तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – “देख ले आकर जरा बुनकरों को अमीर समझने वाले, कैसे दाल रोटी चला रहे है ये मेहनतकश सारे”- तस्वीरे जिन्हें देख कर आपकी आँखों के कोने हो जायेगे नम
तारिक़ आज़मी
बुनकर। नाम सुनकर विश्व प्रसिद्ध बनारसी साडी का ध्यान आ जाता है। वही पॉवर लूम से लेकर हस्तकरघा तक की तस्वीर दिमाग में उभर जाती है। सर पर टोपी, और लुंगी इनकी अमूमन पहचान होती है। अमूमन लोग बुनकरों को काफी अमीर समझते है। मगर हकीकत तो ये है कि कभी जो पैसा उनके पास दिखाई देता था वो उनकी हाड तोड़ मेहनत से आता था। मगर हालात ऐसे बिगड़ चुके है कि बुनकर खुद की दाल रोटी चलाने के लिए अब दुसरे कामो के तरफ देखना शुरू कर चुके है।
ये तस्वीरे आँखों का कोना नम कर सकती है
आपको ज्यादा नही केवल दो तस्वीरे दिखा रहा हु। पहली ये तस्वीर में ये दोनों मासूम बच्चे जिनके हाथो में कलम किताब होनी चाहिए उनमे से एक के हाथ में गिलास और दुसरे के हाथ में केतली है। केतली के वज़न से जब एक थक जाता है तो अपने साथ चल रही अपनी बहन को केतली थमा देता है। सुबह और शाम दो वक्त ये दोनों मासूम बच्चे अपने घर से लगभग ढाई किलोमीटर चल कर चाय बेचते है। यानी एक दिन में लगभग पांच किलोमीटर ये दोनों मासूम बच्चे चलते है।
हमने इनके बारे में पता किया। इनके पिता बुनकर थे। लॉक डाउन में घर के खर्च हेतु क़र्ज़ चढ़ गया। लॉक डाउन से जब प्रक्रिया अनलाक की आई तो फिर माँ बाप घर के खर्च और साथ में क़र्ज़ उतारने की फिक्र में हो गए। पिता ने एक इलाका चाय बेचने के लिए चुना और बच्चो को मज़बूरी में दुसरे इलाके में भेजते है। दिन भर में पिता और बच्चे मिलकर लगभग 200 रुपया कमा लेते है। जिससे उनके परिवार का खर्च तो चलता ही है साथ में थोडा थोडा करके क़र्ज़ भी उतर रहा है। भले ही लोग इन बच्चो को ए छोटू कहकर आवाज़ देते है। मगर ये छोटू अपने घर के बड़ो के काम कर रहे है। भले बाल श्रम अपराध है। मगर इंसानियत के नज़रिये से देखे तो इन बच्चो के ऊपर और इनके परिजनों पर तरस भी आएगा।
बेशक, आपकी तरह मैंने भी सबसे पहले इन मासूम बच्चो को देखा था तो मेरे मन में भी यही ख़याल आया था कि कैसा ज़ालिम बाप है। मगर एक बाप की मज़बूरी जानकर अब मेरे पास शब्द ही नहीं है। बेशक बच्चो के साथ ये ज़ुल्म है, मगर उस परिवार की भी मज़बूरी समझिये जिसकी रोज़ी रोटी छीन चुकी है। पिता पहले पॉवर लूम के कारीगर थे। काम मंदा हुआ तो मंदा और तेज़ी काम का हिस्सा है सोच कर बात चल गई। घर में रखी हुई रकम मंदी के भेट चढ़ चुकी थी। इसके बाद फिर लॉक डाउन। और अब बिजली के बिल का मामला। जहा मजदूरी पर पॉवर लूम चलाता था ये बुनकर वहा भी अनिश्चितता का माहोल है कि बिजली की बिल कितनी आयेगी पहले ये फाइनल हो जाए फिर काम के लिए सोचा जाए।
ये दूसरी तस्वीर भी कम तकलीफदेह नही है
इस बालक को देखे आप। एक संभ्रांत परिवार का ये चश्मोंचिराग है। दादा का एक वक्त था जब लोग उनसे सलाह लेने आते थे। कई पॉवर लूम आज भी घर में है। दादा के गुज़र जाने के बाद पिता के भाइयो में आपसी बटवारा हो चूका है। सबके पास दो तीन पॉवर लूम है। इसके पिता के पास भी तीन पॉवर लूम है।
