बोल के लब आज़ाद है तेरे – (मऊ इंदारा जक्शन) आसान रास्तो से गुज़र जाइये जनाब, सच बोलने वाले तो सलीबो पर चढ़े है
बापू नन्दन मिश्रा
बोल के लब आजाद हैं तेरे, इस शब्द का कोई तोड़ नहीं। यह वह शब्द है जो अदृश्य को दृश्य बनाने की ताकत रखता है। छुपे को दिखाने की ताकत रखता है। जो अछूते अधूरे अकल्पनीय है। इस जहां में सही को सही और गलत को गलत बताना ही इस शब्द की ताकत है।देश में विकास हुआ या नही हुआ इस बहस का हिस्सा बनने के बजाये हम असली मुद्दों की बात करते है। हम वह नही जो मुद्दों से भटका कर कही और नया मुद्दा बेमतलब का खड़ा करके उसके ऊपर बहस करना शुरू कर दे।
बहरहाल, जब हर तरफ नेतागण द्वारा विकास की बात हो रही है तो थोडा विकास की बात हम भी कर लेते है। ये वो विकास नही जो शर्मा जी के बेटे है। यह विकास समाज का होने की बात हो रही है। अर्थव्यवस्था पर तो इतना सन्नाटा क्यों है भाई, तो फिर विकास की बात कर लेते है। प्रदेश में एक जिला है, वैसे तो जिला ये ज्यादा पुराना नही है आजमगढ़ से टूट कर जिला बना है, मगर मऊ की शान तवारीख बड़े शान से बयान करती है। मऊ जनपद का ही एक इलाका है इंदारा। जनपद के पुराने बस्तियों में से एक इंदारा के सम्बन्ध में इतना बता देना ज़रूरी है कि जब भी मऊ (तत्कालीन आजमगढ़) का इतिहास पढ़ा जायेगा तो उसके हर दुसरे सफे में इंदारा का नाम ज़रूर आएगा।
आज हम आपको इंदारा स्टेशन पर ले चलते है। जहां से दो रास्ते हैं, एक गोरखपुर के तरफ जाता है, तो दूसरा बलिया छपरा होते हुए आगे निकलता है। दोनों तरफ जाने वाले रास्तो से लगभग पन्द्रह से ऊपर एक्सप्रेसो व पैसेंजर ट्रेनों का रुकना होता है। जिससे लोगों का आवागमन सुचारू रूप से चलता है। जब पन्द्रह से बीस ट्रेनें रुकेगी तो जाहिर सी बात है लोग भी बहुत होंगे। लेकिन साहब लोग तो हैं ट्रेनें भी हैं रूकती भी हैं। लोग आते जाते भी हैं। लेकिन किस तरह आते जाते हैं, उसका कोई अंदाजा भी आपको है। आज तक विगत छह-सात महीनों से इंदारा रेलवे स्टेशन का ओवर ब्रिज रोक दिया गया है। लोग रेलवे ट्रैक पारकर स्टेशन पर जाते हैं, और अपनी यात्रा करते हैं।
कष्ट तो इस बात का है जब कोई माल गाड़ी यदि ट्रैक पर है तो यात्री कितने कष्ट से या तो गाड़ी के नीचे से अथवा गाड़ी के ऊपर से रेलवे स्टेशन पर पहुंचता है। खुदा न खास्ता यदि ट्रेन स्टार्ट हो गई, कोई नीचे से गुजर रहा हो, तो क्या होगा ? सही जवाब दिया आपने कि नीचे से गुज़र रहा शख्स गुज़र ही जायेगा। लेकिन इस पर शासन का कोई नजर नहीं है। रेलवे के आला अधिकारी आंखों पर पट्टी और कानों में तेल डालकर सोए हुए है। तभी तो साहब छ महीने हो गए अभी तक ओवरब्रिज प्रारंभ नहीं हुआ। आदमी को चलने वाला जानवरों का ठिकाना बना हुआ है। लेकिन सत्ता और शासन पर इसका कोई असर भी नहीं।
भाई हो भी कैसे अब आप ही बताओ, सब तो चाहते है कि अपने इलाके में एक क्रांतिकारी हो। एक महात्मा गाँधी, एक सुभाष चंद्र बोस, राजगुरु, भगत सिंह, अशफाकुल्लाह खान सभी चाहिए क्षेत्र में। मगर इनमे से कोई एक भी अपने घर में नही बल्कि पडोसी के घर में होने चाहिए। हमारी ज़रूरत पड़े तो हम उनकी मदद ले सके। मगर वो हमारे घर में न हो। है न कमाल की सोच। अब आप ही बताओ। इतनी बड़ी समस्या से रूबरू लोग महीनो से हो रहे है। हमसे हर एक मिलने वाले ने वहा कहा कि इसकी खबर लिखी जानी चाहिए। मगर कैमरे पर बयान देने को कोई तैयार नही हुआ।
क्यों भाई क्यों नही देना चाहते है लोग बयान। सिंपल सवाल का सिम्पल जवाब है कि साहब जो किसी ने कहा तो नही हमसे मगर हम है तो इतने समझदार की समझ जाए। अब आप सोचो सच अगर कोई बोलेगा तो कही कोई नेता जी बुरा न मान जाए, जैसे एक नेता जी बेल्थरा के बुरा मान बैठे क्योकि पत्रकार ने सच लिख दिया। बस उसी तर्ज पर कौन बुराई भलाई ले साहब, जैसे चल रहा है चलता रहे। खुद का घर अगर अँधेरा है तो पडोसी के घर में अँधेरे को देख हम शांति अख्तियार कर लेते है। इसको कमाल ही कहेगे न साहब
बहरहाल, बात को हमको ख़त्म भी करना है तो कोई और रास्ता देखकर कही और बात को ले जाना भी आसन काम है। वो क्या शेर है न एक कि आसान रास्तो से गुज़र जाइए जनाब, सच बोलने वाले तो सलीबो पर चढ़े है। वैसे आसान नही होता है नेता जी सच बोलना, रेल के बड़े बड़े अधिकारियो से हम क्या निवेदन कर सकते है। वो लोग सभी बड़े साहब है, बस यही कहेगे हुजुर कुछ वक्त तो गुज़ारिए इस तरह के हालत के साथ साहब।