लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ने भी उठाया गोमती नदी को बचाने का जिम्मा
फारुख हुसैन
मियांपुर (मोहम्मदी) खीरी। यूँ तो देश के चौथे स्तम्भ ने कईयों को न्याय, सहारा व सहयोग किया कइयों को बुलंदियों तक पहुंचाया, एक गरीब असहाय व जरूरतमंद की आवाज बनकर उसकी समस्या को समाज के सामने उजागर किया। भ्रष्टाचार, अवैध कारोबारों का भंडाफोड़ किया। अब उसी तर्ज में देश के चौथे स्तम्भ ने उत्तर प्रदेश की आदिगंगा कहि जाने वाली गोमती नदी को भी बचाने का कार्य शुरू किया है।
इनकी माने तो गोमती को इस हालातों तक पहुंचाने में शासन व प्रशासन भी काफी हद तक जिम्मेदार है। जिसका एक कारण गोमती से अवैध खनन भी है। गोमती नदी की तलहटी में बहने या कहो उसकी कोख को खोदकर जो पिछले करीब दो वर्षों से जो अवैध कारोबार किया गया है, कोई थोड़ा बहुत नही बल्कि लाखो टन बालू का कारोबार कर जेसीबी व ट्रैक्टर ट्रालियों की मदद से किया गया है, वह भी सत्ता पक्ष की सरंक्षण से। जिसे क्षेत्र में मकान या निर्माण में नही अपितु बल्कि बाहर भेजकर बेचा गया और एक मोटी रकम कमाई का जरिया बनाया गया।
अब जब नदी में बहने वाली बालू को ही निकाल दिया जाएगा तो कैसे चलेगी नदी की धारा, कैसे बचेगा नदियों का अस्थित्व, यह एक अपने आप मे गुथा हुआ प्रश्न है। जिसे जानते और स्वीकारते सभी है पर आगे आकर आवाज उठाने में सकपकाते है। अब कैसे भी करके पत्रकारों ने इसे गत वेश की भांति खत्म होने से बचाने के कयास शुरू कर दिए है। जिसके लिए तो सबसे पहले गोमती नदी के प्रत्येक घाटों की सुरक्षा वेहद जरूरी है। यहां तक की गोमती जो मियांपुर, अखैराजपुर, बेलापहाड़ा, रामपुर, गौरिया तक वन विभाग की रेंज में होने के बावजूद ठेका का हवाला देकर खनन माफियाओं ने इसे खंगाल कर रख दिया, अब प्रश्न उठते है कि वन विभाग की हद में तो किसी भी प्रकार कोई अवैध कारोबार या वैध कारोबार सम्भव नही, फिर भी लाखों टन का अवैध कारोबार आखिर किस की सह पर, क्या इस अवैध कमाई का हिस्सा पुलिस विभाग के साथ साथ वन विभाग को दिया गया, जो इस मामले में मौन बन गोमती नदी और अपनी वन भूमि से चिर हरण होता देखते रहे। और अब भी देख रहे है।
कहाँ गए वे नियम कानून जो गत वर्षों से पूर्व उन गरीबों पर लागू किये जाते थे, जो अपने निजी मकान के लिए थोड़ी बहुत बालू लेकर जाते थे, उनके ट्रैक्टर को सील व सीज कर दिया था। पर अब क्या उन अधिकरियों को सांप सूंघ गया या उनके आंखों पर काली पट्टी बन्ध गई जो वे इन कारोबारों को पिछले 2 से 3 वर्षो से देख नही पा रहे है या फिर उनकी आंखों पर सत्ता की धमक व पैसों की चमक का चश्मा चढ़ गया है। जो उन्हें यह अवैध कारोबार भी अब वैध नजर आने लगे है, शासन प्रशासन को सूचना या मुखबिर देने वाले तक का नाम उक्त खनन माफियाओं व सत्ता के सरंक्षण देने वाले नेताओं को बता दिया जाता था। फिर क्या उन्हें दी जाती थी इस कारोबार की जानकारी न देने की धमकियां। इन्ही सब प्रकरणों में तो पिछले वर्ष कई घाटों पर तो अपना दम व अपना अस्थित्व खो चुकी थी गोमती नदी। इस वर्ष बेमौसम की हुई बरसात ने इसे अभी तक तो जिंदा रखा है।
वही सभी भी अब इसके बचाव में उतरते नजर आ रहे है जिसमे क्षेत्रीय समाज सेवी युवा भी सहभगिता कर रहे है। इसी के तहत बीते दिन कुछ पत्रकारों ने स्वयं श्रमदान में फावड़े लेकर व ट्रैक्टर कराह की मदद से गोमती नदी के पुरैना घाट को साफ सुथरा व सुरक्षित रखने के लिए अपना सहयोग किया। इस घाट पर व आस पास के घाटों पर होने वाले अवैध खनन पर अब तेज नजर रखी जायेगी। ताकि अब इन घाटों पर अवैध खनन का कारोबार न हो पाए, और गोमती नदी को सुरक्षित रखा जा सके। अब इसी क्रम में यह अभियान जारी रहेगा। इससे पहले से गोमती नदी को बचाने के लिए गोमती सेवा समाज यह बीड़ा उठाये चल रही है, जिनकी जितनी सराहना की जाए कम अब देश के चौथे स्तम्भ के उतर आने से सत्ता पक्ष पर अंकुश व खनन माफियाओं पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जाएगा।