काम का मंदा पिछले एक साल से है। कभी है कभी नही है के तर्ज पर तीनो पॉवर लूम नही चल पाती थी। पिता दिन भर चलाते थे तो शाम को अपनी पढ़ाई से खाली होकर दो से तीन घंटे ये बालक भी पॉवर लूम चला लेता था। घर की गाडी किसी तरह पटरी पर चल रही थी। इस दरमियान लॉक डाउन लग गया। तानी जब तक थी तब तक बिनाई हुई। मशीन घर के अन्दर थी तो घर के अन्दर काम करने में कोई मनाही थी नही। मगर तानी भी तीन से चार दिन के लॉक डाउन में खत्म हो गई। घर में राशन खत्म होने के कगार पर पहुच गया और जेब में पैसे तो पहले ही खत्म हो चुके थे।
घर के लिए इस छोटू ने बड़े का काम किया। खुद हाथो में कतली उठाई। माँ ने चाय बनाई, और निकल पड़ा छोटू सडको और गलियों में। एक झोले में डिस्पोज़ल गिलास, उसमे ही निम्बू का रस निकाल कर शीशी में भर कर रख लेता है। साथ में दूसरी शीशी में चाय का मसाला। दुसरे हाथ में केतली। चाय चाय की आवाज़ लगाता हुआ गलियों में घूमता है। आस पास मोहल्ले के लोग कही और जाकर चाय पीने से बेहतर इसकी चाय पीना पसंद करते है। वजह आप समझ रहे है जो अधिकतर वही है दुसरे इसके चाय का टेस्ट भी अच्छा होता है।
दिन भर में 150 रुपयों का काम करने वाला ये छोटू इस समय घर का सहारा बना हुआ है। इससे जब बात किया तो इसने बताया कि स्कूल बंद है। लूम का काम अभी थोडा आया है। हिसाब तो तब होगा जब तानी कटेगी। माँ चाय बना कर दे देती है। अब्बा को तानी मिली है। मगर हिसाब बाद में ही होगा। वो मशीन चला लेते है। मैं दिन भर खाली ही रहता हु तो चाय बेचकर चार पैसे कमा लेता हु। स्कूल जब खुल जायेगा तो फिर केवल शाम को बेचूंगा, दोपहर में पढूंगा।
कैसी होती थी बुनकर की दिनचर्या
अमूमन आम बुनकरों की दिनचर्या काफी व्यस्त होती थी। सुबह मुह अँधेरे उठा जाना। नमाज़ पढ़कर सड़क पर ही चाय पीना और कुछ चटर पटर खा लेना। इसके बाद खुद के काम में लग जाना जो पुरे दोपहर चलता और शाम लगभग 7 बजे खत्म होता। इस दरमियान उनके परिवार का हर एक सदस्य इस काम में हाथ बटाता था। घर की महिलाये नरी भरने (लकड़ी की एक विशेष डंडी पर धागा अथवा रेशम या जरी चढ़ाना) का काम करती थी। खुद की गृहस्थी के कामो के साथ उनका ये विशेष काम रहता था। इसके बदले घर का मुखिया नरी भरवाई महिलाओं को पैसे भी देता था।
बुनकर के बच्चे उनके बगल में बैठ कर कढाई करते थे। इसको ढरकी फेकना कहा जाता था। साडी उतरने के बाद यानी साडी पूरी होने के बाद अक्सर घर में ही उसकी कतरन काटी जाती थी। फिर घर का मुखिया उस साड़ी को लेकर गद्दी पर जाता और कम से कम तीन महीने की उधारी पर उसको बेचता था। रात के शिफ्ट में भी काम होता था। दिन में काम करने वाला सदस्य रात को सोता था और रात में दूसरा सदस्य काम करता था।
अब कैसे है काम के हालात
हमने अपने हर एक वाक्य में ‘था’ शब्द का प्रयोग किया है। उसकी वजह है कि बिनकारी का काम लगभग खत्म होने के कगार पर पहुच चूका है। हाथकरघा की जगह धडधड करते पॉवर लूम ने ले लिया, इसके लिए विशेषरूप से बुनकरों की सुविधा के लिए फ़्लैट रेट में बिजली की व्यवस्था प्रदेश सरकार ने किया था। जिससे बुनकरों की काम से सम्बंधित समस्याओ का निस्तारण हो सके। मगर समय के साथ वर्त्तमान प्रदेश सरकार ने फ़्लैट रेट की सुविधा खत्म कर दिया था। जिसके बाद से पहले से ही बंद हो रहे पॉवर लूम रद्दी में जाने के कगार पर पंहुच गए। बुनकरों ने अपनी हड़ताल “मुर्री बंद” किया। इस दौरान बुनकर प्रतिनिधियों से सरकार के नुमईन्दो की बैठक हुई और उसमें उनको बेहतर आप्शन का आश्वासन मिला जिसके बाद मुर्री बंद खत्म हुई।
