दुर्गाकुंड ऑटो स्टैंड प्रकरण (भाग – 3) – कमाल ही तो कहेगे इसको कि जो खुद कर रहा था ऑटो से अवैध वसूली, उसने ही लगाया दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज पर आरोप

वैसे ये ट्रांसफर रूटीन ट्रांसफर के तरह था और प्रकाश सिंह को दूसरी पुलिस चौकी मिली है। मगर कुछ लोग खुद का कालर खड़ा करके यह कहते हुवे दिखाई दे रहे है कि “देखला, हटवा देहली न।” अब वो इसमें ही खुश है तो हो ले खुश। नियति तो नियत तिथि की मोहताज होती है। अब अधिकारी जाने की मंगल यादव का आरोप था इस ट्रांसफर के पीछे या फिर अमूमन होने वाले ट्रांसफर के तरह ये ट्रांसफर था। मगर इस ट्रांसफर के साथ ही कुछ काले कारोबार को अपना मुख्य कारोबार बनाये लोग सक्रिय हो गये है। लोगो के चेहरे पर मुस्कराहट दिखाई दे रही है।

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तारिक आज़मी

वाराणसी। दुर्गाकुंड स्थित ऑटो स्टैंड का प्रकरण अचानक चर्चा में आ गया है। पिछले दो अंको में हमने आपको इस बात से अवगत करवा दिया कि जिस संपत्ति पर नगर निगम ऑटो स्टैंड चलाने का लाइसेंस देता चला आया है वह सपत्ति नगर निगम की है ही नही। लगातार मिल रही शिकायतों को नगर निगम ने किस प्रकार से ठन्डे बसते में डाल कर कागज़ी घोड़े एक दो साल नहीं बल्कि लगभग दो दशक तक दौडाये। पुलिस प्रशासन इस मामले में गेंद हमेशा दुसरे के पाले में डाल देता था। शायद इस ऑटो स्टैंड के खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत होनी चाहिए। या फिर पत्थर मारना और कीचड उछलने की कहावत ही सही समझ कर पुलिस प्रशासन शांत बैठा रहता था।

इस मामले में दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज प्रकाश सिंह ने कार्यवाही किया। ऑटो से होने वाली वसूली की शिकायत मिलने पर दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज ने इस ऑटो स्टैंड से वसूली बंद करवा दिया। आखिर दो दशक का दबदबा खत्म हुआ था तो कीचड उछलना ही था। 10 फरवरी को वसूली करने वाले मंगल यादव को 34 पुलिस एक्ट में चालान किया गया और पत्रकार रामू पाण्डेय की सुपुर्दगी में दिया गया। रामू पाण्डेय एक पुराने पत्रकार है। जिस प्रकार का आरोप मारपीट का मंगल यादव अब लगा रहा है वह अगर सत्य होता तो रामू पाण्डेय इतने नौसिखिया नही है कि वह सुपुर्दगी लेते। यहाँ तक की कोई नवसिखिय पत्रकार भी ऐसी हकीकत होने पर सुपुर्दगी नही लेता।

मगर दुसरे दिन ही मंगल यादव ने खुद का मेडिकल बनवा लिया। अब मंगल यादव जिसको रात तक रामू पाण्डेय ने अपनी सुपुर्दगी में लिया था को कोई चोट नही थी वह सुबह चोटहिल हो जा रहा है और मेडिकल बन जा रहा है। अब हकीकत या तो मंगल यादव जानता होगा या फिर रामू पाण्डेय जाने कि जब मंगल यादव को इतनी चोट लगी थी तो उन्होंने सुपुर्दगी लेने के बजाये खबर क्यों नही लिखा। हम इस मामले में फिर एक बार आपको कहते है कि कौन सच कौन झूठ इसका निर्णय हम नही बल्कि जाँच अधिकारी तत्कालीन एसपी (सिटी) और वर्तमान एडीसीपी (काशी) कर चुके है और जाँच में मामला झूठा पाया गया था। अब आरोप दुबारा उठा है। मंगल यादव ने नगर निगम का लाइसेंस जो किसी संजय सिंह के नाम से था के समाप्त होने के तुरंत दुसरे दिन ही अपना बयान जारी करके एक और आरोप लगा डाला। अब आप सोच रहे होंगे कि एक अवैध वसूली का जिसके ऊपर आरोप है वह आखिर पुलिस के खिलाफ ऐसे कैसे खड़ा हो गया। असल में मामला कुछ अलग ही है। उसको गहराई से समझने के लिए दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज के पुरे कार्यकाल को देखना पड़ेगा।

