उन्नाव पत्रकार पिटाई प्रकरण पर तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – सीडीओ उन्नाव का नया फार्मूला, पहले करो पत्रकार की पिटाई, फिर खिलाओ उसको काजू कतली और रसमलाई

जैसे आपको लगता है कि आपको किसी की बद्दुआ लग जाएगी तो आप बददु की चाय पी लो। बद्दुआ कट जाएगी। वैसे ही अगर कोई मामला आम न हो तो आम खा लो और खिला दो, मामला आम हो जायेगा। देखा कितना समझदार हु मैं, मगर बताता किसी को नही हु कि समझदार हु मैं।

तारिक आज़मी

मेरी एक अनदेखी मित्र मीना सिंह का कल से फोन आ रहा था। मगर व्यस्तता के कारण बात नही हो पा रही थी। कभी मेरी व्यस्तता तो कभी नेटवर्क की व्यस्तता के कारण बात हुई नही। वैसे मीना जी से भले मुलाक़ात कभी न हुई हो मगर सोशल मीडिया पर उनके तेवर बताते है कि वो मेरा शायद फीमेल वर्जन है। आज सुबह सुबह सोकर उठने पर उनकी काल ने ही नीद भगा दिया था। अमूमन तो चाय की चुस्की नींद को भगाती है मगर आज मीना जी के फोन ने नीद भगा दिया। फोन उठाते के साथ ही सीधा फायर हो गई मीना जी।

कहा रहते हो यार, कितना बिजी रहते हो, कल से फोन कर रही हु बात नही हो पा रही है। आखिर कितना व्यस्त हो। एक सांस में कई सवाल और गुस्से की आवाज़ ने अचानक नींद उड़ा डाला। नीद के उचटते ही मैंने पूछा, अरे यार क्या हुआ, काहे मेरे कक्का जैसे फायर हो रही हो। सुबह सुबह का डरावना सपना देख लिया था। अभी इतना बोला ही था कि कक्का धमक गए कमरा में और उहो फायर मोड़ पर। सीधे बोले पहले हमरी बात सुनो फिर फोन की सुनो। यहाँ तो रज़िया गुंडों में फंस गई थी। समझ नही आ रहा था कि किसके फायर को पहले झेले। एक तरफ मीना कान में दुसरे तरफ कक्का कमरा में। बड़ी मुश्किल घड़ी रही गुरु, बड़ी शिद्दत के साथ कक्का को संभाला और मीना को भी। फिर दोनों को कहा कि अपनी अपनी बताओ।

तब समझ आया कि दुन्नो जो बतिया हमसे बतियावे वाले रहे दोनों बतिया इज एक्के, बस तन्नी मन्नी डिफ़रेंस। नही समझे आप क्या ? वैसे भी ये इंग्लिश नही हिन्गलिस है। तो थोडा समय लगता है समझने में। बतिया इतनी रही कि दुन्नो की कि एक पत्रकार है, बड़का नेशनल चैनल के। नाम कृष्णा तिवारी रहा। तो तिवारी जी ब्लाक प्रमुख चुनाव का कवरेज करे के लिए गए रहे। ई बतिया तो आपके भी पता होगी। तो कवरेज करे के दौरान एक ठे आईएएस साहब है, दिव्यांशु पटेल। खूब पढ़े लिखे साहब है। ऊ अभी उन्नाव के सीडीओ साहब है। तो सीडीओ साहब है ऊ गुस्सा गये कि बिना उनके पूछे ई तिवारी जी कईसे आखिर खबर कवरेज कर रहे है।

बस फिर का रहा, आईएएस पटेल जी के गुस्सा आ गया और दौड़ा दौड़ा के पत्रकार तिवारी जी के कूट दिहिन। जमकर कुटाये के बाद तिवारी जी का मोबाईलो टूट गवा। अब बातिया पत्रकारन का रहा तो कुल पत्रकार बवाल काट दिहिन। तिवारी जी के साथ कुल खड़े हो गयेंन। बड़का वाला लोगन प्राइम टाइम पर कहे लगे कि पत्रकार के साथ अन्याय है। कई लोगन लिखे लगे कि “एक, दुई, तीन, चार… अब बंद करो अत्याचार।” पूरा पत्रकार जगत में उबाल आ गवा रहा। खूब सब लोग इकठ्ठा हो गए। कही कोतवाली पर धरना हुआ तो कहियो प्रदर्शन, कुछ लोगन तो सीधे सीधे पत्रक सौपे लगेन। अब आईएएस पटेल जी समझ गए कि मामला तुल पकड़ लेगा तो ऊ तिवारी जी के बुलवा के काजू कतली और रसमलाई खिला दिहिन और फोटो वोटो खिचवा के छपास बदे भेज दिहिन और मामला खतम हो गया।

ईहे बतिया लेकर मीना फोन पर चिल्लात रहिन और कक्का कमरा के अखाडा बनावे के तैयार रहे। आखिर दुन्नो को हम समझाया। हम कहा देखो कक्का और देखो मीना हम समझदार ढेर है तो हमरी सुनो शांति से। अब तिवारी जी अरे नहीं समझ आया तो पूरा नाम सुनो कृष्णा तिवारी जी कुटा तो गए रहे। फिर मोबाइलो टूट गया रहा। इतना बलिदान देने के बाद तिवारी जी को सीडीओ साहब मिठाई, काजू कतली और रसमलाई खिला कर मामला पैच किये तो का हुआ। तिवारी जी का देखो नुक्सान मोबाइल का हुआ रहा। अब सीडीओ साहब से कट्टी के बाद मिट्ठी मिट्ठी हो गई तो इतना तो कब्बो सुल जो जायेगा। समझो ई बतिया के।

