“जिया” सियासत-ए-दालमंडी: खुलकर सोशल मीडिया पर सामने आई सपा कार्यकर्ताओं की गुटबाजी, खाने की दावत तक का मारा गया ताना, पढ़े और तनिक मुस्कुराये कि आपके शहर में चुनाव है…….!

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। अगर सियासत का कोई तमगा मिलना होता तो शायद सियासत-ए-दालमंडी सोने का तमगा जीत कर आती। इंटरनेश्नल लेवल पर इसका मुकाबला कोई नही कर सकता है। मिसाल कई है जिसको सुनकर एक से एक खडूस किस्म के लोगो को भी चेहरे पर मुस्कान आ जाएगी। जैसे अभी लगभग एक हफ्ते अथवा दस दिन पहले दालमंडी के एक सियासी ग्रुप में स्थानीय मंगल ग्रह के नेता ने पोस्ट डाला कि इस ग्रुप में शामिल सभी 15 लोगो में हर एक के पास 100 वोट है।

अब आपको हंसी इस बात पर इसलिए आ जानी चाहिए कि वर्ष 2017 के पार्षद चुनावों में इस ग्रुप में शामिल लोग भी सियासत का परचम लहरा रहे थे। उस समूह के अधिकतर लोगो का सम्बन्ध छात्तातले से था। उस समय सपा प्रत्याशी को इस बूथ से मिले वोटो की संख्या दहाई का आकडा भी पार नही कर पाई थी। जब दावा 1500 मत का हो और मिलने वाला मत दहाई के आकडे भी पार न कर पाए तो हंसा जा सकता है। वैसे ये पूरी मेरी पोस्ट मस्ती से सराबोर आपको थोडा हसाने के लिए ही है। मौज ले और सोचे सिर्फ इतना कि “गरीबो की थाली में पुलाव आ गया, जियो मेरे राजा, लगता है मेरे शहर में चुनाव आ गया।”

बहरहाल, आज कल दालमंडी में पिछले दिनों से एक सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिये सपा के अन्दर चल रही रार खुल कर सामने आ गई है। ताना तरीज़ी की हद तो इतनी है कि सास बहु के झगड़े को भी शरम आने लगे। सास बहु के झगड़े क्या सौतन की सहेली वाले ताने भी इसके सामने फीके पड़ जायेगे। सोशल मीडिया की पोस्ट में ताना खाने की दावत तक का मारा गया है। वैसे नाम किसी नेता का नही लिखा गया मगर समझदार को इशारा काफी होता है। सबसे बड़ी बात जिस नेता को ताना मारा गया उस पोस्ट पर नेता जी के समर्थक खुद को कहने वाले लोग ही “राईट” और “100% राईट” जैसे कमेन्ट दे रहे है। इस विवाद की जड़ जब पता किया तो मामला ऐसा सामने आया कि कामेडी सर्कस के कामेडियन भी इसके ऊपर हँसे बिना नहीं रह पायेगे।

क्या था प्रकरण में “मूल मामला”

मूल मामला असल में काफी मामूली था। हुआ कुछ इस प्रकार से था कि एक युवक को “खिचड़ी” वाले रोज़ चौक पुलिस ने चाईनीज़ मंझे सहित पकड़ लिया था। अर्श और फर्श एक कर दिया लोगो ने कि उस लड़के को छोड़ा लिया जाए। मगर चौक इस्पेक्टर के सामने एक नही चली और मामले में मुकदमा दर्ज हुआ। एक स्थानीय “नेता टाइप” युवक जिनका खुद इसी थाने पर अपराधिक इतिहास है और 307 जैसा मामला उनके ऊपर दर्ज है प्रकरण में पैरवी कर रहे थे। उधर पुलिस ने साफ़ साफ़ कह दिया कि बिना मुकदमा दर्ज किये कोई बात नही होगी।

अब “नेता किस्म” युवक ने मामले में सपा के एक कद्दावर नेता को फोन किया और सहयोग माँगा। ये कद्दावर नेता सपा के विधानसभा टिकट के मुख्य दावेदारों की लिस्ट में से एक है। नेता जी अपने कार्यकर्ता की आवाज़ सुनकर आते है और बात भी करते है। पुलिस ने साफ़ साफ़ उनको कहा कि नियमो के अनुसार कार्यवाही होगी। नेता जी समझदार थे और चाईनीज़ मंझे जैसे मामले में ढेर लबर लबर नही करना चाहते थे। वह बाहर आते है और कह कर चले जाते है कि पुलिस चलाना करेगी उसके बाद छुडवा दूंगा। मगर “नेता किस्म” के कार्यकर्ता के द्वारा इस मामले को अपनी “अना” से जोड़ दिया गया और उनको बुरा लगा कि जिस टिकट के दावेदार को हम बुला कर खाने की दावत देते है वह छुड्वाया नही।

