वाराणसी – मुस्लिम मतों पर सियासत, मगर रमजान की बधाई देने में एतराज़ ? बढ़िया है

तारिक आज़मी,

वाराणसी। देश में मुस्लिम जनसँख्या शायद नेताओ के लिए सिर्फ वोट बैंक बनकर ही रह गई है। इसकी कई नजीर सामने है। लम्बे वक्त गुज़र गए मगर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू नही हुई। ये एक अलग सी बात है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू करवाने के नाम पर सियासत काफी हुई। मुसलमानों के हितो की बात करने वाले शायद मुस्लिम बाहुल क्षेत्र में जाकर वहा के हालात नही देखते है, तालीम से टूटे मुसलमानों पर मार कारोबार की भी पड़ी। जानकर अचम्भा होगा कि पिछले एक दशक से अधिक समय से बुनकरों की मजदूरी नही बढ़ी है। आप सोच सकते है कि दस साल में महंगाई कितनी बढ़ चुकी है मगर कमाई वैसी ही है जैसे दस साल पहले थी।

खैर बुनकरों के हालात पर और हमारे तालीम पर बाते और भाषण काफी होते रहते है। मेरा कही से आपको कहने का मतलब नही है कि हम इस मुद्दे पर आपका ध्यान केन्द्रित करवाए। सभी राजनैतिक पार्टियों के तरफ से मुस्लिमो के लिए बयान तो जारी होते रहते है मगर मुल्क की एक बड़ी इस आबादी के हालात कैसे सुधरे इसकी फिक्रमंदी किसी को दिखाई नही देती है। हां ये एक अलग बात है कि मुस्लिम मतों पर अपना एकाधिकार समझने वालो की भी कमी नही है। एक लम्बे अरसे तक जहा मुस्लिम मत कांग्रेस के खाते में जाता रहा है वही लगभग तीन दशक से इसके उपर प्रदेश में सपा ने अपना एकाधिकार समझा है। 2007 विधानसभा चुनावों में ये मत बसपा खाते में भी गया था। वही 2014 के लोकसभा चुनावों में मुस्लिम मतों को अरविन्द केजरीवाल अपने झाड़ू निशान पर मोड़ने में कामयाब हो गए थे।

इस सबके बावजूद मुस्लिम मतदाता आज भी सियासी पार्टियों के लिए सिर्फ एक वोट बैंक के तरह ही रह गया है। मतों को पाने के बाद कौन पलट कर मुस्लिम मतदाताओ के तरफ देखता है इसके लिए बताने की ज़रूरत नही है। यहाँ तक हुआ है कि वाराणसी ने कई बार मुस्लिम विधायक दिये है मगर हालात मुस्लिम इलाको और मुस्लिमो की आज भी वैसी ही है। सिर्फ एक वोट बैंक बनाकर रखने वाले सियासत दानो ने कभी मुस्लिम उत्थान के लिए कदम नहीं उठाया। मुस्लिम मतदाता शायद तालीम की कमी के कारण सियासत में भागीदारी नही कर पाया है। जिसने सियासत में भागीदारी किया भी उसने इस समाज के मतों पर अपना एकाधिकार ही समझा है।

ऐसा नही है कि वाराणसी में मुस्लिम समाज के नेताओ की कमी है। अशफाक अहमद डब्लू, से लेकर इस्तकबाल कुरैशी और हाजी समद तथा सलमान बशर जैसे मुस्लिम समाज से आने वाले नेताओ की कमी शहर में नही है। मगर हकीकी ज़मीन पर देखे तो मुस्लिम मतों के लिए नेता सरदार और महतो के रह जाते है। बतौर एक मुस्लिम पत्रकार मुझे इस बात को कहने में कोई हिचक नही है कि मुस्लिम समाज में तालीम की कमी इस समाज को आज भी अपने हकूक पाने के लिए बेचैन और लाचार कर देती है। ये हकीकत है कि मुस्लिम इलाको के सरकारी कार्यालयों में आप नज़र उठा कर देखे तो काम करवाने वाले दलाल जितने दिखाई दे जायेगे उतने अन्य जगहों पर नहीं दिखाई देते है। इस वर्ग की मासूमियत और समझ तथा तालीम की कमी है। ये कम जानकारी और तालीम की कमी इनको एक मामूली सा अप्लिकेशन लिखने के लिए भी दुसरे का मुह ताकने की इजाज़त दे देता है।

खैर इस मामले पर अगर बात करने चले तो काफी लम्बी बात हो जायेगी। एक शेर राहत इन्दौरी का आज के मसले पर ज़ेहन में आ रहा है कि सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है, वह रोजा तो नही रखता मगर इफ्तारी समझता है। इस रवादारी के मामले आपको बस एक हफ्ते में नज़र आने लगेगे जब कई सियासी लोग सरो पर सफ़ेद सियासी टोपी पहन कर इफ्तार की दावत देते दिखाई दे जायेगे। जानते है ये इफ्तार की दावत के बहाने एक तरह से मुस्लिम मतों पर अपनी पकड़ साबित करने का एक बहाना होता है। एक प्लेट में दो खजूर, कुछ नमकीन, एक दो पकौड़ी और थोडा चना। सब मिलकर एक प्लेट मात्र दस रुपयों के खर्च में पूरी हो जाती है। काफी मुनाफेदार सौदा होता है साहब। मात्र दस रुपयों के खर्च पर एक इंसान के दिल में जगह बनाने की कोशिश हो जाती है।