कक्का फिर से फायर रहे, उधर मीना भी फायर कि अईसे कईसे हो जायेगा। जो लोग विरोध कर रहे थे उनका का…..? तो हम फिर समझाया। हम बार बार कहते है कि हम समझदार है लोग मनबे नहीं करते हो। देखो समझो बात को। जो लोग विरोध प्रदर्शन किये। धरना दिए, ज्ञापन दिए, ऊ लोग का कृष्णा तिवारी से पूछ के दिए रहे ? नहीं न, उनके लगा कि पत्रकार का मामला है तो हम लड़ेगे, पत्रकार के साथ अत्याचार हुआ है। कुछ पत्रकार के संगठन तो यहाँ तक सोचे कि जागेन्द्र हत्याकांड के तरह इसको भी नेशनल इशु बनाया जाएगा। तिवारी जी जिनके लोग ढंग से उन्नाव में नहीं जानते रहे उनके लोग अब नॅशनल लेबल पर जान गए। अब इतना कुटाई के बाद ये प्रतिफल में मिल गया तो अब का चाहिए। लईका का जान लोगे का तुम लोग।

अब रही बात आगे का भविष्य क्या है ? तो समझो, भविष्य तो तय कर दिया सीडीओ साहब ने। आईएएस अधिकारी है, पढ़ लिख कर इतना बड़ा अधिकारी बने है। उनको विवेक खूब है। इतना विवेक रहा कि पूरा विवेक कुमार बन सकता है। तो इसी विवेक के साथ उन्होंने नजीर कायम कर दिया। ऊ मदनपूरा वाले नजीर चा नही, उर्दू वाला नजीर कायम किया और कह दिया होगा कि सुन बे पत्रकार, पहले करेगे तुम्हारी कुटाई, फिर बाद में खिलायेगे काजू कतली और रसमलाई। अब ई नजीर पर अपने आप को ढालो लोग। अधिकारियों को पक्का वाला फार्मूला मिल गया है अब।

और सबसे बड़ी बात देखो मजाक नही, सीरियस देखो। ई तिवारी जी के कुटाई का मामला आम मामला नहीं है ई बात सीडीओ साहब साबित भी कर दिए तिवारी जी के आम खिला कर। फोटो के तनिक ज़ूम करके देखो टेबल पर आम भी रखा हुआ है। आधा प्लेट खाली हो गवा है। यानी आधा प्लेट आम खिला कर आईएएस साहब ने इस बात को कहा होगा कि “तिवारी जी आपको दौड़ा कर पीटा मैंने, ये बात आम बात नही है, इसके लिए आप आम खाकर आम बात के तरफ इसको कर दे।” अब आप समझो दोनों लोग यानी मीना और कक्का दोनों लोग समझो। जैसे आपको लगता है कि आपकी किसी की बद्दुआ लग जाएगी तो आप बददु की चाय पी लो। बद्दुआ कट जाएगी। वैसे ही अगर कोई मामला आम न हो तो आम खा लो और खिला दो, मामला आम हो जायेगा। देखा मीना कितना समझदार हु मैं, मगर बताता किसी को नही हु कि समझदार हु मैं।

कमरा में और कान में पूरी तरफ कुछ सेकेण्ड शांति रही। कक्का ने धीरे से हाथ बढ़ा कर रजनीगंधा का मेरा पाउच उठाया। वैसे कक्का अपना खायेगे तो कमला पसंद से काम चला लेते है, मगर हमरा रजनीगंधा उन्हें चाहे होता है। कक्का ने रजनीगंधा की पुडिया को मुह में डाला। रैपर को दस्त बिन में फेक कर बड़े शांत लहजे में कहा तो मेरे होश ऐसे उड़े कि सीधे मोबाइल फेक कर बाथरूम में घुस गया। कक्का बोले “हु, बात सही है तुम्हार, तो सुन बेटा पत्रकार, अब करुगा मैं तुम्हारी कुटाई और फिर खुलाऊगा तुमको काजू कतली और रसमलाई।” ई आवाज़ शायद फोन पर मीना को भी लग गई उधर से कान फाडू हसी का ठहाका रहा और हम फुर्र हो गये रहे सीधे बाथरूम में।

आप भले हमारी बात पर हंस रहे होंगे। मगर हकीकत तो यही है। किसने क्या किया वो छोड़े, मगर कहा जाता है कि जब अपना सिक्का खोटा हो तो पारखी को दोष काहे का देना है। अब कृष्णा तिवारी को शायद किसी हाईटेक आफर ने मंत्रमुग्ध कर दिया होगा कि वो इस खास बात को आम बात बना दे। भले आम खाकर ही आम बात बनाये। मगर बना दे तो उन्होंने बना दिया। और दूसरी बात इतनी महँगी काजू कतली खाने को मिली तो थोडा इसके लिए सभी पत्रकारों की इज्ज़त ताख पर रख दिया तो क्या फर्क पड़ता है। सोचना तो हमको चाहिए कि हमारा पत्रकार साथी इतना कमज़ोर कैसे है कि काजू कतली पर ही फिसल जाए। या फिर संस्थान ने उसको कोई विशेष निर्देश दिया था। छोड़े साहब, ये बात निकलेगी तो बहुत दूर तक जायेगी। शायद आप भूल चुके होंगे मगर हम तो नही भूले है कि किस प्रकार जागेन्द्र हत्याकांड में अत्याचार हुआ था। पुरे देश में इसका उबाल दिखाई दिया था। शायद उस समय सरकार किसी आन्दोलन को खत्म नही करवाती रही होगी। तो थोडा चला भी आन्दोलन, मगर नतीजा क्या निकला आप खुद पता कर ले।

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