ट्रांसफर पर कालर खड़ी कर रहे लोग

दरअसल जिस दिन मंगल यादव ने अपना कथित आरोप लगाने वाला बयान जारी किया उसी शाम को होने वाले ट्रांसफर लिस्ट में प्रकाश सिंह का भी नाम था। वैसे ये ट्रांसफर रूटीन ट्रांसफर के तरह था और प्रकाश सिंह को दूसरी पुलिस चौकी मिली है। मगर कुछ लोग खुद का कालर खड़ा करके यह कहते हुवे दिखाई दे रहे है कि “देखला, हटवा देहली न।” अब वो इसमें ही खुश है तो हो ले खुश। नियति तो नियत तिथि की मोहताज होती है। अब अधिकारी जाने की मंगल यादव का आरोप था इस ट्रांसफर के पीछे या फिर अमूमन होने वाले ट्रांसफर के तरह ये ट्रांसफर था। मगर इस ट्रांसफर के साथ ही कुछ काले कारोबार को अपना मुख्य कारोबार बनाये लोग सक्रिय हो गये है। लोगो के चेहरे पर मुस्कराहट दिखाई दे रही है। इस मुस्कराहट में योगदान थाने पर तैनात एक विभीषण रूपी का भी है। आइये इस मामले की तह तक जाते है कि आखिर दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज प्रकाश सिंह ने कौन वो लोग थे जिनको नाराज़ कर रखा था।

प्रकाश सिंह की पोस्टिंग दुर्गाकुंड चौकी पर करना तत्कालीन एसएसपी प्रभाकर चौधरी का फैसला था। कई अन्य लोग और तत्कालीन थाना प्रभारी प्रकाश सिंह को अपनी टीम में केवल इस लिए रखना चाहते थे कि वह एक तेज़ तर्रार दरोगा है और क्राइम पर ज़बरदस्त नियंत्रण कर लेता है। खुद क्राइम में एक्सपर्ट भारत भूषण तिवारी की टीम का हर एक सिपाही तक उनके लिए चाहिता होता है, मगर भारत भूषण तिवारी इस दरोगा को हमेशा अपनी टीम में रखना चाहते थे। सबकी मांग के बावजूद भी तत्कालीन एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने प्रकाश सिंह की काबिलयत पर भरोसा जताते हुवे पीएमओ के चौकी पर ही प्रकाश सिंह की नियुक्ति किया। ये भी हकीकत है कि तब तक कई गलत कामो का मुख्य गढ़ दुर्गाकुंड चौकी क्षेत्र ही बना हुआ था।

दुर्गाकुंड चौकी इंचार्ज के तौर पर पोस्टिंग के तुरंत बाद एक एक कर गलत काम बंद करवाना प्रकाश सिंह का टारगेट हुआ। पहला अटैक था कबीर नगर स्थित दारु की दूकान। लगभग हर एक दारु की दूकान में मुख्य बाहुबली वहा का चखना वाला ही होता है। आगे टीन शेड डाल कर मनमाफिक दुकानदारी करने वाली इस दूकान को सबसे बड़ा संरक्षण बच्चा का रहा। बच्चा 17 साल से इस शराब की दूकान पर अपना शासन चलाता था। बड़ी पकड़ रखने का दावा करने वाले बच्चा पर किसी चौकी इंचार्ज ने 17 साला तक हाथ नही डाला था। प्रकाश सिंह ने इस दारू की दूकान पर अपनी रिपोर्ट तत्कालीन एसएसपी प्रभाकर चौधरी को दिया और उनके द्वारा आबकारी विभाग को भेजी गई। सूत्रों की माने तो आबकारी ने बड़ी कार्यवाही करते हुवे इस दूकान पर अर्थदंड लगाया था। जिसके बाद शांति भंग में बच्चा को प्रकाश सिंह ने बुक किया था। इसके अलावा आगे टीन शेड वगैरह भी हटवा दिया गया। ये बात लीकर में अपना साम्राज्य बनाने वालो को बुरी लगी थी और वक्त का इंतज़ार कर रहे थे।

इसके बाद दुसरे नम्बर पर थी कुडाखाना तिराहे पर की शराब की दूकान। यहाँ शराब दूकान बंद होने पर घर से बेचने की सुचना पुलिस को मिलती रही। मगर पुलिस कार्यवाही लम्बे समय से नही कर पाई थी। इस शराब की दूकान पर और इसके अवैध कामो पर कहर बनकर प्रकाश सिंह टूट पड़े। एक, दो नही इसके खिलाफ 3 मुक़दमे कायम किये। सूत्रों की माने तो काफी लालच के साथ दबाव आया मगर प्रकाश की चमक कम नही हुई और आखिर इसका कारोबार बंद हो गया। इसके बाद नम्बर आया चाय के दूकान पर बैठकी का। पुलिस चौकी के ठीक पीछे एक पेड़ के नीचे दो दशक से चाय की दूकान थी। क्षेत्र की जनता परेशान रहती थी क्योकि आधी सड़क तक गाडी खडी करके लोग यहाँ जमघट लगाये रहते थे। चाय की दूकान पर जमघट बंद हुआ और फिर दूकान भी अवैध थी वह भी बंद हो गई। यहाँ जमघट अक्सर विश्वविध्यालय के छात्रो द्वारा रहता था। तो कोई कार्यवाही करने से पहले सोचे ज़रूर कि कही मामला कही का कही और न पहुच जाये। मगर प्रकाश सिंह ने बंद करवा डाला। इंतज़ार इस गुट और उस शराब वाले को भी सही समय का था।

