वाराणसी – लोहता में खुलती बाज़ार और उडती नियमो और सोशल डिस्टेंस की धज्जियां
मो0 सलीम
वाराणसी। जनपद में प्रशासन के आदेश पर बाज़ार और सट्टी खुल रही है। इस दौरान सट्टी सुबह 7 से लेकर 10 तक चल रही है। बाज़ार खुलते के साथ ही लोग सामानों की खरीदारी के साथ साथ तफरी में घुमने वाले भी काफी दिखाई देते है। इस दौरान सोशल डिस्टेंस की जमकर धज्जियां उडती रहती है। भले प्रशासन लाख कोशिशे कर ले। मगर खुद को रणबाकुर समझने वाले ये लोग अपने को सुपर मैंन समझ कर बिना मास्क के ही टहलते दिखाई देते है। वही जब इनकी नज़र पुलिस पर पड़ती है तो खुद के गमछे से मुह ढक लेते है। इनमे तो कुछ ऐसे भी है जिनके पास गमछा और रुमाल नही रहता है तो खुद की बनियान में ही अपने मुह डाल कर गली के अन्दर भागते दिखाई दे जाते है। अब इनको कौन समझाए कि पुलिस द्वारा 100 रुपया के चालान से नही बल्कि खुद की हिफाज़त के लिए मास्क लगा लो गुरु।
लोहता की पुलिस प्रशासन इस दरमियान मेहनत के साथ यहां के रहने वाले सभी लोगों को तथा रोड पर आने जाने वालों को निरंतर मास्क लगाने के लिए चेतावनी देती रहती है। वह हालात भी जान रही है कि घर से 20 रुपया सब्जी के लिए लेकर निकले इन युवको के पास चालान का पैसा देने की भी रकम नही है। प्यार मुहब्बत के साथ समझा भी रही है कि आप सभी लोग शोसल डिस्टेंसिंग का पालन कीजिये तथा मास्क लगाकर कर जब कोई ज़रूरी काम हो तभी बाहर निकलें। मगर साहब लोग तो खुद को स्टील मैंन समझ बैठे है। उनको लगता है कोरोना उनको नहीं होगा बकिया किसी को भी हो जाए। काहे भाई आप का कही से स्पेशल रंगा के आये हो कि कोरोना नही हो सकता है तुमका।
शायद पुलिस प्रशासन का चिल्ला चिल्ला कर लोगों को कोरोना जैसी बीमारी से बचने के लिए आग्रह करना लोगों के दिल की गहराइयों में नही उतर रही है। आज सुबह तड़के लोहता सट्टी में घूमते हुवे हालत का जायजा लेना चाहा, देख कर हैरानी हुई कि केवल 20% दुकानदारों के मुह पर मास्क है। वह भी अधिकतर के मुह और नाक को नही बंद किया है बल्कि ठोड़ी पर ऐसे मास्क लगा रखा है कि जैसे कोरोना उनकी दाढ़ी में घुस जायेगा, मुह और नाक से नहीं घुसेगा। मुह और नाक खुली है और बकिया सारा काम मास्क कर रहा है। एक से पूछ बैठा तो बोले बहुत उलझन होला गुरु लगावे में मास्क। ढेर गर्मी लगेगा। हमने भी कह दिया हां ठीक ही है, अगर भगवान् न करे कोरोना हो जाई त फ्री में आईसुलेषण वार्ड का एसी कमरा में बेड मिली।
लेकिन ज़्यादा ऐसे दुकानदार ऐसे थे कि जिनके चेहरे पर मास्क ही नही था और वे अपने गमछे को गले में लपेट कर अहसान कर रहे थे कि मैंने गला ढाका हुआ है बकिया सब बाद में ढाक लेंगे। दुकानदारी का टेम है साहब कहकर बात को टाल देना तो हमारी फितरत में हो गया है। मस्त बढे दामो में जमकर सब्जी बेच कर बड़ा मुनाफा कमाने की कोशिश हो जा रही थी। बस एक मास्क नही लगा सकते है। सोशल डिस्टेंस का क्या ? नियम होते ही है कि उसकी धज्जियां उड़े।
बहरहाल, पुरे मार्किट में सोशल डिस्टेंस की जमकर धज्जियां उड़ रही थी। भाई भाई अपने लोग के तर्ज पर लोग एक दुसरे से सटे राशन की दूकान पर लाइन लगाए हुवे थे।सोशल डिस्टेंस तो इनके लिए बेकार की बात लगती है। राशन की दूकान से लेकर सब्जी के खोमचे तक पुरे नियमो को ताख पर रख कर लोग इस छुट की मौज ले रहे थे।