डब्लूआईआई की रिपोर्ट ने किया खुलासा, दुधवा के बफर जोन में मारी गई बाघिन थी नेपाल की
फारुख हुसैन
लखीमपुर खीरी — दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों के शिकार के तरीके ने इस बार वन्य जीव विशेषज्ञों को हैरत में डाल दिया है। डब्ल्यू आईआई की रिपोर्ट में मरने वाली बाघिन की भारत की बाघिन होने का कोई भी सबूत नहीं मिला है।
दरअसल वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून से इस बाघिन का रिकॉर्ड जुटाने की कोशिश की गई कैमरा ट्रैपिंग विधि से गणना होने के कारण प्रत्येक बाघ का रिकॉर्ड डब्ल्यूआईआई के पास रहता है। मगर रिकॉर्ड के अनुसार ये बाघिन यूपी और उत्तराखंड की गणना में शामिल नहीं थी। इसकी पुष्टि प्रमुख मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव सुनील पांडे ने भी की है। वह संभावना जता रहे हैं कि या तो यह बाघिन नेपाल से आई थी, या फिर संजीदगी गन्ने के खेतों में रही होगी। क्योंकि खेतों में कैमरे लगाकर गणना का प्रावधान अभी तक नहीं बना है।
बहरहाल, मारी गई बाघिन का भारत में कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है। इस बाघिन को नायलॉन की रस्सी का फंदा लगाकर मारा गया था। इस ढंग से शिकार का यह पहला मामला सामने आना बताया जा रहा है। मामले की जांच के लिए मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव पश्चिमी क्षेत्र व कानपुर स्थित चिड़ियाघर के निदेशक सुनील चौधरी की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी बनाई गई थी। साथ ही दुधवा नेशनल पार्क और उसके बफर जोन में सतर्कता बढ़ाने के निर्देश भी दिए गए हैं।
गौरतलब है कि 11 अगस्त को दुधवा नेशनल पार्क के बफर जोन लखीमपुर खीरी के हरदुआ गांव के एक खेत में बाघिन का शव मिला था। उसको फंदा लगाया गया था। दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि फंदा फंसने से हुआ घाव 8 या 9 दिन पुराने थे। इससे निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि फंदे में फंसने के आठ 9 दिन बाद उसकी मौत हो गई। वन विभाग के अफसरों का कहना है कि अभी तक शिकार के मामले में बाघ को पैर में फंदा लगाकर फसाया जाता रहा है। शिकारी गले का फंदा नहीं लगाते क्योंकि इससे उसकी खाल खराब हो जाती है, और तस्करों को सही दाम नहीं मिल पाते।