तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – खोजते है इंसानों की बस्ती में नाग नागिन का जोड़ा, बीन भी बजायेगे और उन्हें दूध भी चखायेगे
तारिक आज़मी
आज शाम को काकी बड़े गुस्से में थी। काकी का तरारा चढ़ा हुआ था। काका कुछ बोलते कि काकी डपट देती और काका सिकपिका कर चुपाये हो जाते। हम ठहरे बेचैन दिल के इंसान। हमको माजरा समझना था। वैसे काका और काकी की जोड़ी जैसा मैंने बताया था कि टॉम एंड जेरी की जोड़ी है तो थोडा हम भी मौज ले लेते है। खूब दरियाफ्त किया मगर काकी के भड़कने का कारण नही पता चल रहा था। काका अईसा सिकपिका कर चुप रहे, जैसे उन्होंने सोते हुवे शेर को छेड़ दिया हो। मगर यहाँ तो शेरनी थी। हम सीधे काकी से ही पूछना बेहतर समझा क्योकि काका मिर्चा का झार मन्ग्रईला पर निकाल देते। काकी से तो बस चलता नही है, हमे ही धर देते।
तो हम फैसला किया कि काकी से ही पूछेगे कि क्या हुआ ? धीरे से किचेन में गए और काकी से कहा काकी चाय है क्या ? वैसे काकी हमको मानती बहुत है। तो गुस्सा को गाल में दबा कर होठो पर मुस्कान के साथ बोली हाँ बेटवा है, और चाय निकालने लगी। तब तक काका कहे कि एक कप हमको भी दे दो। तो फिर क्या था, द्वंद का जैसे एलान हो गया हो। काकी ने जोर से कहा, खत्म हो गई चाय, एक कप है मेरे बेटवा को दे रही हु, जाकर बाहर पी लो। काका दुबारा सिकपिका गये। आखिर हम काकी से पूछ बैठे कि काकी क्या हुआ ? टेम्प्रेचर काहे बढ़ा है ? तब जाकर काकी ने काका की हरकत बताया।
काकी बोली कि “देखो इनको, हमसे कह रहे है कि कल नाग पंचमी है, सोच रहा हु तुम्हारे भाई भाभी को दावत पर बुला लू सुबह। अब बताओ मेरे भाई भाभी क्या नाग नागिन है जो कल के दिन दावत पर बुलायेगे।” बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी को मन में रोक पाया था, उधर काका ठहाका मार कर हंस दिए और काकी का दिमाग फिर ख़राब हो गया। स्थिति कंट्रोल न करता तो आज काका महुअर खेल गए होते और नागपंचमी आज ही हो जाती। वैसे काकी के एक भाई भयानक वाले करियन्ना है। तो काका ने उनसे तफरी कर लिया होगा।
मगर बात गलत है। किसी के भाई को नाग नागिन की तुलना करना कहा से सही है। बड़ी मुश्किल से महुअर को शांत किया और दोनों टॉम एंड जेरी को मिलवा कर दफ्तर में आकर बैठ गया। भाई गरीब किस्म का सम्पादक हु और आवास के नीचे ही दफ्तर भी है। अभी बैठा ही था कि बड़े भाई जैसे दोस्त, हिंदी भाषा के बढ़िया जानकार अभिनव मिश्रा का फोन आ गया। साहित्य के पुरोधा घराने के चश्म-ओ-चराग अभिनव भाई हमारे दोस्त के अलावा पाठक भी है। हमारी हर एक खबरों पर उनका समीक्षात्मक कमेन्ट हमारे हौसलों को उड़ान देता है।
फोन उठाने पर सलाम दुआ की औपचारिकता के बाद अभिनव भाई आज के हमारे जलभराव वाले लेख पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। आज अभिनव भाई हमारे शायराना अंदाज़ में थे और उन्होंने कहा कि “मियां हम तो करे मोरबतियाँ, कैसे देखे करतुतिया, घर आ गई न मेहर, तो आ ही जाएगी खटिया।” अभिनव भाई हमारे काका के डायलाग पर अपना विचार शायराना अंदाज़ में रख रहे थे। वैसे आपको बताते चले कि हम अपने यहाँ जिसको “बड़ी बड़ी बाते, बड़ा पाव खाते” कहते है ऐसे लोगो के लिए दूसरा अलफ़ाज़ हो सकता है कि “आता न जाता, चुनाव चिन्ह छाता”, उनको पूर्वांचल से लगे बिहार के सीमावर्ती इलाको में काफी प्रसिद्ध कहावत कहा जाता है कि “बतिया है करतुतिया नाही, मेहर है घर खटिया नाही।”
हमने अभिनव भाई के शब्दों पर कहा कि “भाई क्या बताऊ, गरीब किस्म का सम्पादक हु, इसीलिए खटिया तो है नही, बस डबल बेड से काम चला रहा हु।” मेरी बात सुनकर अभिनव भाई बड़े जोर से ठहाका लगा कर हँसे और बोले कि ये सही है। बाते आगे बढ़ी और लगा कि आज बड़ी फुर्सत से हमारे अभिनव भाई है। उन्होंने कहा कि और बताये, कल सुबह नाग पंचमी है, दूध पिलाने के लिए सांपो की व्यवस्था कर डाला कि नही। हमने कहा “भाई सब लोग नाग नागिन को दूध पिलाते है, इन शार्ट वो सांपो को दूध पिलाते है। इस बार मैंने सोचा है कि आस्तीन से सांपो को दावत दे दु। कम से कम इससे वो थोडा तगड़े हो जायेगे और मुझको भी मालूम चल जायेगा कि आस्तीन के सांप कौन कौन है।” आप बताये आपका क्या प्रोग्राम है।
फोन पर बात कर रहे अभिनव भाई इस बार थोडा गंभीर मुद्रा में बोले, “मियाँ, कल नाग पंचमी है, सोचता हु कि इंसानों की बस्ती में नाग नागिन के जोड़ा खोजते है और उनको दूध भी चखाते है। ज़रूरत पड़ी तो थोडा बीन भी बजायेगे।” अभिनव भाई की बात की गंभीरता को मैं समझ सकता था। थोड़ी देर आपस में हंसी मज़ाक के बाद अभिनव भाई का फोन कट गया। मगर मेरे लिए मेरा भाई एक गंभीर मुद्दा दे चूका था।
हकीकत में नाग और नागिन के जोड़े तलाशने हमको बहुत दूर नही जाना होगा। संपेरो के डिब्बो में बंद नाग नागिन की जोड़ी को दूध पिलाने में बेकार का वक्त ज़ाया करते है हम लोग। थोडा ध्यान से देखे तो हमको इंसानों की बस्ती में ही नाग-नागिन के काफी जोड़े मिल जायेगे। अगर आपको पहचान में दिक्कत हो तो आप किसी वृद्धाश्रम चले जाए। वहा रह रहे बुजुर्गो से उनके बेटे और बहु का घर पूछ ले। एक जोड़ा तो आपको मिल ही सकता है। अडोस पड़ोस में भी ऐसे कुछ जोड़े मिलेंगे। खुद के आस्तीन को जोर से झाडे तो दो चार तो वहा से भी मिल जायेगे। फिर आखिर क्यों आपको कही और जाना है।
नोट – लेख मनोरंजन के नज़रिये से लिखा गया है, इस लेख का जीवित अथवा मृत किसी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है। लेख को केवल एक मनोरंजन के उद्देश्य से पढ़े। लेख में केवल अनुभव मिश्रा को छोड़ सभी नाम और कहावते कल्पना के डगर से आई है।