सिर्फ एक साल और 5 राज्यों से भाजपा को सत्ता से बेदखल कर कांग्रेस ने तलाशी अपनी खोई सियासी ज़मीन
आदिल अहमद/ रोहित कुमार
वाराणसी: कांग्रेस लोकसभा चुनावों में हार के बाद अपनी सियासी ज़मीन की तलाश में दिखाई दे रही थी। आन्तरिक हलचल और इस हलचल पर भाजपा नेताओं के जमकर हमलावर होने के बाद भी कांग्रेस ने कही न कही अपनी रणनीति को सजोये रखा था। बीते दो लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के बेहतरीन प्रदर्शन और कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद एक तरफ पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को बड़ा रणनीतिकार साबित किया जा रहा था। वहीं दूसरी तरफ कमजोर होते विपक्ष की बात भी चल उठी थी। 2019 में जब लगातार दूसरी बार बीजेपी जीतकर आई तो राजनीति के जानकारों ने इसका श्रेय कमजोर विपक्ष को भी दिया। बीजेपी की जीत और कमजोर विपक्ष पर उठ रही उंगलियों के बीच कांग्रेस पार्टी की रणनीति पर भी सवाल खड़े होने लगे थे। ऐसे में कांग्रेस के सामने अपनी खो रही सियासी जमीन तलाशने की बड़ी चुनौती थी।
अध्यक्ष बनने के बाद ही राहुल गांधी ने संगठन को जमीनी स्तर से दोबारा खड़ा करने की कवायद शुरू की। इसका फायदा पार्टी को मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव में भी मिला। लेकिन राहुल गांधी 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें नहीं दिला सके। इस चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कई महीनों तक चली प्रक्रिया के बाद पार्टी ने एक बार फिर वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी को जिम्मेदारी सौंपी। सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया।
राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने और बाद में सोनिया गांधी को पार्टी का कमान देने का साफ तौर पर असर विधानसभा चुनाव के परिणामों में दिखा। पार्टी ने 2018 और 2019 के बीच हुए विधानसभा चुनावो में भाजपा को कुल 5 राज्यों में सत्ता से बेदखल कर दिया है।
एमपी-राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बनाई कांग्रेस ने सरकार
राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद 2018 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने पहले से बेहतर प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को इस चुनाव में 114 सीटें मिलीं, जो पिछले चुनाव से 56 सीटें ज्यादा थीं। वहीं राजस्थान में कांग्रेस को कुल 100 सीटें मिलीं, पिछले चुनाव में राज्य में कांग्रेस को महज 21 सीटें मिली थीं। यानी पिछले चुनाव की तुलना में यहां कांग्रेस को 79 सीटों का फायदा हुआ। उधर, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ते हुए राज्य में बुहमत के साथ सरकार बनाई। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 2018 में हुए चुनाव में कुल 68 सीटें जीतीं। बता दें कि पिछले चुनाव (2013) में कांग्रेस को 39 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस ने किया वापसी
राज्यों के चुनाव में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन 2019 में भी जारी रहा। पार्टी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में पहले की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। महाराष्ट्र में सीटों के लिहाज से तो कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 के आसपास ही रहा, लेकिन उसकी सहयोगी एनसीपी 41 से बढ़कर 54 तक पहुंच गई। जबकि हरियाणा में तो पार्टी सरकार पिछले चुनाव से दोगुना सीटें हासिल की। खास बात यह है कि हरियाणा चुनाव में राहुल गांधी ने जहां गिनती की ही रैलियां की थी वहीं सोनिया गांधी यहां चुनाव प्रचार से पूरी तरह से दूर रहीं थी। जानकारों का मानना है कि अगर पार्टी राज्य में थोड़े समय पहले चुनावी मूड में आ जाती तो इसकी सीटों में और इजाफा हो सकता था।
झारखंड में भी हुई भाजपा की करारी हार
कांग्रेस ने झारखंड चुनाव में भी ज़बरदस्त वापसी किया और जेएमएम के साथ गठबंधन की जीत हासिल कर स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया है। झारखंड विधानसभा की 81 सीटों के लिए मतदान की गिनती में बीजेपी को JMM-कांग्रेस गठबंधन ने ज़बरदस्त हार का स्वाद चखा दिया। गठबंधन कुल 47 सीटों को जीत कर भाजपा को मात्र 25 सीट पर सिमित कर दिया। स्पष्ट बहुमत पाई कांग्रेस गठबन्धन की सरकार के बाद भाजपा को सत्ता से उतार फेकने वाली कांग्रेस की यह एक बड़ी जीत है। भाजपा ने जहा झारखण्ड में राम मंदिर, धारा 370 और नागरिकता संशोधन कानून का कार्ड खेला था तो कांग्रेस गठबंधन ने ज़मीनी स्तर की स्थानीय समस्याओं पर चुनाव लड़ा था। और आखिर स्थानीय मुद्दे भारी पड़े और भाजपा सत्ता से बेदखल हो गई।
बेदखली भी कोई छोटी नहीं रही, खुद मुख्यमंत्री रघुबर दास अपना चुनाव हार गए और निर्दल प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े सरयू राय ने चुनाव जीत कर भाजपा को एक और बड़ा झटका दिया है। भाजपा की तरफ से खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस राज्य में 9 रैली, अमित शाह ने 11 रैली और रघुबर दास ने कुल 51 रैलिया किया था। भाजपा ने चुनाव में पूरी ताकत झोक दिया था। वही कांग्रेस के बड़े नेताओं की इस चुनाव में रेलिया भाजपा के अनुपात में न के बराबर हुई। इसके बाद भी भाजपा की यह हार कही न कही से केंद्रीय नेतृत्व पर भी बड़ा सवाल उठा रही है।