विभाग की मंत्री साध्वी उमा भारती जिन्होंने वायदा किया था कि 2018 तक अगर गंगा की लहरे अविरल नही हुई तो जल समाधि ले लुंगी के वायदों पर आस लगाये आज भी काशी बैठी है। वही दूसरी तरफ विश्वनाथ कारीडोर और जीएसटी जैसे मुद्दों पर जहा व्यापारी नाराज़ नज़र आ रहा है वही दूसरी तरफ ब्राह्मण वर्ग वाराणसी में विश्वनाथ कारीडोर मामले को लेकर नाराज़ है।

इन सब स्थितियों के बाद वाराणसी में कांग्रेस के द्वारा प्रियंका गांधी को उतारे जाने की चर्चा ने इस चुनाव को रोचक बना दिया था। इस चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वाराणसी में भव्य रोड शो का आयोजन हुआ। जिस दौरान रोड शो चल रहा था उसी दरमियान ही कांग्रेस ने चुनावी तीर चलाकर वाराणसी से पूर्व विधायक अजय राय को एक बार फिर से मौका दे दिया। टिकट की इस घोषणा के बाद वाराणसी का चुनाव लगभग एकतरफा लोग समझने लगे थे। उसके पहले ये आशा थी कि प्रियंका गांधी के खुद चुनाव लड़ने की स्थिति में गांधीवाद विचारधारा के लोग और पुराने कांग्रेसी जो अब शांत घरो में बैठ चुके है एक बार फिर सडको पर नज़र आयेगे। वही नेहरू गाँधी परिवार की चाश्मोचिराग प्रियंका गांधी के पक्ष में भी लहर हो जाने की उम्मीदों पर अचानक पानी फिरता दिखाई देने लगा।

समय का चक्र फिर घुमा और मात्र दो दिनों के बाद ही वाराणसी में सपा बसपा गठबंधन ने बीएसऍफ़ के बर्खास्त सिपाही तेज बहादुर को टिकट देकर खलबली मचा दिया। इस टिकट के बाद फिर एक बार वाराणसी लोकसभा का चुनाव चर्चा में आने लगा था। तेज बहादुर के साथ ही शालिनी यादव का भी नामांकन सपा ने करवाया था, भीतर खाने की माने तो सपा को शंका थी कि कही तेज बहादुर का नामांकन रद्द न हो जाये। आखिर हुआ भी वही और लगभग 24 घंटे की जिच के बाद तेज बहादुर का परचा ख़ारिज हो गया। शालिनी यादव सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में बची। कहानी का ट्वीस्ट अभी बाकी रहा और दो अप्रैल को शालिनी यादव के द्वारा तेज बहादुर को सार्वजनिक रूप से राखी बाँध दिया गया और तेज बहादुर तथा उनकी टीम शालिनी यादव के चुनाव प्रचार में लग कर चुनाव को रोचक बना देती है।

अब पारी कांग्रेस की होनी चाहिये मगर कांग्रेस प्रत्याशी शांति से केवल अपने चुनाव प्रचार के तहत घर घर जाकर लोगो से मिल रहे है। इसी दौरान मंदिर बचाओ आन्दोलन के प्रमुख स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद अपने प्रत्याशी के परचा ख़ारिज होने की स्थिति में खुद धरने पर बैठे और अंत में जब लगभग २२ घंटे धरने पर बैठने के बाद भी उनको जिला प्रशासन ने तवज्जो नही दिया तो उन्होंने प्रण लिया कि 17 मई तक वह अपने आश्रम नही जायेगे और सडको पर लोगो से मिलकर जागरूक करेगे। स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद के इस प्रकार के प्रण ने भाजपा के खाते को कम करने की शंका बढ़ा दिया है। स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद से ओस दौरान कई अन्य प्रत्याशी जिनके पर्चे ख़ारिज हुवे है आकर मिलने लगे है और उनकी इस मुहीम का हिस्सा बन रहे है। स्वामी अविमुक्तारेश्वरानंद प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों को गलत बताते हुवे उनके विरोध में प्रचार तो कर रहे है मगर किसी अन्य प्रत्याशी का समर्थन अभी तक नही किया है।

ऐसी परिस्थितयो में भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की राह जो थोडा मुश्किल हो रही थी को और भी मुस्किल करने एक लिए प्रियंका गांधी लगभग एक सप्ताह के दौरे पर वाराणसी आ रही है। वैसे तो वह पूर्वांचल की अन्य सीट पर भी दौरा करेगी मगर उनका केंद्र वाराणसी ही रहेगा। सूत्रों की माने तो इस दौरान वह डोर 2 डोर जाकर भी प्रचार कर सकती है। प्रोटोकाल तोड़कर आम जनता से रूबरू होने के लिए विख्यात प्रियंका गांधी ने अगर ऐसा किया तो कांग्रेस के पुराने वोटरों का एक बार फिर से कांग्रेस के तरफ रुख करना मुमकिन हो सकता है।

