तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ – सुशांत सिंह की मौत से जुड़ा एक और दावा निकला झूठा, खुद सोचे कितना झूठ परोसा गया आपके सामने

तारिक़ आज़मी

मुंबई: अगर बदलते समय के साथ उसके चक्र को देखे तो घडी का काँटा जो ऊपर के तरफ था, वह वापस घूम कर नीचे आता है। इस क्रम में भले ही कोई कहे कि मानवीय मूल्यों में कमी आई है। मगर स्तर अगर किसी ने अपना खोया तो वह है पत्रकारिता। पहले “पीत पत्रकारिता” करने वालो को हम पत्रकारों के द्वारा बड़े ही हीन भाव से देखा जाता था। मगर समय ऐसा बदला की फर्जी खबरों से जुडी पत्रकारिता ने खुद का नाम असली खबरों से ऊपर कर डाला। हकीकत में देखा जाए तो पत्रकारिता अपना विश्वास खो रही है। ऐसा पहले कभी नहीं था।

रात के वक्त जब आपको थोडा फुर्सत मिलती है दिनभर की थकान के बाद तो आप टीवी चैनल का रिमोट लेकर उसके कान इशारों से उमेठने लगते है। चैनल बदलते रहते है मगर खबरे एक दुसरे जैसी ही दिखाई देती है। ज़मीनी मुद्दे जिस पर बैठ कर बहस होनी चाहिए, चिंतन और मनन होना चाहिए वह अपनी जगह खो चूका दिखाई देता है। आपके सामने बेफिजूल के मुद्दों को गरमाने का पूरा प्रयास रहता है। एक समय था कि जब न्यूज़ एंकर खुद की संजीदगी से पहचाना जाता था। आज तो लगता है कि न्यूज़ रूम को अखाडा समझ कर कभी भी कोई उठा पटक करना शुरू कर देगा। जोर जोर से चिल्लाना, खुद को ही एंकर से जेकर जज समझ लेना आम बात होती जा रही है।

टीआरपी के लिए मेहनत कैसी साहब, सीखे फर्जी टीआरपी बना डालने का हुनर। जो खुद को नंबर वन बताता था वो तो असल में स्वयं-भू नम्बर वन है। अब आप खुद समझे कि ये नम्बर वन की रेस कहा है ? समझेगे भी कैसे ? भाई आपको भीड़ में तब्दील करने का काम पूरा हो चूका है। एक मदारी के तरह भीड़ जुटा दिया गया है। खुद जमूरा पत्रकारिता को शुरू कर दिया है। असल में पत्रकारिता के गटर से ही इस जमूरा पत्रकारिता का उदय हुआ है, तो सड़ांध आएगी ही। आ भी रही है। आप उसको महसूस भी कर रहे होंगे मगर आप बोल नही सकते है। जमूरे ने खुद की भीड़ तो जुटा ही रखा है। उस भीड़ के बीच आप कहा दिखाई देंगे ? उस भीड़ में आप गायब हो चुके है। या फिर भीड़ का हिस्सा आप बन चुके है।

अब आप खुद दूर तक सोच कर देखे। सुशांत सिंह प्रकरण को ले ले। ये खबर का हिस्सा ही नही बनी, शायद पहली ऐसी खबर बनी जो मूल और जमीनी मुद्दों को दबा बैठी। पत्रकारिता के अच्छे बुरे दौर काफी आये थे। मगर 14 जून 2020 को जब सुशांत मृत अवस्था में अपने घर पर पाए गए तो उसके बाद से ही जमूरा पत्रकारिता ने वापस जन्म ले लिया। वह भी इस तरीके से जन्म लिया कि रोज़-ब-रोज़ ये जवान होती गई। हर तरफ सुशांत, सुशांत, सुशांत। टीवी चैनलों पर अजीब भगदड़ मच गई। सभी मूल मुद्दों को छोड़ कर सुशांत सिंह के मौत को क़त्ल करार देने के लिए लग गये। खुद के न्यूज़ रूप में बैठ कर “पूछता है भारत, आई चैलेन्ज यु, कहा छुपा बैठा है, मुझको गांजा दो, ड्रग्स दो,” जैसे शब्दों से आपको आकर्षित किया जाने लगा। भीड़ में तब्दील हो चुके हम उसमे लुत्फ़ उठाने लगे। टीआरपी छप्पर फाड़ रही थी। या फिर उससे छप्पर फड़वाया जा रहा था। फिर क्या था, भागते पत्रकार, दौड़ते पत्रकार और दौड़ लगा कर हाफ्ते पत्रकार एक गाडी के पिक को भी एक्सक्लूसिव फोटो और वीडियो कह कर परोस रहे थे। कुछ दौड़ लगाते पत्रकार तो ऐसे थे कि दो मिनट और दौड़ लगा देते तो शायद फेफड़े तक बाहर निकल गये होते।

