तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ – किसी का जितना भी नुक्सान हो मगर आपको तो पतंग चाईनिज़ मंझे से उडाना है ?
तारिक़ आज़मी
कल एक जानने वाले की पतंग के दूकान पर जाकर बैठ गया कुछ देर को। मेरे स्टोरी का हिस्सा था कि इस बार पतंग की बिक्री पर क्या असर आर्थिक पड़ा है। मगर देखते देखते मुद्दा ही बदल गया। मेरी सोच किसी स्टोरी की थी और अचानक वहा जो स्टोरी दिखाई दी वह एकदम अलग थी। लगभग एक घंटे में 100 से अधिक कस्टमर आये। पतंग के साथ उनको मंझे की ज़रूरत थी। दूकानदार कोटन का मंझा दिखाता तो वो उसको चेक करते, समझते और फिर चाइनीज़ मंझे की डिमांड कर बैठते। दूकानदार उनको लाख समझाता कि ये मंझा उससे अच्छा है। उस मंझे को ये काट देगा। मगर नहीं भैया, “ऊहे वाला चाहि” जैसे शब्दों से दूकानदार मायूस हो जाता और कहता नही है।
एक दो ग्राहकों को मैंने भी कहा “यार वो प्रतिबंधित है, काफी जानो का नुक्सान पुरे देश में हो चूका है। क्या फायदा अपने मजे की खातिर किसी की जान का दुश्मन बन बैठे इंसान” मगर उनको सब बात समझ आती, बस आखिर में यही कि चाइनीज़ ही चाहिये तो चाहिए। वैसे तो बहुत शौक मुझको कभी नही रहा पतंग उड़ाने का। मगर कभी कभार बचपन में अगर उडाना भी हुआ तो उस वक्त एक मंझा “पांडा” आता था। शायद बरेली का बना हुआ होता था। काफी मजबूत होता था। इस बार दरियाफ्त किया कि क्या “पांडा” आता है। तो देखा वो भी उपलब्ध है। मगर फिर भी जनता को चाहिए तो चाइना मंझा।
अब मोरबतियाँ का मौजु तो मिल ही गया। सभी मंझे उपलब्ध है। आप पतंग उड़ाने के शौक़ीन है। बढ़िया शौक है। हवाओं में पतंग की कलाकारी दिखाना। एक दुसरे की पतंग काट कर भक्कटे जैसे दिलकश आवाज़ को निकालना। मानता हु कि इसका मज़ा ही कुछ और है। मगर क्या आप अपने मजे के लिए दुसरे को सजा देना चाहते है ? शासन प्रशासन सभी चिल्ला चिल्ला कर थक चुके है कि चईनिज़ मंझे का उपयोग न करे। मगर आपको तो अपनी पसंद का वही मंझा चाहिए।
अब कोई घटना दुर्घटना होती है तो वो किसी और के साथ होती है। आप मूकदर्शक रहते है। याद है मुझको मलीन बस्ती बनियाबाग़ में एक मासूम बच्ची इस चाईनिज़ मंझे से मर गई थी। मौके पर खड़े कई लोगो ने मामले को देख कर अफ़सोस ज़ाहिर किया। सबके जुबां पर मिली जुली एक ही प्रतिक्रिया थी। सभी प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर रहे थे। दो दिनों बाद सभी भूल गये। फिर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी चलने लगी। किसी को उस चईनिज़ मंझे से हुई दुर्घटना याद भी नहीं।
दो साल पहले की ही बात है। एक नवजवान चौकाघाट पर जा रहा था। बाइक से था। चाइनीज़ मंझे ने उसकी गर्दन काट दिया। काफी वक्त तक ज़िन्दगी और मौत से जूझने वाला वो जुझारू युवक आखिर में ज़िन्दगी की जंग जीत तो गया मगर नाचनी कूआ का रहने वाला वो युवक आज भी उस घटना से सिहर उठता है। सिर्फ वही नही बल्कि लाखो प्राइवेट अस्पताल में अपनी बिना गलती के फुकने वाले उसके परिजन भी इसी स्थिति में है। चाइनीज़ मंझे से उनको नफरत हो गई है। उनसे भी बात करेगे तो वो प्रशासन को ही कोसेगे और कहेगे कि प्रशासन अगर चाहे तो ऐसा नही होता।
हमारे साथ किसी घटना दुर्घटना होने पर हम ठीकरा सीधे प्रशासन पर फोड़ देते है। प्रशासन अगर चाहता तो ये कर सकता था, अगर चाहता तो वो कर सकता था। मगर हम भूल जाते ई कि प्रशासन हर एक गली नुक्कड़ पर मुस्तैद रहकर अगर आपके द्वारा खरीदी गई सामग्री को चेक करेगा तो आपके ही अना को ठेस पहुच जायेगी। हर एक नुक्कड़ पर फिर पुलिस से आप किच्चाहिन करते दिखाई देंगे कि “का चोर चाईया दिखात हई का जो तलाशी लेवत हऊआ।” आपकी अना शिकार हो जायेगी। आप जमकर बवाल काटेगे।
मगर अगर खुद न खास्ता आपके किसी परिचित के साथ ऐसी घटना होती है तो सबसे अधिक आप बवाल काट डालेगे। आपका सबसे पंचिंग डायलाग रहेगा कि अगर प्रशासन चाहे तो चईनिज़ मंझा न बिकता। भाई आप खुद सोचे और देखे। एक एक दूकान पर छापेमारी होती है। माल पकड़ा भी जाता है। माल के साथ लोग भी पकडे जाते है। वही सीन थोडा आप उल्ट दे और सोचे अगर आप खुद चाएनिज़ मंझे को न कह दे तो कोई क्या आपको ज़बरदस्ती बेच देगे।
सोचे समझे और खुद फैसला करे, किसी के जीवन से अधिक कीमती आपका मनोरंजन नही हो सकता है। कितने पक्षी घायल होते है ? कितने बेजुबान पंछी मर जाते है ? कितने लोगो को नुक्सान पहुचता है ? कितने लोग आपके मनोरंजन का खामियाजा भुगतते है। खुद के वाहन में चाईनीज़ मंझा फंस जाए तो मन में आप 200 गालिया देते है और जुबान से भी दस दे देते है। होलसेल होती है न किसी के नाम के साथ नही। मगर वही चायनीज़ मंझा आपके उड़ाने के बाद सडको पर होता है तो वह आपके मनोरंजन से बचे टुकड़े होते है।