निःशुल्क शास्त्रीय संगीत कार्यशाला में गायन व तबला वादन के गुण सीख प्रतिभागी हुए आह्लादित
करिश्मा अग्रवाल
मेरठ।कनोहर लाल स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय,मेरठ के संगीत तबला विभाग द्वारा शास्त्रीय संगीत पर आयोजित ऑनलाइन सप्त दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला शाला के पंचम दिवस का विषय था शैली गत बहुरूपता सत्र का शुभारंभ प्राचार्य डॉ किरण प्रदीप की अनुमति एवं संबोधन से से हुआ। उन्होंने अतिथियों का स्वागत भी किया कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन डॉ वेणु वनिता ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय की शिक्षिकाएं देश के विभिन्न प्रदेशों से विद्यार्थी संगीतज्ञ शिक्षक एवं सुधी श्रोता ऑनलाइन जुड़े रहे। अतिथि वक्ताओं में डॉ अमरीश कुमार चंचल काशी हिंदू विश्वविद्यालय,वाराणसी एवं डॉ रेनू जौहरी,इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद से ऑनलाइन जुड़ीं।
प्रथम वक्ता डॉ अमरीश कुमार चंचल गायन विभाग, मंच कला संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से रहे उनके प्रदर्शन आत्मक व्याख्यान का विषय था गायन शैलियों की विविधता। उन्होंने धुरपद आलाप ख्याल गायन में विलंबित एवं द्रुत ख्याल विभिन्न प्रकार की ठुमरी पूरब एवं पश्चिम अंग का दादरा साथ ही सुगम संगीत में ग़ज़ल एवं भजन को प्रदर्शन करते हुए विद्यार्थियों को गायन शैली के विविधताओं को बहुत ही सुंदर ढंग से गाकर प्रभावपूर्ण प्रस्तुत किया आदरणीय चंचल संगीत गायन के एक सुप्रसिद्ध कलाकार हैं वे महान गायक पंडित भीमसेन जोशी की परंपरा से रहे हैं ।
दिवत्तीय अतिथि वक्ता डॉ रेनू जौहरी ने तबले की वादन प्रणालियाँ विषय पर कहां की जब हम तबले की वादन प्रणालियों की बात करते हैं तो उसके अन्तर्गत मात्र वादन तकनीकी ही नहीं आती क्योंकि यह वादन प्रणाली अथवा बाज ही है जिनके आधार पर तबले के छः घरानों का निर्माण हुआ है। किसी भी घराने के निर्माण के चार तत्व मुख्यता देखे जाते हैं – 1- घराने की प्रयोग सामग्री (साहित्य) 2- वादन तकनीकी (अर्थात बोल निकास की विधि), 3- प्रस्तुतिकरण 4- दृष्टि (vision) अतः जब हम किसी घराने की वादन – शैली की बात करते हैं तो उपरोक्त चारों तत्व इसके अंतर्गत आते हैं इसलिए तबले के बाज का क्षेत्र घरानों की अपेक्षाकृत विस्तृत है। तबले के मुख्यता दो बाज हैं -1- पश्चिम बाज -(इसके अन्तर्गत दिल्ली एवं अजराड़ा घराने की वादन शैली आती है)।
2- पूरब बाज ( इसके अन्तर्गत – लखनऊ, फरुखाबाद एवं बनारस घराने की वादन प्रणाली आती है।) छठा घराना पंजाब है जिसका स्वतंत्र बाज है पंजाब बाज। यह पखावज के निकट है व पंजाब प्रांत इसका क्षेत्र है। दोनों ही वक्ताओं ने अपने व्याख्यान को प्रयोगात्मक प्रस्तुति द्वारा द्वारा बहुत ही प्रभाव कारी बनाया एवं विविध बंदिशों को गाकर एवं बजाकर विद्यार्थियों को सुनाया। इसमें महाविद्यालय की बहुत सी शिक्षिकाएं विद्यार्थी और पूरे देश से बहुत सारे शोधार्थियों ने हिस्सा लिया। यूट्यूब लाइव से प्रश्नों को पहुंचने में डॉक्टर शुभा मालवीय ने अपना सहयोग प्रदान किया इस कार्यक्रम की तकनीकी सहयोग के लिए दीपक राठी जी ने सक्रियता के साथ निभाया।