हाईकोर्ट के एडीसी सिरमौर को आदेश, पांवटा नप के कार्यों की करें जांच
पूजा धीमान शिमला :
शिमला। हाईकोर्ट (High Court) ने निर्देश जारी किए कि राज्य सरकार जहां नौकरी देने, अनुबंधों में प्रवेश देने, कोटा या लाइसेंस जारी करने या अन्य प्रकार के अनुदान देने जैसे सार्वजानिक हित के कार्य करती है, वहां सरकार मनमाने तरीके से कार्रवाई नहीं कर सकती। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार की शक्ति या विवेक तर्कसंगत, प्रासंगिक और गैर-भेदभावपूर्ण मानको पर आधारित होना चाहिए। नगर परिषद पांवटा साहिब द्वारा नियमों के विपरीत दुकान अलॉट किए जाने के मामले में हाईकोर्ट (High Court) ने अतिरिक्त जिलाधीश सिरमौर प्रियंका वर्मा को आदेश दिए कि वह नगर परिषद द्वारा पिछले एक दशक में हुए कार्य बारे जांच करें और अनुपालना रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश करें।साथ ही न्यायालय ने प्रार्थी सुमन अग्रवाल द्वारा कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने पर उसे पचास हजार रुपए की कॉस्ट लगाईं है।
मामले के अनुसार प्रार्थी ने बिना किसी प्रोपोजल या विज्ञापन के नगर परिषद के पास आवेदन किया कि वह अपने खर्चे पर दुकान बनाना चाहती है। रिकॉर्ड का अवलोकन के पश्चात न्यायालय ने पाया कि आश्चर्य वाली बात यह है कि नगर परिषद ने भी वर्ष 2009 में प्रार्थी से इस एवज में दस हजार रुपए एडवांस भी ले लिए। प्रार्थी उसके बाद बार-बार नगर परिषद के कार्यालय में बाकी के पैसे जमा करवाने के लिए जाता रहा, लेकिन नगर परिषद के अधिकारी उसकी बात टालते रहे। वर्ष 2013 में प्रार्थी को पता चला कि नगर परिषद उक्त दुकान को किसी दुसरे व्यक्ति को अलॉट कर रही है।
तभी प्रार्थी ने निचली अदालत के समक्ष सिविल सूट दायर किया, जिसे बाद में प्रार्थी ने नया सिविल सूट दाखिल करने की छूट के साथ वापस ले लिया। प्रार्थी ने नगर परिषद नाहन द्वारा 30 अगस्त 2013 को पारित प्रस्ताव नंबर 12 को हाईकोर्ट के समक्ष याचिका के समक्ष चुनौती दे डाली, जिसके तहत प्रतिवादी मदन शर्मा को दुकान आवंटित की गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि नगर परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर अलॉट तो कर दिया गया, लेकिन साथ ही नगर परिषद ने अलॉटमेंट नियमों को दरकिनार किया गया। अदालत ने नगर परिषद को आदेश दिए कि वह उक्त प्रतिवादी से 6 फीसदी ब्याज दर से उस समय की नीलामी कीमत वसूलें जोकि अधीक्षण अभियंता लोक निर्माण विभाग नाहन द्वारा तय की जाएगी। अगर यह प्रतिवादी दुकान की कीमत देने के लिए तैयार न हो तो इस दुकान को नियमों के मुताबिक किसी अन्य व्यक्ति को अलॉट किया जाए।