इसके बाद से ही बुनकरों के हालात पर लोगो की नज़र गई। लॉकडाउन के पहले ही काम काफी कम हो गया था। आधे से अधिक पॉवरलूम खड़े होने के कगार पर आ गए थे। इसमें लॉक डाउन ने और भी बुरा हाल इन बुनकरों का कर डाला। लॉक डाउन के बाद से भी काम न के बराबर मिल रहा है। जिसके पास चार पॉवर लूम है उनमे से सिर्फ दो पर ही काम है और मजदूरी भी इतनी कम की खर्च भी न पोसा पाए। इस दरमियान कई बुनकरों के यहाँ दाल रोटी के लाले पड़ने की स्थिति आ गई।
बुनकरों के अन्दर जितना भोलापन है उतनी ही खुद्दारी है। ये भूखे रहना पसंद कर लेते है मगर किसी के आगे हाथ फैलाना नही चाहते है। लॉक डाउन में जैसे ही कुछ छुट मिली तो इन्होने दाल रोटी का अपना कुछ अलग जरिया माश तलाशना शुरू कर दिया है। आप बुनकर बाहुल्य क्षेत्रो में जायेगे तो छोटी छोटी चाय की दुकाने और टॉफी बिस्कुट की कई नई नई दुकाने मिल जायेगी। अच्छे परिवार से सम्बन्ध रखने वाले बच्चे मोमोज बेचते दिखाई दे जायेगे। हाथो में केतली लेकर सडको और गलियों में घूम कर निम्बू वाली चाय बेचते दिखाई दे जायेगे।
क्या कहते है लोग
बुनकरों के बुरे हालात चल रहे है। काम बंद है। बिजली की मार उसके ऊपर सर पर लटकी तलवार की तरह है। ऐसे में बेहाल बुनकर रोज़ी की तलाश में भटक रहा है। छोटी छोटी टाफी बिस्कुट की दुकाने और चाय की दुकाने खुल चुकी है। हमने बुनकर बाहुल्य क्षेत्रो के जनप्रतिनिधियों और सियासी शख्सियतो से बात किया। इस क्रम में समाजवादी पार्टी के पदाधिकारी दिलशाद अहमद दिल्लू ने कहा कि बुनकरों की हाल रोज़ ब रोज़ खराब होती जा रही है। काम की मार, उसके बाद लॉक डाउन की मार, और अब बिजली की समस्याओ से बुनकर परेशानहाल है। हम सरकार से मांग करते है कि बिजली का फ़्लैट रेट जारी रखे।
वही इस सम्बन्ध में लोहता क्षेत्र के जनप्रतिनिधि इन्तेयाज़ फारुकी ने हमसे बात करते हुवे कहा कि “मैं बुनकर बाहुल्य क्षेत्र का ही जनप्रतिनिधि हु और जन सेवक हु। काफी इस कारोबार का मैंने देखा है। मगर ऐसा कभी नही देखा है। बुनकर समुदाय गरीबी के अँधेरे दलदल में धसता चला जा रहा है। लोग बुनकर को अमीर समझते है। कभी घूम कर देखे कई ऐसी दुकाने खुल चुकी है जिनकी रोज़ की आमदनी 40-50 रुपया होती है। इस आमदनी से ही वो घर का किसी तरह दाल रोटी चला रहा है। बिजली के बिल को लेकर बनी असमंजस की स्थिति के कारण बुनकरों को अभी काम भी नही मिल पा रहा है। प्रदेश सरकार को चाहिये कि स्थिति साफ़ करे। बुनकरों के लिए योजनाये लाये अन्यथा काफी परिवार भुखमरी के कगार पर पहुच जायेगा।
बड़ी बाज़ार जैसे बुनकर बाहुल्य क्षेत्र के पार्षद रमजान अली ने हमसे बात करते हुवे सरकार पर जमकर भड़ास निकली। उन्होंने कहा कि “हमने जब से होश सभाला तो बुनकर परिवार में ही संभाला। पढाई लिखाई के बाद मेरा शौक जनसेवक का है और पेशा बुनकर ही है। बुनकरों की इतनी दरिद्र हालत मैंने कभी नही देखा था। सरकार ने फ़्लैट रेट बिजली खत्म करने का निर्णय लिया। इसके खिलाफ बुनकर हड़ताल पर गए। बुनकरों को आश्वासन तो पंद्रह दिन का मिला मगर अभी तक किसी प्रकार का निर्णय प्रदेश सरकार ने नही लिया। इस असमंजस के कारण बिनकारी का काम एकदम बंद है। बुनकर बुख्मारी के कगार पर है। जो इनको अमीर समझता है वो आकार पहले देख ले कि किस हाल में ये बुनकर गुज़र बसर कर रहे है। सरकार को अपना निर्णय लेना चाहिए।”