मध्य प्रदेश – 53 सालो बाद खुद को दोहरा रहा है इतिहास, इस बार सत्ता में हलचल मचाई है पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया ने

तारिक आज़मी

मध्य प्रदेश में इतिहास खुद को दोहराता दिखाई दे रहा है। इस बार इतिहास खुद को पोते के माध्यम से दोहरा रहा है। मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार ने 53 साल पुराने इतिहास को दोहराता हुआ दिखाई दे रहा है। इसके पहले 1967 में विजयाराजे सिंधिया की वजह से कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई थी और अब उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कमलनाथ सरकार संकट में घिर गई है।

1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के ठीक पहले विजयाराजे ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने विधानसभा और लोकसभा के चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और दोनों चुनाव जीतीं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ और डीपी मिश्रा को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन, इसके बाद ही 36 कांग्रेस विधायकों ने विजयाराजे के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करते हुवे विपक्ष से मिल गए थे। डीपी मिश्रा को इस घटना के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।

अब जब इतिहास की बात हो रही है तो इस बार ज्योतिरादित्य खेमे में 20 विधायकों ने इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। इस्तीफा स्वीकार होने पर कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ जाएगी और ऐसे में भाजपा अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है।

इसके पहले ग्वालियर में छात्र आंदोलन को लेकर राजमाता की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा से अनबन हो गई। इसके साथ ही सरगुजा स्टेट जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ है में पुलिस कार्रवाई को लेकर उनका विवाद हुआ था। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। साल 1967 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए। राजमाता गुना संसदीय सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ी और चुनाव जीता। इसके बाद कांग्रेस में फूट का फ़ायदा उठाते हुए करीब 36 विधायक के समर्थन वाले सतना के गोविंदनारायण सिंह को सीएम बनवाकर प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनवा दी और डीपी मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई तो उन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया था।

राजनैतिक जानकारों की बात करे तो इस विवाद का कारण मुख्य बना था राजमाता को इंतज़ार करवाना। जानकार बताते है कि राजमाता पचमढ़ी में चुनाव और टिकट बंटवारे को लेकर डीपी मिश्रा से चर्चा करना चाहती थीं। लेकिन, मिश्रा ने विजयाराजे को 15 मिनट तक इंतजार करवाया और यही कांग्रेस पर भारी पड़ गया। राजमाता को यह इंतजार अखरा था, उन्हें लगा कि डीपी मिश्रा महरानी को उनकी हैसियत का अहसास करवाना चाहते थे। विजयाराजे के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था।

इंतज़ार के बाद हुई मुलाकात में विजयाराजे सिंधिया ने ग्वालियर में छात्र आंदोलनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने बाद में ग्वालियर के एसपी को हटाने के लिए डीपी मिश्रा को पत्र लिखा, लेकिन मुख्यमंत्री ने सिंधिया की बात नहीं मानी थी। यहाँ से विवाद और गहरा हुआ था। इसके बाद 1967 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पचमढ़ी में युवक कांग्रेस का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। इसका उद्घाटन इंदिरा गांधी ने किया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया इसी सम्मेलन में मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र से मिलने पहुंचीं। इसके बाद राजमाता सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था।

सियासी घमासान और कूटनीति के तहत तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के 36 विधायक विपक्षी खेमे में आ गए थे और कांग्रेस की सरकार धराशाही हो गई थी। इसके बाद पहली बार मध्य प्रदेश में गैरकांग्रेसी सरकार बनी और इस सरकार का नाम रखा गया संयुक्त विधायक दल। इस गठबंधन की नेता खुद विजयाराजे सिंधिया बनीं और डीपी मिश्रा के सहयोगी गोविंद नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने। यह गठबंधन प्रतिशोध के आधार पर सामने आया था जो 20 महीने ही चल पाया। गोविंद नारायण सिंह फिर से कांग्रेस में चले गए। हालांकि इस उठापठक में जनसंघ एक मज़बूत पार्टी के तौर पर उभरा और विजयाराजे सिंधिया की छवि जनसंघ की मज़बूत नेता की बनी।

अब इतिहास खुद को दोहराता दिखाई दे रहा है। कमलनाथ सरकार से नाराज़ चल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अबकी इतिहास को दोहराने की कवायद शुरू कर दिया है। उनके कांग्रेस से इस्तीफे के बाद 20 विधायको ने भी इस्तीफा दिया है। इसके बाद अब मामला इस तरह है कि इन विधायको का इस्तीफा स्वीकार अगर हो जाता है तो कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ जाएगी और भाजपा वहा सरकार बना लेगी। अब देखना होगा कि इतिहास को दोहराने में और कितना समय बाकी है। इतिहास खुद को दोहरा पाटा है अथवा कमलनाथ का राजनैतिक अनुभव काम आता है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *