बैनरों में सिमट कर रह गए “जल है तभी तो कल है” स्लोगन, वसई विरार में नगर रचना भी वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर बनी है उदासीन

कमर बेग/ समीर मिश्रा

विरार. कहते हैं कि अगर फिर कोई विश्व युद्ध अगर होता है तो वह पानी के लिए होगा। जानकारों के अनुसार जीवन के लिए सब से महत्वपूर्ण पानी को लेकर गहराते संकट पर और पानी को  बर्बाद होने से बचाने के लिए और पानी के संरक्षण के लिए सरकारें वैसा ठोस कदम नही उठा पा रही है। नैसर्गिक जल स्त्रोतों का लगातार दोहन हो रहा है। जानकारों के अनुसार बड़े पैमाने पर कम्पनियां इस का दोहन कर रही है हालात यह हो गए हैं कि भूगर्भ का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है कई सौ फीट पर पानी मिल रहा है।

स्वच्छ पानी मिलना भी ग्रामीण भागो में मुश्किल हो रहा है महाराष्ट्र के कई ग्रामीण भागो में हालात यह रहते हैं कि महिलाओं को कई किलोमीटर तक पैदल सफर कर दूर दराज से कुंवे से पानी लाना पड़ता है।  गाँव के कुंवे भी गर्मियों में सुख रहे हैं इस के अलावा इस कि सही देखरेख ना होने से कई कुंवे कचरे डालने से दूषित हो गए हैं। जल संरक्षण के लिए वैसे ठोस कदम सरकारें नही उठा पा रही है जैसा उन्हें उठाना चाहिए।

भूगर्भ में पानी के लगातार गिरते जलस्तर को बढाने को लेकर ठोस काम जो किए जाने चाहिए वैसे होते दिखाई नही दे रहे। धरती को चीर कर नैसर्गिक जल स्त्रोतों से पानी का दोहन तो लगातार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है लेकिन भूगर्भ के पानी के रिचार्ज को लेकर ठोस कदम उठते दिखाई नही देते। धीरे धीरे यह एक बहुत बड़ा संकट उभरने जा रहा है। ऐसी बात जानकार लोग बताते है। पानी के संरक्षण को लेकर स्थानीय महानगर पालिकाओं का भी वही हाल है जो नियमो को सख्ती से पालन करवाने में पिछड़ती हुई दिखाई देती हैं। कहने को तो महानगर पालिका के नगर रचना विभाग में इमारतों को बनाने देने के समय परमिशन में सभी कानून कायदे दर्शा देते हैं लेकिन उन नियमो का कितने बिल्डर पालन करते हैं यह सभी जानकार लोग जानते हैं।

हम बात कर रहे हैं वसई विरार की जंहा पर महानगर पालिका के नगर रकना विभाग इमारतों को बनाने देने के समय परमिशन देने में सभी कायदे पेपर में दे देता है लेकिन हकीकत में वह कायदे सिर्फ पेपर में ही सिमट के रह जाते हैं। इमारत को ओसी भी दे दी जाती है जब कि कायदे के अनुसार इमारत परिसर में ना तो झाड़ ही लगाए जाते हैं और ना ही वाटर हार्वेस्टिंग ही कि जाती है। जल संरक्षण को लेकर कोई भी काम बहुत कम ही इमारतों के परिसरों में किया जाता है। बरसात के पानी को जमा कर फिर उसे इस्तेमाल में लाया जा सकता है और यह करना ज़रूरी भी होता है। जिस से पीने के पानी की बचत की जा सके। और इस्तेमाल के पानी को संरक्षण कर उसे दूसरी ज़रूरतों में इस्तेमाल किया जा सके। वसई विरार में सैकड़ो से अधिक ऐसी इमारतें होने की बात सूत्र करते हैं जंहा पर वाटर हार्वेस्टिंग ना होने पर भी उन्हें नगर रचना ओसी प्रमाण दे देता है।

यही नही महानगर पालिका आए दिन हो रहे पाइप के फटने और पानी के लीकेज से बर्बाद हो रहे पानी को लेकर कोई ठोस कदम नही उठा पा रही है ऐसी जानकारी भी सूत्र करते हैं। कुछ दिनों पहले पानी के लीकेज और अन्य कारणों के कारण मनपा आयुक्त गंगाथरन डी ने नए नलकनेक्शन पर रोक लगा दी है। जब कि सूत्र इस पर मनपा की सूर्या डैम के पहले दूसरे फेज बनने के बाद भी और पानी की कमी नही होने की बड़ी बड़ी डिंगो पर अफसोस होने की बात कहते हैं।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *