अन्तरात्मा भी दिव्या शक्ति के रुप में एक गुरु है – ईश्वरदास ब्रह्मचारी

उमेश गुप्ता

बिल्थरारोड (बलिया)। अद्वैत शिवशक्ति परमधाम डूहा के संस्थापक एवं परिवज्रकाचार्य ईश्वरदास ब्रह्मचारी ने कहा कि गुरु महिमा की ब्याख्या आदि से अनन्त तक की जाय तब भी पूरी सम्भव नही है। गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है। अन्तरात्मा भी दिब्य शक्ति के रुप में एक गुरु है, जिससे हर कोई मानव कोई कार्य करने से पहले उससे एक बार जरुर पूछ लेता है। विगड़ता वहीं है जहां वह अपने मन का काम करता है।

डूहा के संस्थापक एवं परिवज्रकाचार्य ईश्वरदास ब्रह्मचारी मगलवार को गुरुपूर्णिमा पर्व के मौके पर हजारों की संख्या में पधारे भगवान के भक्तों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होने कहा कि सद्गुरु के विना केवल सांस्कारिक ज्ञान हम पा सकते हैं। एक स्मृति बनी हुयी है जो इस शरीर को चला रहा है। सद्गुरु से ब्वहारिक ज्ञान मिला हुआ है। जो मर्यादा का बोध कराता है। संतो कहना है सत्य बोलो और धर्म पर चलो जीवन धन्य हो जायेगा। हमें सद्गुरु के स्वरुप को देखा है भगवान शंकर माता पार्वती से बोलते हैं। चार पाया होते है गुरु के सिंहासन के चार पाया हैं, काम क्रोध मोह मोक्ष। जिस पर सारा जीवन आधारित है। ऐसा विचित्र सिहांसन धरती कभी नही रोक पायेगी।

कहा कि लोग मानते हैं कि शेषनाग की मस्तक पर पूरी धरती टिकी हुयी है, तो शेषनाग कहा बैठा हुआ है। गुरु की महिमा इतनी अपार है जिसे लेकर हम प्रत्येक वर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाते हैं। जीवन में गुरु का अपना एक अलग महत्व है जिसे अपने आचरण में उतारने से ही जीवन सार्थक है। इस मौके पर जल यात्रा, हवन पूजन, आरती के आयोजन के बाद महाप्रसाद का वितरण किया गया। यज्ञाचार्य की भूमिका में पंडित रेवती रमण तिवारी ने निभाया।

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