घाघरा का कहर – उम्र बीत गई थी एक आशियाँ बनाने में, तुझे तरस भी न आया मेरी बस्तिया मिटाने में
फारुख हुसैन
लखीमपुर खीरी÷ धौरहरा इलाके में अभी भी घाघरा नदी का कहर जारी है। हर रोज कटान में किसानों की सैकड़ों बीघा जमीन समा जा रही है। लेकिन फिर भी प्रशासन का बचाव कार्य बंद है। इससे ग्रामीणों में दहशत है। आसपास में रहने वाले कई ग्रामीण पलायन करने की सोच रहे हैं।
इलाके के गांव रामनगर बगहा, गुलरिया तालुके और अमेठी में घाघरा नदी का कटान तेजी से जारी है। किसानों की धान गन्ने की फसल घाघरा नदी में समा रही हैं। बाढ़ खंड विभाग की तरफ से बचाव कार्य बंद है। घाघरा नदी में बगहा गांव के 18 घर काट चुके है। कटान पीड़ितों को किसी भी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला है। कटान पीड़ित रास्ते पर छप्पर डालकर अपना जीवन यापन रह रहे हैं। उनके पास रहने और खाने की दिक्कत हो रही है। घाघरा नदी में रामनगर बगहा के इतवारी, राजेश, मालती, सरवन, राममूर्ति, जमुना प्रसाद, विशंभर और रामकली समेत 50 लोगों की फसल समेत कृषि भूमि कट चुकी है।
यह ग्रामीण पाई पाई को मोहताज हो गए हैं। न तो इनके पास खाने को रोटी बची है और न ही रहने को घर। जिस फसल से इन ग्रामीणों को बहुत उम्मीदें थी, वह भी कट कर घाघरा में समा चुकी है। गुलरिया और अमेठी में राम लखन, कमलेश, रामकिशोर, जगदीश प्रसाद, अनिल कुमार, विशंभर, अशोक जायसवाल समेत 40 लोगों की घाघरा नदी में कृषि योग्य जमीन कट चुकी है। फसल बर्बाद हो जाने से ग्रामीण बर्बाद हो चुके हैं। इसी फसल से ग्रामीणों के घर सालभर चूल्हा जलता था। कटान की वजह से मौजूदा समय में तो किसान के घर दो वक्त की रोटी की दिक्कत हो ही गई है। साथ ही इन किसानों को यह भी चिंता खाए जा रही है कि उनके परिवार का साल भर चूल्हा कैसे जलेगा।