वैसे ये बात उस वक्त सामने आई, जब बीते गुरुवार को प्रियंका गांधी वीडियो कॉलिंग के जरिये बनारस के कार्यकर्ताओं और प्रत्याशी अजय राय से रूबरू हुईं। प्रियंका गांधी ने कार्यकर्ताओं से इलाके में कांग्रेस का हाल तो जाना ही, साथ ही उन्होंने कार्यकर्ताओं के अंदर जोश भरते हुए कहा कि एक-एक कार्यकर्ताओं को अपने-अपने बूथ स्तर तक जा कर मेहनत करनी होगी।

अब अगर प्रियंका गांधी बनारस में कैम्प करती है तो इसका प्रभाव पर्वांचल की 13 सीटों पर भी पड़ेगा। शायद इसीलिए प्रियंका गांधी भी इन 13 सीटों पर अपना प्रभाव काबिज़ करने के लिये बनारस में कैम्प करने की तैयारी में हैं। पूर्वांचल की ये 13 सीटे पूर्वांचल की 10 जिलों में आती हैं। ये जिले हैं वाराणसी, सोनभद्र, बलिया, गाज़ीपुर, मऊ आजमगढ़, मिर्ज़ापुर, जौनपुर, भदोही और चंदौली। इसमें तीन जिलों जौनपुर, बलिया और आजमगढ़ में दो-दो साइड हैं जो इस तरह है मछलीशहर , सलेमपुर और लालगंज। इसमें अगर गौर करे तो बलिया, मिर्ज़ापुर और सलेमपुर में कांग्रेस द्वारा चुनावों में अच्छी टक्कर दी जा रही है। मिर्ज़ापुर वाराणसी से सटा हुआ जिला है और वाराणसी से मात्र 60 किलोमीटर की दूरी पर है, मिर्ज़ापुर की राजनीत बनारस की राजनीत से खासी प्रभावित रहती है। इस सबके बीच अगर सबसे अधिक किसी सीट पर असर पड़ेगा तो वह वाराणसी से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कालीन नगरी भदोही है। भदोही से भाजपा छोड कांग्रेस का दामन थमने वाले रमाकांत यादव जिनकी जिले में अच्छी और पुरानी पकड़ रही है अन्य प्रत्याशियों को अच्छी टक्कर दे रहे है। इस चुनाव में प्रियंका का उस सीट पर प्रचार करना सोने पर सुहागा वाली स्थिति हो जायेगी। वही दूसरी तरफ भाजपा की पूरी लोबी भी वाराणसी कैम्प करने के चक्कर में है। अगर ऐसी स्थिति हुई तो भाजपा का मुख्य फोकस वाराणसी सीट को बचाने पर रहेगा जो पूर्वांचल की उसकी अन्य सीट पर उसको नुकसान पंहुचा सकता है।

बताते चले कि पूर्वांचल की इन 13 सीटों में 2014 में आजमगढ़ को छोड़ कर बकिया सभी 12 की 12 सीटों पर बीजेपी का कब्ज़ा था, लेकिन इस बार इन सीटों पर 2014 के हालात नहीं हैं। सपा-बसपा गठबंधन जहां बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहा है, तो वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार कई सीटों पर बीजेपी को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में प्रियंका गांधी यहां अगर कैम्प करके इन इलाकों में सघन दौरा करती हैं, तो बीजेपी के लिए और बड़ी मुश्किल खड़ी कर देंगी। वैसे भी प्रियंका के लिये इन इलाकों में कांग्रेस की पैठ बनाना उनके लिए चुनौती भी है क्योंकि वो इस चुनाव में पूर्वांचल की प्रभारी भी हैं।

अगर दूरंदेशी की बात करे तो वर्त्तमान उत्तर प्रदेश सरकार अपना आधा कार्यकाल लगभग पूरा कर चुकी है। आशा व्यक्त किया जा रहा है कि प्रियंका इस चुनाव को अगले विधान सभा चुनावों के नज़रियो से देख रही है। उम्मीदों पर अगर नज़र डाले तो कांग्रेस अगला विधानसभा चुनाव भी अकेले लड़ेगी। इस उम्मीद के तहत भी प्रियंका पूर्वांचल की सीट पर अपनी पैठ को कायम रखने के लिए यहाँ से चुनावों को रोचक बनाने में लगी हुई है। अब देखना ये होगा कि प्रियंका के साथ कांग्रेस के अन्य कौन कौन स्टार प्रचारक वाराणसी में आकर डेरा डालते है वही भाजपा के तरफ से कितने स्टार प्रचारक अपना डेरा डालते है। कहने को तो पिक्चर अभी बाकी है।

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