“पं० रामाश्रय झा ‘रामरंग’ समिति” द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय कार्यशाला का हुआ सफल समापन

करिश्मा अग्रवाल

“पं० रामाश्रय झा ‘रामरंग’ समिति” द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय कार्यशाला “ऑनलाइन नेशनल वर्कशॉप ऑन रियाज़” के सातवें एवं समापन दिवस का आयोजन सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। सातवें सत्र का शुभारंभ डॉ० वी० जगदीश राव के द्वारा सत्र के गुरु डॉ० राजेश केलकर के परिचय से किया गया।  डॉ० राजेश केलकर प्रख्यात संगीत साधक, संगीत मर्मज्ञ तथा कलाधर्मी होने के साथ- साथ रेडियो व दूरदर्शन के ग्रेडेड कलाकार है, साथ ही देश विदेश में अनेको सफल कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके है। वर्तमान में महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय के मंच कला संकाय में विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं।

सत्र का आरंभ में प्रो० केलकर शिक्षण के प्रारंभ में संगीत विद्यार्थियों के लिए कार्यशाला के मुख्य विषय “रियाज़” के कई प्रकारों- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक, के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को बताते हुए, संगीत के रियाज़ के साथ-साथ स्वसन तथा स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए भी कई प्राणायाम, सूर्य नमस्कार तथा खान-पान के भी कई महत्वपूर्ण बिंदुओं से विद्यार्थियों को अवगत कराया।

भैरव और यमन दोनों राग रियाज़ के लिए उपयुक्त हैं, ऐसा बताते हुए राग भैरव में रियाज़ के लिए पुस्तकों में वर्णित अलंकारों के अतिरिक्त कुछ अलंकारों में स्वतः क्रियात्मकता से किस प्रकार अलंकार बना सकते हैं, यह भी बताया,जैसे- सा रे सा, सा रे ग रे सा, सा रे ग म ग रे सा…सा रे, सा रे ग, सा रे ग म… सा रे, सा ग, सा म, सा प…इस प्रकार क्रियात्मकता बढ़ाने तथा नजदीकी कुछ स्वरों के साथ द्रुतगति में रियाज़ करने के कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत किए, जैसे- सा रे सा, सा रे ग रे सा, रे ग रे, रे ग म ग रे, ग म ग, ग म प म ग…आदि।

रियाज़ के लिए उपयुक्त समय के संदर्भ में प्रातः कालीन रियाज को सर्वथा सर्वोच्च बताते हुए, ॐ का रियाज़ अ, ऊ, ॐ इस प्रकार करने की क्रिया भी बतायी। तत्पश्चात गले की विकृतियों को दूर करने के लिए कुछ बीज मंत्रों- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञाचक्र आदि के अभ्यास क्रिया से विद्यार्थियों को लाभान्वित किया।
उपज के लिए गुरु सानिध्य में अलग-अलग स्वर-संगतियों को बार-बार रटने, साथ ही रागों की बंदिशों के मुखड़े को लेकर विभिन्न लयकारियों से सजाने तथा ताल के सामंजस्य को संतुलित करने के लिए लय का अभ्यास क्रिया भी बताया। तान विस्तार क्रिया में अलग-अलग तानों के प्रकार भी बताए, साथ ही विद्यार्थियों के लिए ताल के बोल और तबले पर बजने वाले ठेके के सूक्ष्म अंतर को भी स्पष्ट किया।

अंतिम कड़ी में प्रश्नोत्तर श्रृंखला में विद्यार्थियों के अनुरोध पर सांस बढ़ाने की क्रिया, मंद्र और तार सप्तक के स्वर लगाने की क्रिया, तान की लय बढ़ाने की क्रिया, गमक कैसे करें?, गले में विकृति को ठीक करने के व्यायाम आदि विभिन्न प्रश्नों के उत्तर भी विद्वता पूर्ण देकर विद्यार्थियों को लाभान्वित किया। तत्पश्चात प्रतिभागियों के निवेदन पर देश-विदेश से इस कार्यशाला में ऑनलाइन उपस्थित प्रतिभागियों तथा विद्वतजनों ने भी अपने अपने अनुभव साझा कर आभार व्यक्त किए।

इस कार्यशाला के समापन समारोह के मुख्य अतिथि पद्म-विभूषण तुलसीपीठाधीश्वर रामानंदाचार्य जगत गुरु पं० रामभद्राचार्य नेटवर्क की समस्या के कारण ऑनलाइन उपस्थित नहीं हो सके, अतः सभी के लिए फोन पर अपना आशीर्वाद प्रेषित किया। इसी कड़ी में संगीत चिंतक प्रो० मुकेश गर्ग,प्रो० संगीता पंडित जी, प्रो० लावण्या कीर्ति सिंह काव्या जैसे संगीत जगत की विद्वान भी पूरे सत्र में उपस्थित रहे साथ ही आज सत्र के ज्ञानयज्ञ की पूर्णाहुति पर अपने विचार रखें तथा सफल आयोजन हेतु आयोजन समिति को बधाई दी।

समापन की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कार्यशाला के आयोजक डॉ० रामशंकर ने कार्यशाला में उपस्थित सभी विद्वतजनों, विद्यार्थियों तथा अपनी बड़ी गुरु बहन डॉ० गीता बनर्जी, विदुषी शुभा मुद्गल का विशेष आभार व्यक्त कर कार्यशाला का समापन किया। कार्यशाला में लगभग ४०० प्रतिभागियों ने सातो दिन अपनी उपस्थिति दर्ज करा, कार्यशाला को सफल बनाया। कार्यशाला के प्रशिक्षक गणों में प्रथम दिवस विदुषी अलका देव मारुलकर जी नासिक से, द्वितीय दिवस पं० सुधाकर देवले जी उज्जैन से, तृतीय दिवस प्रो० संगीता पंडित वाराणसी से, चतुर्थ दिवस पं० हेमंत पेंडसे पुणे से, पंचम दिवस प्रो० अविराज तायड़े नासिक से, षष्टम दिवस डॉ० स्नेहाशीष दास अमरावती से तथा सप्तम एवं अंतिम दिवस प्रो० राजेश केलकर बड़ौदा से ऑनलाइन उपस्थित होकर इस कार्यशाला में गुरु रूपी ज्ञान गंगा से विद्यार्थियों को अभिसिंचित किया।

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