कहाँ गुम हो गया इन आजादी के दीवानों का इतिहास – क्रांतिकारी शहीद मौलवी अलाउद्दीन हैदर
तारिक आज़मी
1857 की क्रांति का नाम लिया जाए तो ज़ेहन में मंगल पाण्डेय से लेकर रानी लक्ष्मी बाई तक के नाम ज़ेहन में आते है। थोडा और गौर-ओ-फिक्र करेगे तो टीपू सुलतान का नाम ले लेंगे। मगर इस क्रांति में जो भारत के स्वतंत्रता आदोलन की पहली क्रांति थी, में कई और भी क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों को हस्ते हुवे न्योछावर कर दिया। आज इतिहास के पन्नो को पलट कर देखे तो इनके नाम भी आपको नही मिलेंगे। हकीकत ये है कि त्वारीख ने इनके साथ इन्साफ तो नही किया है।
ऐसे ही एक क्रांतिकारी शहीद गुज़रे है मौलवी अलाउद्दीन हैदर। बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के मौलवी अलाउद्दीन हैदर का जन्म 1824 ई0 में वर्त्तमान तेलंगाना राज्य के नलगौड़ा में हुआ था। बचपन में कुरआन की तिलावते सुनकर बड़े हुवे मौलवी अलाउद्दीन हैदर ने इस्लामी तौर-ओ-तरीकत से तालीम हासिल किया। शरियत के बढ़िया जानकार इस्लामी तरीकत से अपने मादर-ए-वतन की गुलामी के जंजीर को तोड़ने का जज्बा लेकर बड़े हुवे।
शरियत की तालीम हासिल करने के बाद वह हैदराबाद की शाही मस्जिद मक्का मस्जिद के पेश इमाम बन गए। बतौर पेश इमाम उनका हर एक बयान मादर-ए-वतन पर मर मिटने की लोगो को तालीम और तरबियत देता था। शुरू में तो फिरंगियों ने ध्यान नही दिया। मगर वक्त के साथ साथ ब्रिटिश हुकूमत ने मौलवी अलाउद्दीन हैदर पर अपनी नज़रे रखना शुरू कर दिया था। इसी दरमियान 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा ज़मीदार चेदा खान को गिरफ्तार कर हैदराबाद रेजीडेंसी भवन में बंद कर दिया गया। ज़मीदार चेंदा खान मुल्क परस्ती के वजह से अंग्रेजो की मुखालफत करते थे। इस गिरफ़्तारी के बाद हैदराबाद की जनता उग्र हो गयी।
मगर अंग्रेजो की कुवत के सामने ये उग्रता ज्यादा देर नही टिक पाई। मुल्क पर मर मिटने की आवाम को तरबियत देने वाले मौलवी अलाउद्दीन हैदर ने आखिर कमान अपने हाथो में लिया और अपने साथी तुर्रेबाज़ खान के साथ मिलकर हैदराबाद रेजीडेंसी भवन पर हमला करने की योजना बना लिया। जिसको उन्होंने मुक़र्रर वक्त पर अंजाम भी दिया। पूरी प्लानिंग के साथ 17 जुलाई 1857 को नमाज़ के बाद मौलवी अलाउद्दीन ने अपने दोस्त तुर्रेबाज़ खान एवं अन्य लोगों के साथ मिलकर हैदराबाद रेजीडेंसी भवन पर धावा बोल दिया।
हमला करने वाली इस टुकड़ी की सरदारी (नेतृत्व) खुद मौलवी अलाउद्दीन हैदर कर रहे थे। हमला सफल तो रहता है मगर इस हमले के जुर्म में मौलवी अलाउद्दीन को गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसके बाद चंद लम्हों वाले जिरह बहस के बाद उनके खिलाफ मुक़दमे में सुनवाई करते हुवे उन्हें अंडमान निकोबार (सेलुलर जेल) में काले पानी की सज़ा सुनाई गई। इतिहासकार मोहम्मद आरिफ ने हमसे बात करते हुवे बताया कि इतिहास के पन्नो पर पड़ी धुल को हटाकर देखे तो मौलवी अलाउद्दीन हैदर काले पानी की सजा के दौरान लगभग 30 वर्षों तक सेलुलर जेल में ही रहे और वही पर उनकी मृत्यु हो गई।
आज मौलवी अलाउद्दीन हैदर इतिहास के पानो के बीच खोकर कही रह गए है। शहादत मुल्क को आज़ाद करवाने की थी। शहीदों में दर्जा उनका भी बुलंद है। मगर इतिहास के पानो में वह केवल खोकर रह गए है। शहीद मौलवी अलाउद्दीन हैदर को हम दिल से सलाम करते है।