हर उस जिले जिसमे 100 से अधिक पास्को मामले लंबित है, वहा विशेष पास्को कोर्ट का हो निर्माण – सुप्रीम कोर्ट
आफताब फारुकी
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज विशेष पास्को अदालतों पर सख्त रुख अख्रियार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी करते हुवे कहा है कि केंद्र सरकार देश के हर जिले में विशेष पॉक्सो कोर्ट बनाएगी जहां 100 से ज्यादा पॉक्सो मामले लंबित हैं। इन अदालतों के लिए फंड केंद्र सरकार देगी। केंद्र सरकार 60 दिन में ये कोर्ट बनाएगी। देश भर में बच्चों से रेप पर जनहित याचिका है। कोर्ट मित्र ने कहा कि सिर्फ दिल्ली में ही विशेष पॉक्सो अदालत बनाई गई हैं। दिल्ली की साकेत कोर्ट में बच्चों से संबंधित यौन उत्पीड़न को लेकर दो अदालतों का गठन हो सकता है। बच्चों के लिए फ्रेंडली माहौल बनाया जा सकता है
सीजेआई ने विशेष अदालतों का गठन ना होने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा- विशेष अदालतें नहीं बनाई गई हैं। क्या हो रहा है, आपके पास एक जज है और जब एक विशेष काम होता है और आप उसे वो काम भी दे देते हैं और आप उसे काम के बोझ के नीचे दबा देते हैं। फिर आप कहते हैं कि मुकदमे में देरी हो रही है। संसद में कानून में संशोधन पारित होने पर मीडिया में बड़े बयान दिए जाते हैं, लेकिन जब वास्तविक काम की बात आती है तो कुछ भी नहीं किया जा रहा है। हमें हर जिलों में विशेष पास्को अदालतों की आवश्यकता है।
आर्किटेक्चर में भी बच्चों के हिसाब से बदलाव किया जा सकता है, जेजे एक्ट और पॉक्सो एक्ट में इसका प्रावधान है। दिल्ली में एक विशेष जज के पास एक साल में करीब 400 केस सुनवाई के लिए आते हैं, इसलिए उन पर केसों का बोझ रहता है। सीजेआईI ने कोर्ट मित्र से पूछा कि पूरे देश में जिले के हिसाब से पॉक्सो के अंतर्गत कितने मामले दर्ज है इसकी जानकारी है? इस पर कोर्ट मित्र ने कहा कि हर जिले में नंबर अलग-अलग है, लेकिन हर जिले में औसतन 250 केस हैं।
यानी देशभर के हर जिले में एक साल में 250 मामले बच्चों से यौन उत्पीड़न के दर्ज होते है। जिलों में स्पेशल जज नहीं हैं तो ट्रायल कोर्ट को ये दिए जाते हैं। फोरेंसिक रिपोर्ट के अभाव में ही केस 6-9 महीने लेट हो जाता है। कोर्ट मित्र ने कहा डीएनए टेस्ट लैब ज्यादातर जिलों में नहीं है। कई मामलों में तो ऐसा होता है कि ऍफ़एसएल ये कहता है कि सैंपल डैमेज हो चुका है, लिहाजा इसकी जांच नहीं हो सकती।