इसके बाद कोचिंग एरिया में गुटबाजी और होस्टल पर कब्ज़े आम बात थी। इस गुटबाजी और कब्जेदारी को खत्म किया तो दबंग फिर फ़िराक में हो गए कि कब वक्त मिले और कब सलट दिया जाए। इनमे ज़्यादातर सफ़ेदपोश थे और कुछ हिस्ट्रीशीटर भी थे। मोमोज वालो से वसूली से लेकर संजय शिक्षा निकेतन के पास मुर्गे के खोमचे लगवा कर किराये के नाम पर वसूली। लगभग चिकेन के हर एक खोमचे पर दारुबाज़ी भी होती थी। इसकी शिकायत पर ये सभी बंद हुवे। कई महिलाओं ने इसकी शिकायत किया था कि आने जाने में भी दिक्कत होती है। शिकायत का निवारण हुआ और ये अवैध दुकाने बंद करवा दी गई। वक्त का इंतज़ार इन सफेदपोशो को भी था।

स्पा के संरक्षकों द्वारा क्या रचा गया है पूरा खेल ?

सबसे बड़ा वक्त का इंतज़ार न करके खुद वक्त अगर किसी ने बुलवा दिया तो वह सफेदपोश थे जिनके संरक्षण में शाहकुम्बरी काम्पेल्क्स में स्पा के आड़ में “जुगाड़” शुरू हुआ। अभी एक हफ्ता भी नही बीता होगा कि इसकी जानकारी प्रकाश सिंह को मिल गई। इस सुचना पर प्रकाश सिंह ने इस स्पा पर ही छापेमारी किया। इस स्पा सेंटर के संरक्षणदाता सफ़ेदपोशो के सूत्रों की माने तो इस छापेमारी से पहले थाने के एक विभीषण ने जानकारी दे दिया था तो पुलिस के आने से पहले ही शाहकुम्ब्री कम्पेक्स के तीसरे तल्ले पर खुले इस स्पा सेंटर में ताला बंद हो गया। ये छापेमारी 5 जुलाई को की गई थी। मौके पर कोई नही मिला। मामले में सख्त हिदायत दूकान मालिक जिसने दूकान किराय पर दिया था को दी गई।

पुलिस अभी छापेमारी के बाद थाने पर भी नही गई थी कि सफेदपोश संरक्षण दाताओं ने इस मामले में प्रकाश सिंह पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। एक सूत्र की माने तो रकम भी आफर किया गया। मगर प्रकाश सिंह के इंकार करने पर उस समय कहा गया कि “तब फिर आपके नही रहने पर चलेगा स्पा।” जिसपर तल्ख़ लहजे में इन सफ़ेदपोशो को जवाब भी प्रकाश सिंह ने दिया था। इस छापेमारी की जीडी भी थाने पर चढ़ी है जिसकी जानकारी हमको थाने के सूत्र से मिली। 5 जुलाई को चढ़ी जीडी के बाद 6 जुलाई को सफ़ेदपोशो की “नहीं रहने” वाली बात और फिर 7 जुलाई को दुर्गाकुंड ऑटो स्टैंड का लाइसेंस खत्म होने के ठीक दुसरे दिन यानी 8 जुलाई को मंगल यादव द्वारा आरोप लगाया गया। फिर उसके बाद 8 जुलाई को ही प्रकाश सिंह का ट्रांसफर हो जाना इन कालर टाइट किस्म के लोगो को हसने का मौका दे रहा है।

शायद इसी वक्त का इंतज़ार इस क्षेत्र के हिस्टीशीटरो को भी था। अभी तक सभी एचएस इस इलाके के जेल में है। क्राइम ग्राफ जीरो। या तो अपराध हुवे ही नही, और अगर हुवे तो उसका खुलासा हुआ। चेन स्नेचिंग का गढ़ रहे इस इलाके में चेन स्नेचिंग बंद हो गई। अब इतने बाहुबलियों के मुखालफत में अगर आरोप लगता है तो समझा जा सकता है कि हकीकत क्या होगी ?

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