नए रेपिड टेस्ट, एंटीबायोटिक दवाओं के अनुपयुक्त इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए ज़रूरी : विशेषज्ञों के पैनल
संजय ठाकुर
दिल्ली – एंटीबायोटिक दवाओं ने हमें बीमारियों से लड़ने और लाखों लोगों का जीवन बचाने में सक्षम बनाया है, किंतु वर्तमान में उपलब्ध ज़्यादातर एंटीबायोटिक दवाओं के लिए बैक्टीरिया रेज़िस्टेन्स पैदा कर रहे हैं। दुनिया भर में 2050 तक ड्रग-रेजिस्टेन्ट सुपरबग्स (ऐसे बैक्टीरिया जिन पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं होता) के कारण 10 मिलियन लोगों के मरने का अनुमान है, नए रेपिड डायग्नाॅस्टिक परीक्षणों के द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं के गलत सेवन या ज़रूरत से ज़्यादा सेवन पर लगाम लगाने की तुरंत आवश्यकता है। एएमआर से लड़ने में रेपिड टेस्ट की भूमिका आज के गोलमेज सम्मेलन का मुख्य चर्चा बिन्दु रही, जिसका आयोजन बिराक और नेस्टा चैलेंजेज़ द्वारा किया गया था।
भारत के नेशनल काउन्सिल ऑफ़ साइन्स म्यूज़ियम और साइन्स म्यूज़िम ग्रुप, लंदन के सहयोग से दिल्ली के राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र में आयोजित एक नई प्रदर्शनी की शुरूआत हुई। दुनिया भर से नैदानिक उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों, चिकित्सकों, प्रोफेसरों और रेपिड डायग्नाॅस्टिक टेस्ट के प्रमुख आविष्कारकों इस सत्र में हिस्सा लिया और इस विषय पर विचार-विमर्श किया कि कैसे ये रेपिड टेस्ट भारत के चिकित्सकीय परिवेश में कारगर हो सकते हैं।
2013 में चेन्नई में हुई घोषणा के बाद से भारत ने एंटीबायोटिक रेज़िस्टेन्स पर लगाम लगाने के प्रयासों को तेेज़ कर दिया है। इसी के मद्देनज़र बिराक कई भारतीय स्टार्ट-अप्स एवं एसमएमई को लाॅन्गिट्यूडिनल पुरस्कार हेतु प्रतिस्पर्धा के लिए सहयोग प्रदान कर रहा है- यह विश्वसतरीय प्रतियोगिता एंटीबायोटिक दवाओं के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए तीव्र, सटीक, सुरक्षित नैदानिक परीक्षण के विकास को बढ़ावा देगी। पुरस्कार के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले इनोवेटर्स ने सेमिनार के दौरान अपने नैदानिक परीक्षण प्रस्तुत किए- इनमें भारत के सरकार के जैव प्रोद्यौगिकी विभाग के प्रतिनिधि भी शामिल थे।