काशी में पत्रकारिता की एक शान, अलविदा कह गये इस जहाँ को जुनैद खान, देखे कुछ यादगार तस्वीरे
जब भी मिलता ऐ दोस्त तो मुस्कुराता था, खुद भी हसता था और हम सबको भी हसाता था, खुशिया समेटे दामन में सबकी खुशियों का सबब भी बन जाता था, आज ऐसी भी क्या जल्दी थी मेरे दोस्त वक्त रुखसत अलविदा तक न कहा और रुला गया ?
तारिक आज़मी
वाराणसी. वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार और मेरे अज़ीज़ दोस्त, सुविख्यात समाजसेवक जुनैद खान इस दुनिया को आज सुबह लगभग 11 बजे अलविदा कह गए। जुनैद खान को विगत सप्ताह ब्रेंन हेमरेज के कारण अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।
जुनैद खान वाराणसी के एक सांध्य कालीन दैनिक समाचार पत्र में सह सम्पादक के पद पर कार्यरत थे। मृदुभाषी जुनैद खान को क्षेत्र में प्रिंस नाम से भी जाना जाता था। छोटी सी उम्र में ही जुनैद खान ने पत्रकारिता और समाज सेवा में अपना आला मकाम बनाया था। हाजियों के खिदमतगुज़ार के तौर पर मशहूर जुनैद खान वाराणसी मरकजी हेलाल कमेटी जिसे चाँद कमेटी के नाम से भी जाना जाता था के मीडिया प्रभारी के साथ बाम्बे मर्केंटाइल बैंक के कार्यकारी कमेटी में मानिंद सलाहकार के पद पर भी कार्य करते थे।
बताया जाता है कि जिस समय जुनैद खान को ब्रेन हेमरेज हुआ था उस समय वह हाजियों के हज यात्रा के इंतज़ाम में लगे हुवे थे। हाजियों के खिदमतगुज़ार जुनैद खान बेहोशी के आलम में भी हाजियों के खिदमत के फिक्रमंद थे, और जुबा से हाजियों के इंतज़ाम की बाते कर रहे थे। उनके तीन बच्चे अपने वालिद के इन्तेकाल का यकीन ही नहीं कर पा रहे है। यही नही जैसे ही प्रिंस के इन्तेकाल की खबर पत्रकारों को लगी वाराणसी के पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार राधा रमण चित्रांशी ने अपने शोक सन्देश में कहा है कि जुनैद के रूप में काशी की पत्रकारिता को एक ऐसी क्षति हुई है जिसकी भरपाई नही हो सकती है। वही वरिष्ठ पत्रकार अरशद आलम ने अपने शोक सन्देश में कहा “जुनैद खान, बनारस में पत्रकारों की एक शान थे, मृदुभाषी जुनैद खान के इन्तेकाल से सिर्फ मुझे ही नहीं पुरे पत्रकार समाज को एक गहरा सदमा लगा है। हम सभी शोकाकुल परिवार के साथ खड़े है।
जुनैद खान के इन्तेकाल की खबर लगते ही pnn24 न्यूज़ कार्यालय में शोक की लहर दौड़ गई, गम के इस माहोल में कार्यालय में एक शोक सभा के बाद दुआ-ए-मगफिरत हुई। इस दौरान मृत पत्रकार के मगफिरत के साथ उसके घर वालो अज़ीज़ कारीब को सब्र अता करने के लिये रब्बुल आलमीन के बारगाह में दुआ ख्वानी हुई।