हम आप तब भी मूकदर्शक थे। सीबीआई से पहले ही सुशांत सिंह को कथित खोजी पत्रकारिता के द्वारा इन्साफ दिया जाने लगा। हालत तो ऐसी हो गई कि सटोरिये इस बात पर भी जुगाड़ लगा बैठे कि “सुशांत की मौत का खुलासा पहले सीबीआई करेगी या फिर टीवी”। कई आरोप टीवी कैमरों के सामने लगे। अब उनकी भी मज़बूरी समझे आप लोग। अगर आपको किसी और मुद्दे पर भटकाए नही तो आप फिर बढ़ते कोरोना केसों के बारे में, बाढ़ के बारे में, बढती बेरोज़गारी, गिरती अर्थव्यवस्था पर सवाल उठा सकते है। और फिर इस मुद्दे पर बहस सबसे कठिन होती। सत्ता पक्ष को कैसे सवाल कर सकते है। आखिर चैनल की प्रॉफिट ध्यान में रखना पड़ेगा, पैनल में अगर विपक्ष को बोलने दिया गया तो बात और बिगड़ जाएगी क्योकि आखिर वो विपक्ष है। उसके कार्यो को कैसे दिखा सकते है। सत्ता के साथ कदम से कदम मिला कर चलना ही तो फायदेमंद साबित होगा।

बहरहाल, इन सबके बीच सुशांत के मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए सीबीआई आती है। अब तो हंगामा और भी तेज़ हो चूका था। खूब जमकर खुद को ही जज समझने वाले एंकर न मालूम कहा से कहा गवाह सबूत इकठ्ठा करने शुरू कर देते है। सीधे मीडिया ट्रायल होने लगता है। रिया चक्रवर्ती के लिए तो एक एंकर का बस नही चला कि वो खुद उसको सूली पर लटका देता। ईडी से लेकर सीबीआई और एनसीबी सभी लगे हुवे थे। मगर उनसे ज्यादा मेहनत तो एंकर न्यूज़ रूम में कर रहे थे। एक चैनल गलती से मुझसे लग गया। वैसे मैं न्यूज़ चैनलों को देखना 5 सालो से बंद कर चूका हु क्योकि मुझको भीड़ का हिस्सा नही बनना है। एंकर साहब ने आस्तीन चढ़ा कर कहा बड़ी जोर से “आज की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़, करण जौहर से हो सकती है पूछताछ।” भाई सच में मैं तो डर गया था। इतनी बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ बनी थी कि एंकर साहब दोनों हाथो को बार बार पटक रहे थे, हवा में हिला रहे थे।

आपको असल में यही पसंद है। मुझको पता है आपमें काफी लोग केवल आलोचना की नज़र से ऐसे एंकरों को देखते है। मेरा सवाल है कि “भाई क्यों खून जलाते हो खुद का”। समाचार के साथ आप कपिल शर्मा के शो का एक वीडियो देख रहे है। वाकई बढ़िया जोक बनाया है। कोई गलत भी नही है। जोक तो जोक है। मगर दमदार एक्टिंग है। आप उसको देख कर हस रहे है यही से मेरी मेहनत सफल हो चुकी है। बस आप ऐसे ही हस्ते रहे। देखे सुशांत केस में क्या हुआ ? पहले हत्या की थ्योरी तैयार किया था टीवी ने। मुंबई पुलिस ने कहा नही साहब आत्महत्या है। मगर बिहार के तत्कालीन डीजीपी साहब भी हत्या की थ्योरी पर अलग से काम करने लगे। जब मामला गर्म हुआ तो डीजीपी साहब ने बढ़िया मौका देखा और वीआरएस लेकर सियासत में कूद पड़े। वो तो थोडा किस्मत ने साथ नही दिया वरना उनको टिकट भी मिल गया होता। फिर सीबीआई आई और वो कुछ समझती तब तक चैनलों ने आपके सामने हत्या की थ्योरी परोस दिया।

