आध्यात्मिक दृष्टि से बैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया से कम नही है अक्षय नवमी

बापूनंदन मिश्र

रतनपुरा (मऊ)। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी और धात्री नवमी के नाम से जाना जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से कार्तिक मास की इस नवमी तिथि का महत्व बैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया से कम नही है। कहा जाता है कि जो लोग दिवाली पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा पाने से वंचित रह गए उनके लिए अक्षय नवमी का अत्यधिक महत्व होता है। अक्षय तृतीया के समान ही अक्षय नवमी के दिन किए गए पुण्य का प्रभाव कभी क्षय नहीं होता है।

इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है और प्रसाद रूप में आंवला लक्ष्मी नारायण को अर्पित किया जाता  है। अक्षय नवमी के दिन आंवले की प्रधानता होती है क्योंकि तुलसी और बेल दोनों के गुणों को धारण करने वाले आंवले के पेड पर इस दिन त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश साथ में सरस्वती, लक्ष्मी और मां पार्वती भी वास करती है।

अक्षय नवमी के दिन आंवले के इस महत्व को लेकर जो कथा पुराणों में बतायी गई है उसके अनुसार आंवला भी दिव्य फल है। जैसे कि रुद्राक्ष भगवान शिव के आंसूओं से रुद्राक्ष का वृक्ष अस्तित्व में आया। उसी प्रकार ब्रह्माजी के आंसू से दिव्य फल आंवले की उत्पत्ति हुई है। पुराणों में कथा मिलती है कि भगवान विष्णु के ध्यान में लीन ब्रह्माजी के नेत्रों से अचानाक भक्ति से युक्त आंसू की दो बूंदे धरती पर टपक गई। जिससे आँवला वृक्ष उत्पन्न हुआ।

ब्रह्माजी के आंसूओं से आंवले के वृक्ष की उत्तपत्ति कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को ही हुआ था। इसलिए इस दिन आंवले की पूजा का विशेष विधान है। भगवान विष्णु के ध्यान में लीन ब्रह्माजी के नेत्रों से आंसूओं से प्रकट होने के कारण आंवला भगवान विष्णु को भी अत्यंत प्रिय है।

आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान करके आंवले के वृक्ष के नीचे “ओम धात्र्यै नमः” मंत्र से आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। आंवले के वृक्ष में पहले भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करते हुए फूल, अक्षत, कुमकुम, तिल आदि पूजन समाग्री अर्पित करें। इसके बाद पितरों का ध्यान करते हुए आंवले के जड़ में दूध अर्पित करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष के चारों ओर रक्षासूत्र लपेटे।

इसके बाद घी का दीप जलाकर आंवले की आरती करें। फिर प्रदक्षिणा मंत्र बोलते हुए 3 बार आंवले की परिक्रमा करते हुए यह मंत्र बोलें- ओम यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे-पदे। इससे जाने अनजाने हुए पापों का क्षय होता है और व्यक्ति पुण्य प्राप्त करता है।

धन समृद्धि के लिए अक्षय नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा के बाद ऊनी वस्त्र धन, अनाज जो भी आपकी श्रद्धा हो दान करना चाहिए। कहते हैं कि इस दिन वस्त्रों के दान से परलोक में बैठे पितरों को शीत काल में सर्दी से कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। आंवले की पूजा करने वाले को आऱोग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही अक्षय नवमी के दिन आँवले के वृक्ष के नीचे का बना भोजन करने से पूरे वर्ष व्यक्ति रोग रहित होता। वैज्ञानिक और  स्वास्थ्यगत दृष्टिकोण से भी कार्तिक मास में आंवले का सेवन स्वस्थ्य जीवन के लिए लाभ प्रदान करता है।

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