बेबसी कितनी बेजुबान में है, अब वो हिम्मत कहां किसान में हैं – नफीस वारसी

फारुख हुसैन

लखीमपुर खीरी जिले के तहसील पलिया में 14 सितंबर हिंदी दिवस के अवसर पर पलिया नगर पालिका परिषद के सभागार में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस मौके पर क्षेत्रीय कवियों ने अपनी अपनी हिंदी की रचनाएं प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया।

कवि सम्मेलन की शुरुआत माॅ सरस्वती की तस्वीर के सामने दीप प्रज्वलित कर और उनको हार पहनाकर किया गया, जिसमें कवि रविंद्र तिवारी के द्वारा सरस्वती मां का वंदन किया। वही कवि सम्मेलन का संचालन खीरी टाउन के रहने वाले उर्दू के बेहतरीन कवी और शायर नफीस वारसी के द्वारा किया गया ।कवि सम्मेलन की अध्यक्षता हिंदी के वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश सुमन ने की तो मुख्य अतिथि पलिया क्षेत्र के ही सरस्वती ज्ञान मंदिर के प्राचार्य वीरेंद्र कुमार वर्मा रहें। इस दौरान हिंदी के वरिष्ठ कवि विजय मिश्रा विजय ने चार पंक्तियों से अपनी शुरूआत की उन्होंने कहा स्नेह और सभ्यता सी हिंदी,मां की ममता सी हिंदी,भाई बहिन का प्यार है हिंदी, जीवन का आधार है हिंदी, वही हास्य के क्षेत्रिय कवि मोबीन अहमद ने कहा हम अपने दिल में मोहब्बत का चमन रखते हैं,अपने फौलाद इरादों में वजन रखते हैं,जान इस देश पर हम अपनी लुटाने के लिए,सर पर बांधे हुए हर वक्त कफन रखते हैं। खोज के बेहतरीन कवि पवन मिश्रा ने कहा जिसके चरणों में नतमस्तक दुनिया,वह भारत की हिंदी है,जो दुनिया भर में चमक रही है वह भारत की हिंदी है ।

इसी के साथ कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे नफीस वारसी ने अपनी शायराना अंदाज में कहा कि बेबसी कितनी ही बेजुबान में है,अब वह हिम्मत कहां किसान में है,कूद जाऊंगा बाढ़ में मैं भी,सारी खेती मेरी कटान में है ।वहीं क्षेत्रीय कवि और शायर फारूख हुसैन ने कहा कि जहां में रहेंगी ज़फाये यू जब तक,चमन में रहेंगी फिजाएं यू जब तक, मोहब्बत का दीपक यूं जलता रहेगा लबों पे रहेंगी दुआएं यू जब तक । वही पतवारा से आये नवजवान कवि फिरदौस ने अपनी बेहतरीन आवाज में कुछ यूं पढ़ा कि उसकी निगाहें नाज़ पर सब वार कर दिया,मैंने भी अपने प्यार का इजहार कर दिया ।वही कवि रविंद्र तिवारी ने कहा जोड़ दे तार दिल से दिल के सभी,पूरे हो जाएं ऐसे सपने मेरे । वहीं वरिष्ठ कवि रामचंद्र शुक्ल ने अपनी रचना पढ़ी कि जीवन संघर्षों का नाम, पग पग पर ठोकरे बहुत हैं, पग पग पर अंगणित काम, चलते जाओ रुको ना क्षण भर, लेना नहीं तुम्हें विश्राम, अगर रुके तो पीछे होंगे, नहीं रुके तो होगा नाम, जीवन संघर्षों का नाम ।।

वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहें वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश सुमन ने अपनी रचनी कुछ यूं पढ़ी ठोस धरातल भी अब अरमान हो गये,इनको था बोझ उठाना वहीं मेहमान हो गये,वक्त ने कैसा बदल दिया है लोगों को ,सच्चाई का झ॔डा उठाने वाले ही बेईमान हो गये ।इसके साथ ही कवि सम्मेलन में आए अतिथि धनुष धारी द्विवेदी,प्रवीण मिश्रा,निरंकार बरनवाल विश्व कांत त्रिपाठी ने भी हिंदी की गाथा पर अपने अपने वक्तव्य दिए,इस मौके पर बहुत से श्रोता मौजूद रहे ।

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