आप हस सकते है एक बार फिर। क्योकि अब सीबीआई भी इसको आत्महत्या मान रही है। इस मामले में बड़ा जैकपोट खुलासा कल हुआ जब एक टीवी चैनल वाले ने ये तक दावा किया था कि रिया की एक पड़ोसन ने सुशांत की मौत के एक दिन पहले उसके साथ रिया को देखा था। उस पडोसन को बकायदा कैमरे पर लाया गया। वो भी हीरो बनने के चक्कर में कैमरों पर दावा कर डालने की स्थिति में थी। मगर जब कल सीबीआई ने उससे पूछताछ किया तो बात फर्जी निकली। सूत्र बताते है कि सीबीआई से उसने सच उगला और बताया कि उसने देखा ही नही था। सूत्रों की माने तो सीबीआई ने उसको सख्त चेतावनी भी दे डाला।

बात यही खत्म नही होती है। रिया चक्रवर्ती के वकील सतीश मानशिंदे ने केंद्रीय एजेंसी से ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है, जो मीडिया के समक्ष झूठे आरोप लगाते हुए दावे करते हैं। मानशिंदे ने कहा कि हम टीवी और इलेक्ट्रानिक मीडिया के सामने झूठे और फर्जी दावे करने वाले लोगों की एक सूची केंद्रीय जांच एजेंसी को भेजने वाले हैं। बताते चले कि ड्रग्स मामले में एक माह बाद जेल से बाहर आईं रिया चक्रवर्ती ने उनके खिलाफ मीडिया में चल रहे दुष्प्रचार औऱ झूठे दावों को लेकर पहले ही कोर्ट जाने का मन बनाया है।

इसका नतीजा क्या हुआ आपको पता है ? रिया और उसके परिवार वाले इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया में उनके खिलाफ चल रही झूठी खबरों और बेबुनियाद आऱोपों को लेकर परेशान है। वो चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि ऐसे आऱोपों के कारण ही मामले को तूल दिया गया और तीन केंद्रीय एजेंसियों को जांच में शामिल होना पड़ा। इसके बाद रिया चक्रवर्ती और उसके भाई शौविक चक्रवर्ती की गिरफ्तारी भी हो गई। बांबे हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते रिया को जमानत दी थी, लेकिन शौविक अभी भी जेल से बाहर नहीं आ पाए हैं।

अब आप सोचे आपके पसंदीदा एंकर आपके सामने क्या परोस रहे है? क्या फसल बो रहे है ? क्या कर रहे है ? आखिर इसका आखरी नतीजा क्या होगा ? आपके बच्चे इस सब से क्या सीख रहे है ? जो झूठ और झूठा प्रोपगंडा परोसा जा रहा है वो समाज पर क्या असर करेगा ? आप सोचे, आपको भीड़ में तो कही तब्दील नही किया जा रहा है। क्या होता रहा है इधर कुछ दिनों से। जब प्रवासी मजदूर सडको पर पैदल चल रहे थे तो आपका पसंदीदा चैनल सुशांत और रिया में उलझा हुआ था। जब कोरोना अपना कहर बरपा रहा है तो फिल्म इंडस्ट्री में नशे की बात हो रही है। क्या दिखाना चाहता है आपका चैनल, इस ड्रग्स कनेक्शन में जितना समय बर्बाद कर रहा है उतना समय मुलभुत समस्याओं पर लगा देता है तो कई समस्याओं को पटल पर लाया जा सकता था। मगर हुआ क्या ? एनसीबी ने जितना गांजा इस फिल्म कनेक्शन में बरामद किया है उतना गांजा तो हमारे उत्तर प्रदेश पुलिस का कांस्टेबल बरामद कर लेता है।

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