प्रयागराज का शाहीन बाग़ बना मंसूर अली पार्क, लगातार बढ़ रही NRC,CAA के विरुद्ध प्रदर्शन में महिलाओं की तायदात, कम पड़ रही पार्क में जगह
तारिक खान
प्रयागराज. “इक वादा करोगो, इक बात मानोगे, हां भइया हां, हां भइया हां। हिंदू से लड़ोगे, मुस्लिम से लड़ोगो, ना भइया ना, ना भइया ना। आरएसएस से लड़ोगे, भाजपा से लड़ोगे, हां भाई हां, हां भाई हां।“ जुल्मी जब भी जुल्म करेगा सत्ता के हथियारों से, चप्पा-चप्पा गूंज उठेगा, इंकलाब के नारों से। इस मुल्क की खाक से खाक अपनी मिलाएंगे, न बुलाए आपके आए थे, न निकाले से जाएंगे। तुम स्टूडेंट्स से जो टकराओगे, बड़ा पछताओगे, बड़ा पछताओगे। जैसे नारों से आज इलाहबाद स्थित मोहल्ला रोशनबाग़ गूंजता रहा। जहा हज़ारो की ताय्दात में महिलाये एक साथ इन नारों को दिन भर लगा रही है। आज आठवे दिन भी CAA,NRC और NPR के खिलाफ महिलाओं का प्रदर्शन जारी है।
इस दौरान मौजूदा बैरिकेटिंग का घेरा कम पड़ जाने के कारण प्रशासन ने घेरे को और भी बड़ा कर दिया है। आज शहर में इस इस विरोध प्रदर्शन के दौरान तिरंगा यात्रा भी निकली जिसमे हज़ारो की भीड़ ने हिस्सा लिया। इसके अलावा कई राजनैतिक व्यक्तियों ने पार्क में पहुच कर विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया है।
बताते चले कि प्रयागराज के शाहीन बाग बने मिर्जा गालिब रोड स्थित मंसूर अली पार्क में एनआरसी और सीएए के विरोध में पिछले रविवार को मात्र दस महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। इसके बाद रोज़ रोज़ नही बल्कि पल पल महिलाओं की संख्या बढती ही गई। जुटीं महिलाओं में जोश और जज्बे के साथ ही अपनी मुहिम के लिए ऐसा हौसला और मजबूत इरादे हैं कि वे अंजाम से पहले वहां से टस से मस हटने को तैयार नहीं।
प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि वह अपने हक के लिए आवाज उठा रही हैं क्योंकि उन्हें समझ में आ गया है कि क्या सही है और क्या गलत। यह हमारे मौलिक अधिकार पर हमला है। कमाल है जब हमारा वोट चाहिए था, तब हम नागरिक थे, अब नहीं रहे। आप हमसे हमारा अधिकार छीन रहे हैं। पहले तीन तलाक पर फैसला सुनाया, तो किसी ने कुछ नहीं कहा। अयोध्या मामले का फैसला सुनाया तो भी किसी से कुछ नहीं कहा, हमने सब्र किया लेकिन अब आप संविधान पर वार कर रहे हैं। बताइये जिनके पास दो वक्त की रोटी नहीं है, वह सौ बरस पुराना कागज कहां से लाएंगे।
उनका कहना है कि इस मामले को मुसलमानों से जोड़ना भी बेमानी है क्योंकि अगर यह सिर्फ मुस्लिम का सवाल होता तो हिंदू, दलित समाज आदि से महिलाएं नहीं जुटतीं। इसी तरह दो चार लोगों को भड़काया जा सकता है, पूरे देश को नहीं।
एक प्रदर्शनकारी रुखसाना ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर हमने सब्र किया, यह सोचकर कि देश में तो हैं, घर तो है, छत तो है लेकिन अब तो छत ही जा रही है। हमारे बच्चे का मुस्तकबिल बिल्कुल भी सुरिक्षत नहीं है। ऐसे में अब नहीं उतरेंगे तो कभी नहीं उतरेंगे। महिलाएं सड़क पर हैं तो इसका मतलब यह बड़ा मामला है। इसको देखेंगे और रोक कर ही रहेंगे। मासूम के साथ यहां आईं माओं का सोचना है कि जब उसका कल सुरक्षित नहीं है तो फिर आज की क्या चिंता करना। दूसरे मुल्कों में रहने वाले हमारे रिश्तेदार हमारा मजाक उड़ा रहे हैं कि तुम्हें तुम्हारे देश से ही निकाला जा रहा है।