26/11 आतंकी हमलो पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ : कायर आतंकवादियों द्वारा की गई आतंकी घटना के 13 साल हुवे पुरे, इंसानियत आज भी जिन्दा है
तारिक़ आज़मी
कायरता का अगर इतिहास लिखा जायेगा तो उसमे सबसे बड़े अक्षरों में कायरता की पराकाष्ठ पार करने वाले 26/11 के कायरो का नाम लिखा जाएगा। ये वो कायर थे जो खुद को बहादुर समझ रहे थे। बेक़सूर, निहत्थी इंसानियत पर गोलियां बरसा कर 160 से अधिक लोगो की जान ले लिया था। आज भी याद आते ही रूह तक सिहर उठती है। उस रोज़ जब ये कायर आतंकियों ने अपनी कायरता का इतिहास लिखा था।
आज से 13 साल पहले आज ही के दिन 2008 की वह शाम जब रुपहली नगरी मुंबई हर-रोज की तरह चहक रही थी। लोग अपने अपने कामो से घरो को वापस लौट रहे थे। तो कुछ लोग शाम गुलज़ार करने को सडको पर थे। किसको पता था कि कायर धीरे धीरे दबे पाँव अपने साथ मौत लिए उनके तरफ बढ़ रहा था। रात बढ़नी शुरू हुई और फिर कायरता का नंगा नाच सडको पर चीख पुकार और रोने की आवाजो से खुद को समां चूका था। मुम्बई कायरता के इस खेल से सिहर रही थी। सडको पर निहत्थे लोगो पर ये कायर गोलियां चला रहे थे।
नापाक मुल्क जिसका जन्म हमारे टुकडो पर पल कर हुआ है वहा के एक आतंकी तंजीम जैश-ए-मोहम्मद के 10 कायर आतंकवादियों ने मुंबई को बम धमाकों और गोलीबारी से दहला दिया था। यह भारतीय इतिहास का वो काला दिन है जिसे कोई चाह कर भी नहीं भुला सकता। आतंकियों के हमले में 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 300 ज्यादा घायल हुए थे। आज भी हमारी रूह पर इस कायरतापूर्ण हमले के निशाँ साफ़ दिखाई देते है। मुल्क की हर एक आँखे ग़मगीन थी। सभी इस कायरता की जंग को कोस रहे थे।
हमले से तीन दिन पहले यानी 23 नवंबर को कराची से समुद्री रास्ते से एक नाव के जरिए ये कायर आतंकी मुंबई पहुंचे थे। जिस नाव से आतंकी आए थे वह भी भारतीय थी और आतंकियों ने उस पर सवार चार भारतीयों को मौत के घाट उतारते हुए उस पर इन बुजदिलो ने कब्जा किया था। रात तकरीबन आठ बजे आतंकी कोलाबा के पास कफ परेड के मछली बाजार पर उतरे। यहां से वो चार समूहों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी-अपनी मंजिलों की ओर बढ़ गए थे। बताया जाता है कि जब ये आतंकी मछली बाजार में उतरे थे तो इन्हें देखकर वहां के मछुआरों को शक भी हुआ था। जानकारी के अनुसार मछुआरों ने इसकी जानकारी स्थानीय पुलिस के पास भी पहुंचई थी। लेकिन पुलिस ने इस पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया। ये पुलिस की लापरवाही थी। जिसने इन आतंकियों को शहर के अन्दर घुसने का मौका दे दिया था।
इन कायर आतंकियों का एक झुण्ड छत्रपति शिवाजी रेलवे टर्मिनल गया। जहा रात 09:30 बजे गोलीबारी किया। बताया गया कि यहां रेलवे स्टेशन के मुख्य हॉल में दो हमलावरों ने अंधाधुंध गोलीबारी की है। इन हमलावरों में एक मोहम्मद अजमल कसाब था, जिसे फांसी दी जा चुकी है। दोनों हमलावरों ने एके-47 राइफलों से 15 मिनट गोलीबारी कर 52 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और 100 से ज्यादा लोगों को घायल कर दिया था। सोचे कितना कायर था कसाब और उसके साथियों का झुण्ड। स्टेशन पर निहत्थे मुसाफिरों पर गोलियां दागने वाले इन कायरो के अन्दर हिम्मत होती तो एक दो असलहे वहा के किसी भी मुसाफिर को देकर फिर गोलियां दागते तो शायद ये सब उसी वक्त जहन्नम रसीद हो गए होते।
आतंकियों की यह गोलीबारी सिर्फ शिवाजी टर्मिनल तक सीमित नहीं रही थी। दक्षिणी मुंबई का लियोपोल्ट कैफे भी उन चंद जगहों में से एक था, जो आतंकी हमले का निशाना बना था। मुंबई के नामचीन रेस्त्राओं में से एक इस कैफे में हुई गोलीबारी में मारे गए 10 लोगों में कई विदेशी भी शामिल थे। साल 1871 से मेहमानों की खातिरदारी कर रहे इस कैफे की दीवारों में धंसी गोलियां हमले के निशान छोड़ गईं। रात 10।30 बजे खबर आई कि विले पारले इलाके में एक टैक्सी को बम से उड़ा दिया गया है जिसमें ड्राइवर और एक यात्री मारा गया है, तो इससे करीब 15-20 मिनट पहले बोरीबंदर से भी इसी तरह के धमाके की खबर मिली थी, जिसमें एक टैक्सी ड्राइवर और दो यात्रियों की मौत हेने की जानकारी मिली थी। इन हमलों में तकरीबन 15 घायल हुए थे।
भारतीय इतिहास के सबसे भयावह आतंकी हमलों में से एक इस हमले की यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। 26/11 के तीन बड़े मोर्चों में मुंबई का ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस शामिल था। जब हमला हुआ तो ताज में 450 और ओबेरॉय में 380 मेहमान मौजूद थे। खासतौर से ताज होटल की इमारत से निकलता धुंआ तो बाद में मुंबई पर हुए इस हमले की पहचान बन गया। हमले की अगली सुबह यानी 27 नवंबर को खबर मिली कि ताज होटल के सभी बंधकों को छुड़ा लिया गया है, लेकिन बाद में खबर मिली कि कुछ लोग अभी भी आतंकियों के कब्जे में हैं, जिनमें कई विदेशी भी शामिल हैं। हमलों के दौरान दोनों ही होटल रैपिड एक्शन फोर्ड (आरपीएफ), मरीन कमांडो और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) कमांडो से घिरे रहे। मीडिया की लाइव कवरेज से आतंकवादियों को खासी मदद मिली क्योंकि उन्हें सुरक्षा बलों की हर हरकत के बारे में टीवी पर पता चल रहा था।
सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच तीन दिनों तक मुठभेड़ चलती रही थी। इस दौरान, मुंबई में धमाके हुए, आग लगी, गोलियां चली और बंधकों को लेकर उम्मीदें टूटती और जुड़ती रहीं। न सिर्फ भारत से सवा अरब लोगों की बल्कि दुनिया भर की नजरें ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस पर टिकी हुई थीं। जिस दिन ताज होटल पर हमला हुआ, उस दिन अंतरराष्ट्रीय व्यापार संघ की संसदीय समिति के कई सदस्य होटल में ठहरे हुए थे, हालांकि इनमें से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। हमलों की जब शुरुआत हुई तो यूरोपीय संसद के ब्रिटिश सदस्य सज्जाद करीम ताज की लॉबी में थे तो जर्मन सांसद एरिका मान को अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर छिपना पड़ा। ओबेरॉय में मौजूद लोगों में भी कई जाने माने लोग थे। इनमें भारतीय सांसद एनएन कृष्णादास भी शामिल थे, जो ब्रिटेन के जाने माने कारोबारी सर गुलाम नून के साथ रात्रिभोज कर रहे थे।
दो हमलावरों ने मुंबई में यहूदियों के मुख्य केंद्र नरीमन हाउस को भी अपने कब्जे में कर रखा था। वहां कई लोगों को बंधक बनाया गया। फिर एनएसजी के कमांडोज ने नरीमन हाउस पर धावा बोला और घंटों चली लड़ाई के बाद हमलावरों का सफाया किया गया लेकिन एक एनएसजी कमांडो भी शहीद हो गया था। हमलावरों ने इससे पहले ही रब्बी गैव्रिएल होल्ट्जबर्ग और छह महीने की उनकी गर्भवती पत्नी रिवकाह होल्ट्जबर्ग समेत कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया। बाद में सुरक्षा बलों को वहां से कुल छह बंधकों की लाशें मिली।
29 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावर आतंकियों का सफाया हो चुका था और अजमल कसाब के तौर पर एक हमलावर पुलिस की गिरफ्त में था। स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ चुकी थी लेकिन 160 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी थी। हेमंत करकरे जैसे जांबाज़ शहीद हो चुके थे। कायरता का नंगा नाच करने वाले 10 में से 9 आतंकियों को हमारे देश के सुरक्षा कर्मियों ने जहन्नम रसीद कर दिया था। अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया था। आखिर उसको भी फांसी पर लटका कर उसके जहन्नम में इंतज़ार कर रहे साथियों के पास उसको भेज दिया गया।
पाकिस्तान के नापाक इरादों को पूरी दुनिया ने देखा था। इस घटना के बाद नापाक पकिस्तान ने लाखवी सहित कई आतंकियों को गिरफ्तार करने का दावा किया। मगर आज 13 साल गुज़र जाने के बाद भी लखबी और उसके साथियों पर कोई कार्यवाही न होना इन आतंकियों के आका पकिस्तान की कथनी और करनी में फर्क बताने के लिए काफी है। इस नापाक पाकिस्तान की करतूत दुनिया देख चुकी है। इसकी हरकतों से आजिज़ तो सभी है, मगर मक्कारी की इन्तहा पार करने वाला पकिस्तान आज भी खुद की झूठी शान बघारता है। अपने घर में आंटा तक लोगो को न मुहैया करवा सकने वाला नापाक पकिस्तान आज भी लाखवी पर कोई कार्यवाही न कर सका है। आतंकियों की नर्सरी आज भी इस नापाक पाक में बनी हुई है। ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकियों को अपने सीने में छिपाने की कोशिश करने वाले इस पाक के लिए ये दहशतगर्दी कोई नई बात तो नही बची है। आज भी हमारे सीनों में 26/11 का दर्द और कसक बाकि है।