नेचर गाइडो के क्षमता विकास प्रशिक्षण का हुआ आयोजन
फारुख हुसैन
लखीमपुर खीरी। उत्तर प्रदेश का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान दुधवा टाइगर रिजर्व जिसमें पर्यटन की अपार संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए पूर्ववर्ती सरकार द्वारा अपने कार्यकाल के अंतिम समय में प्रयास की उम्मीदें जगी थी। जबकि वर्तमान सरकार द्वारा प्रारंभ से ही इस विषय पर अच्छे प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार एवं दुधवा टाइगर रिजर्व प्रशासन का इस ओर ध्यान आकृष्ट किया जाना, उनकी नैतिक जिम्मेदारी में सम्मिलित है। परंतु इस ओर किसी बाह्य संस्था द्वारा प्रयास किया जाना वास्तव में अत्यंत सराहनीय है।
इसी कड़ी में दुधवा टाइगर रिजर्व के सहयोग से नेचर कंजर्वेशन एंड इको फाउंडेशन द्वारा निरंतर दुधवा टाइगर रिजर्व के आस-पास के गांव, विद्यालयों में वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर वन एवं वन्य जीव को बचाए रखने हेतु एक मुहिम चलाकर कार्यक्रमों का आयोजन करता रहा है। यद्यपि दुधवा टाइगर रिजर्व की पहचान अभी मात्र टाइगर तक की सोच के बारे में सीमित रह कर रह गई है, जबकि दुधवा टाइगर रिजर्व में ऐसे कई विषय हैं जिन पर शोध किया जा सकता है एवं पर्यटन की संभावनाएं भी हैं। जिन्हें विकसित किए जाने की आवश्यकता है। अभी तक जिस क्षेत्र की तरफ किसी का विशेष ध्यान नहीं जा रहा था। उस तरफ नेचर कंजर्वेशन एंड इको फाउंडेशन के सचिव लीलाधर उर्फ सोनू के प्रयासों के चलते दुधवा टाइगर रिजर्व एवं वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट के सहयोग से “इक्वटिक टूरिज्म” विषय पर कैपेसिटी बिल्डिंग ट्रेनिंग फॉर नेचर गाइड फेज वन का आयोजन दुधवा टाइगर रिजर्व की पर्यटन रेंज के ऑडिटोरियम में किया गया।
इसमें डॉक्टर प्रबल सरकार एसोसिएट प्रोफेसर यूनिवर्सिटी आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी मेघालय से प्रशिक्षक के रूप में उपस्थित रहे। दुधवा में एक्वटिक टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। क्योंकि यहां एक से बढ़कर एक अत्यंत उत्कृष्ट वेटलैंड स्थापित हैं। जिनमें से किशनपुर रेंज के झादी ताल की अलौकिकता की ख्याति पूर्व से ही प्रसिद्ध है। जबकि इसके अलावा दुधवा में दक्षिण सोनारीपुर रेंज के अंतर्गत पर्यटन के क्षेत्र में स्थापित भदरौलाताल, बांकेताल एवं ककरहा ताल का अपना एक अलग ही आयाम स्थापित है। इसमें ना सिर्फ जलीय इंडेंजर्ड स्पीशीज के वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, बल्कि जलीय जीवों की भी प्रचुरता है। इसके साथ-साथ ही इसके आसपास एवं इसमें वन्य जीवों का एक साथ एकत्रीकरण विशेष करके चीतल, काकड़, पाड़ा, सांभर, बारहसिंगा, गैंडा आदि का एकत्र होना इन वेटलैंड्स की अलौकिकता में चार चांद लगाते रहते हैं।
बताया कि किशनपुर रेंज के अंतर्गत झादी ताल के आसपास सैकड़ों हजारों की संख्या में एक साथ एकत्र रहने वाले चीतल, काकड़, पाड़ा, सांभर, बारहसिंगा, आटर, विविध प्रकार के जलीय पंक्षियों की प्रचुरता को कौन भूल सकता है। एक बार इस क्षेत्र का जिस भी पर्यटक द्वारा भ्रमण कर लिया जाता है, उसका बार-बार क्षेत्र में आने का मन बना रहता है। इको पर्यटन की दृष्टि से शोध के रूप में इस विषय का अपना अलग ही महत्व है। जिसे नेचर गाईड अपनी पर्यटन की यात्रा में शामिल कर पर्यटन को और रुचिकर बना सकते हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे दुधवा टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक मनोज सोनकर एवं वन्य जीव प्रतिपालक दुधवा शशिकांत अमरेश द्वारा किया गया। उप निदेशक दुधवा द्वारा अपने उद्बोधन में कार्यक्रम के आयोजक में विशेष तौर से सक्रिय रहे लीलाधर उर्फ सोनी की सराहना किया। वहीं कार्यक्रम के विषयों से प्रेरणा लेकर पर्यटन में नई ऊर्जा के साथ कार्य किए जाने हेतु नेचर गाइडो को प्रेरित भी किया। वन्य जीव प्रतिपालक दुधवा द्वारा कार्यक्रम के आयोजकों, प्रशिक्षक एवं उपस्थित प्रतिभागियों का आभार प्रकट किया गया। कार्यक्रम के आयोजकों में विशेष रूप से सक्रिय रहे लीलाधर उर्फ सोनू द्वारा अवगत कराया गया। इक्वटिक टूरिज्म के विषय पर यह कार्यक्रम के फेज -वन का आयोजन किया गया है।
इस तरह के फेज-टू, फेज-3 आदि के कार्यक्रम आगे और भी आयोजित होते रहेंगे, जिन पर विचार विमर्श किया जा रहा है। कार्यक्रम में नेचर कंजर्वेशन एंड ईको फाउंडेशन की टीम के साथ साथ-साथ दुधवा टाइगर रिजर्व के समस्त(नेचर गाइड) पर्यटक मित्र, वाहन चालक आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम के आयोजन में पूरी इको फाउंडेशन की टीम के साथ-साथ पर्यटन रेंज की टीम का विशेष सहयोग रहा।