ऐसा नही है कि कोई सियासी दल इससे बचा हो। सभी दलों के तरफ से इस तरह की इफ्तार पार्टी का आयोजन कमोबेस होता ही रहता है। इस मामले पर कई बार सवालो को भी देखना पड़ता है। सेक्युलर और समझदारी की बात अगर करे तो सवाल जायज़ भी है और सवाल बनता है। वजह बताता हु। एक माह के इस पवित्र रमजान में सियासी इफ्तार का आयोजन खूब होता है। मगर नवरात्र के व्रत में व्रत परायण करता कोई नही दिखाई देता है। आखिर ऐसा क्यों ? मुस्लिम समाज के खुद को हमदर्द क्या सिर्फ एक सियासी इफ्तार पार्टी से कोई बन सकता है। अगर ऐसा है तो फिर सभी पार्टी मुस्लिम समाज की हमदर्द हुई तो फिर आज भी ये समाज इतना पिछड़ा क्यों है ? इस समाज में आखिर इतनी आर्थिक विषमता क्यों है ? आखिर इस समाज के रोज़गार पर बहस ज़मीनी स्तर पर क्यों नही होती है। सिर्फ मदरसों को सरकारी मान्यता और उनके लिए आर्थिक सहयोग सरकार द्वारा मिल जाने से ही क्या तालीम आ जायेगी ?

खैर साहब सवालात तो काफी है जिसको अगर पूछने बैठा तो न कलम थकेगी और न लफ्ज़ मगर सुनने वाले कान और देखने वाली आँखे थक ज़रूर जायेगी। आज इस मुद्दे पर कही न कही से दिल को लगी ठेस कुछ कहने को मजबूर कर गई। सपा खुद को मुस्लिम हितैषी बताती है। साफ़ बताता हु कि न मैं उसके दावो का समर्थन करता हु और न ही विरोध कर रहा हु। सपा का उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों हेतु बसपा से गठबंधन है। वाराणसी लोकसभा सीट से गठबंधन प्रत्याशी शालिनी यादव के केंद्रीय चुनाव कार्यालय का उद्घाटन आज हुआ। मौके पर कई मुस्लिम कद्दावर नेता भी मौजूद थे और कुर्तो को विशेष सफेदी से चमका कर अपनी उपस्थिति को प्रदर्शित कर रहे थे। वही आज मुल्क में पवित्र रमजान का चाँद भी नज़र आ गया है। इस अवसर पर जब शालिनी यादव से रमजान हेतु सन्देश की बात कही गई तो उन्होंने कहा कि “मैं शुक्रगुज़ार हु उन मुस्लिम भाई बहनों की जो पवित्र रमजान का व्रत रखकर मेरे साथ चुनाव प्रचार में दिन भर थे।” वगैरह वगैरह,,,,, ये एक अलग बात है कि शालिनी यादव जी जो मुस्लिम मतों और समर्थन का खुद को हकदार बता रही है को ये भी नही मालूम है कि पवित्र रमजान का आज चाँद हुआ है और रोज़े कल यानी मंगलवार से शुरू होंगे आज रोज़ा नही था। मगर क्या करू साहब वही मामला है सियासत और रवादारी का।

खैर यहाँ तक तो ठीक था। शालिनी जी ने शायद अडवांस में ही मुस्लिम समर्थको के लिए अपना शुक्रिया भेज दिया हो। मगर विशेष रूप से जब बधाई सन्देश रमजान के लिए देने को पत्रकार द्वारा कहा गया तो उन्होंने बधाई सन्देश देने से साफ़ मना करते हुवे कहा कि नही बस इतना ही काफी है। लगा जैसे रमजान की बधाई देने से गुरेज़ करने वाली शालिनी यादव जी बधाई देना ही नही चाहती है। खैर साहब उनकी मर्ज़ी है कौन सा हमको बधाई ज़बरदस्ती लेना है। बतौर पत्रकार तो खबर समाप्त होती है, मगर बतौर एक वाराणसी लोकसभा का मुस्लिम नागरिक और मुस्लिम मतदाता एक शब्द है। शायद हमारे समाज को बधाई की आवश्यकता भी नही है। एक बधाई नही देने से हमारे इस पुरे एक पाक महीने की खुशिया कम नही हो जायेगी अथवा अगर कोई बधाई देता है तो बढ़ भी नही जायेगी। बधाई सन्देश से इतना गुरेज़ आपकी अपनी स्वेच्छा है। बहरहाल उनका जो पैगाम है वो अहल-ए-सियासत जाने, हमारा तो पैगाम-ए-मुहब्बत है जहा तक पहुचे। शायद ये दो लाइन ही अपने अन्दर सार समेटे है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *