निर्भया कांड : वो एक रात जब सिहर उठा था पूरा मुल्क, खामोश लबो से भी इस कांड के विरोध में निकल पड़े थे लफ्ज़

शाहीन बनारसी

देश की बेटी निर्भया सामूहिक दुष्कर्म हुए आज पुरे 9 साल बीत गये है। 2012 के दिसंबर की वो रात सर्द सियाह थी। जब देश की राजधानी दिल्ली की सडको पर चलती बस में दरिंदगी को अंजाम दिया गया था। इंसानियत को झकझोर देने वाली घटना इस घटना से पुरे मुल्क में एक उबाल आ गया था। लोग सडको पर आये और ऐसी घटनाओं के खिलाफ अपना आक्रोश व्यक्त किया था। सरकार की बुनियादे हिल गई थी। सख्त कानून बने। मगर आज भी जो स्थिति महिला सुरक्षा की मुल्क में है उसको बयान करने की शायद कोई ज़रूरत नही है। इस काण्ड के बाद ऐसे जघन्य अपराध के खिलाफ मुल्क में आवाज़े उठने लगी कि ऐसे कुकर्मियो को इस्लामी शरिया ला के अनुसार सजा मिले।

निर्भया अपनी इज्ज़त-ओ-आबरू के तार-तार होने के बाद अपनी जान बख्श देने के लिए कुकर्मियो से गुहार लगाती रही। मगर सोच के ही मन सिहर उठता है कि दिल्ली के मुनीरका में 16 दिसंबर 2012 की रात सड़क पर दौड़ रही बस में एक जिंदगी चीख रही थी। जबकि हैवानियत हंस रही थी। वो हैवानों से गुहार लगा रही थी। अपनी जान बख्शने की, लेकिन वो छह दरिंदों को तरस नहीं आया। आखिर उन दरिंदो ने उसके साथ हैवानियत का नंगा नाच करके उसको बीच सड़क पर निर्वस्त्र मरने के लिए फेक दिया। गुज़रते लोगो से निर्भया का साथी हाथ जोड़ कर मदद की भीख मांग रहा था। लोग गुज़रते जा रहे थे।

अपनी आँखों में मुस्तकबिल का ख्वाब सजाये हमारे मुल्क की उस बेटी के साथ दरिंदों ने न सिर्फ दुष्कर्म किया बल्कि उसके जिस्म के साथ वो खिलवाड़ किया, जिसे सुनकर बड़े से बड़ा शैतान भी काँप उठे। उसके गुप्तांग में लोहे का राड डाल दिया गया था। अपनी दरिंदगी को पूरा करके राक्षसों ने उसको निर्वस्त्र हालत में चलती बस से उसे नीचे फेंक दिया था। आज भी जब निर्भया के जख्मों और उसके दर्द की बात आती है तो उसका इलाज करने वाले डॉक्टर भी सहम जाते हैं।

16 दिसंबर 2012 की रात तकरीबन डेढ़ बजे जब निर्भया को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया था। वहां सबसे पहले देहरादून के डॉ। विपुल कंडवाल ने निर्भया का इलाज किया था। विपुल कंडवाल इस वक्त दून अस्पताल में कार्यरत हैं। लेकिन, उन दिनों वे सफदरजंग अस्पताल में कार्य कर रहे थे। कंडवाल ने एक अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि निर्भया की हालत देख वे अंदर से दहल गए थे। जिदंगी में पहले कभी ऐसा केस नहीं देखा था। रात डेढ़ बजे का वक्त रहा होगा। मैं अस्पताल में नाइट ड्यूटी पर था। तभी रोज की तरह सायरन बजाती तेज रफ्तार एंबुलेंस अस्पताल की इमरजेंसी के बाहर आकर रुकी। तत्काल ही घायल को इमरजेंसी में इलाज के लिए पहुंचाया गया।

कंडवाल ने इस इंटरव्यूव में बताया था कि मेरे सामने 21 साल की एक युवती थी। उसके शरीर के फटे कपड़े हटाए, जांच की तो दिल मानों थम सा गया। ऐसा केस मैंने अपनी जिदंगी में पहले कभी नहीं देखा। मन में सवाल बार-बार उठ रहा था कि कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है? मैंने खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि ये युवती कौन है। इतने में पुलिस और मीडिया के कई वाहन भी अस्पताल पहुंचने लगे।

आप डॉ कंडवाल के लफ्जों की गहराई को समझ सकते है। उनके उन जज्बातो को समझ सकते है कि उस समय उनका हाल कैसा होगा। उपचार के दौरान डॉक्टरों के भी रूह काँप उठे थे कि कोई इतना क्रूर और निर्दयी कैसे हो सकता है? बेशक दिल्ली दिल्ली की इस घटना ने सोच की क्रांति तो ला दिया था। मगर कितने वक्त तक इस मामले में चर्चा उठी। खुद सोचे। इस क्रूर घटना के लिए उठा उबाल जिसने मुल्क में एक क्रांति तो ला दिया था मगर ये क्रांति सिर्फ इसी तर्ज पर थी कि “चार दिन चर्चा उठेगी, डेमोक्रेसी लायेगे, पांचवे दिन भूल के सब काम पर लग जायेगे।” इस क्रांति को लाने में मीडिया ने अपना अहम योगदान किया था। मीडिया ने समाज के लिए अपना फ़र्ज़ पूरा किया था। मामले को ठंडा नही होने दिया गया था। सभी मीडिया कर्मियों ने इसमें अपना योगदान दिया था।

मगर सवाल फिर वही आकर खड़ा होता है कि आखिर इस क्रांति से हासिल क्या हुआ ? कानून के दाव पेच में इस केस में इन्साफ 7 साल बाद मिला। इस मामले में एक आरोपी नाबालिग था। उसकी सजा मुकम्मल हुई। वो रिहा हो गया। किसी ने एक सवाल तो उठाया ही नही कि ये नाबालिग जितना हैवान था क्या उसको बाल सुधार गृह ने सुधार दिया। उसका पुनर्वास हुआ। बकिया दरिंदो को उनके किये की सजा मिली। इतने चर्चित केस में भी कानूनी दाव पेच इस्तेमाल करते हुवे दरिंदो ने इंसाफ को 7 साला इंतज़ार करवाया। अब आप सोचे। क्या सच में क्रांति आई थी ? एक कविता की दो लाइन याद आ रही है। “समर शेष है, नही पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनका भी अपराध।” आप सोचे उनके अपराधो की सजा कैसे मुक़र्रर होगी जो तेज़ रफ़्तार अपने घरो को जा रहे थे और उस निर्वस्त्र, घायल, ज़िन्दगी मौत से लडती निर्भया की मदद को आगे नही आये थे। क्या उनको आज आत्मग्लानी हो रही होगी ?

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