फिर “नेता किस्म के कार्यकर्ता” ने पैतरा बदला और इस मामले में शाम को सपा के टिकट के एक अन्य दावेदार को फोन किया और समस्या बताई। वह “अन्य दावेदार” कुछ देर बाद थाने पर आते है। काफी लम्बे समय तक जब तक पुलिस लिखा पढ़ी पूरी नही हो जाती है थाने पर ही रहते है और आखिर में जैसे नियमानुसार पुलिस निजी मुचलके पर ऐसे मुकदमो में छोडती है वैसे ही पुलिस ने कार्यवाही के बाद निजी मुचलका भरवा कर छोड़ा। तब तक नेता जी थाने पर ही थे। युवक छुट जाता है और अपने घर सब नेता लोगो को धन्यवाद् देते हुवे चला जाता है। इसके बाद से “नेता किस्म के कार्यकर्ता” को बात काफी बुरी लग जाती है और उनकी “अना” पर बात बन आती है।

“खाने की दावत” तक का दिया सोशल मीडिया पोस्ट पर “ताना”   

अब नेता किस्म के कार्यकर्ता को “जलाल” आ गया। उनको गम इसका खाए जा रहा था कि जिस टिकट के दावेदार को वह दावत देते थे वह टिकट का दावेदार एक अपराधिक कृत्य में युवक को छुडाने के लिए थाने पर रुका क्यों नही? बस इस “अना” से टिकट के दावेदार “फना” होने के कगार पर पहुच जाते है। सोशल मीडिया पर पोस्ट पड़ती है और जमकर ताने दिए जाते है। “खून दिया” से लेकर सायकल चलाया तक का ताना मार दिया।

पोस्ट में लिखा गया कि “घर घर घूम कर दावत खाने और से कार्यकर्ताओं से रक्तदान व् साईकल चलवाने एवं धरना प्रदर्शन में उन पर मुकदमा लगवाने से कोई नेता नही बनता कार्यकर्ता के कठिन परिस्थिति में उसके साथ डट कर शासन प्रशासन से मुकाबला करने वाला नेता कहलाता है।” नेता जी का दर्द इस पोस्ट में बयान हो गया और इसके ऊपर “राईट” तथा “100% राईट” जैसे कमेट भी जमकर आये। अब पोस्ट पढ़कर जिस टिकट के दावेदार पर ये ताना था उसको तो समझ में आ गया। मगर दुनिया भी समझ गई कि खाने की दावत तक का ताना मार दिया गया। अब तो खाने की दावत से भी लोग डरेगे कि न जाने कब ताना मार दे। “जाने भी दो यारो, चुनाव है मौज लो”। यहाँ समझने वाली बात ये भी है कि कार्यकर्ता अपराधिक कृत्य करे तो उसके अपराध को भी पुण्य साबित करना “टिकट के दावेदार” को ज़रूरी होगा।

मगर यहाँ “नेता किस्म के कार्यकर्ता” का दर्द समझा जा सकता है। अब उनका कहना भी ठीक है कि हम पार्टी के कार्यकर्ता है। खाने की दावत दिया है। हम अगर कोई अपराध करे तो हमारी पार्टी आकर हमको बचाए। वैसे इन्ही नेता जी पर वर्ष 2018 में हत्या के प्रयास का मामला इसी चौक थाने पर दर्ज हुआ था और उस मामले में किसी पार्टी के नेता ने सपोर्ट नेता जी का नही किया था। अपराध संख्या 119/18 में इनको जेल भी जाना पड़ा था। मगर किसी पार्टी के नेता ने नेता जी का सहयोग नही किया था, जिसका दर्द शायद अब छलक गया होगा कि कम से कम चाईनीज़ मंझा तो हमारे लोगो को बेच लेने दिया होता।

वैसे एक तरफ सरकार बनाने का दावा करती सपा के लिए ऐसे कार्यकर्ताओं की गुटबाजी उसको नुक्सान पहुचाने वाली ही हो सकती है। इस मामले में स्थानीय एक कद्दावर सपा नेता और पूर्व प्रदेश सचिव ने कहा कि “जहा चार बर्तन रहते है वह आपस में टकरा जाते है। मगर मुहब्बत कम नही हो पाती है। ये आपसी मुहब्बत है।” बहरहाल, हमने पोस्ट ऐसे ही बस आपको हसाने के लिए लिख दिया। बकिया सब खैरियत है। हमने लिखा तो हमको लिखने में हंसी आ रही है। आप पढ़ रहे है तो आपको पढ़ते समय हंसी आ रही है। ऐसे ही अपने होंठो पर मुस्कराहट बनाये रखिये। चुनाव आज है, कल खत्म हो जायेगा आपसी रिश्तो में मिठास कायम रखे। राहत साहब का एक शेर याद रखे कि “सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है, वह रोज़ा तो नही रखता मगर इफ्तारी समझता है।” इसको ध्यान रखे। वैसे भी मैं कहता रहता हु कि “गरीबो की थाली में पुलाव आ गया, देखो मेरे शहर में चुनाव आ गया।”

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