पलिया विधानसभा 137: क्या सियासी ज़मीन खो रही है इस विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी को लेकर पार्टी के भीतरखाने में ही चल रही है विरोध की लहर

फारुख हुसैन

लखीमपुर खीरी। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर जहां गहमागहमी का माहौल देखा जा रहा है तो वहीं चुनाव की सरगर्मियां भी बढ़ती दिखाई दे रही है। विभिन्न पार्टियों के आलाकमान के द्वारा उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के विधानसभा क्षेत्रों के प्रत्याशी भी मैदान में उतार दिए गए हैं। पार्टियां लगातार अपने प्रत्याशियों को दिशा निर्देश दिखाई देती दिखाई दे रही हैं कि किस तरह से उनको जीत का सेहरा बांधने को मिलेगा। लेकिन उत्तर प्रदेश का बहुचर्चित जिला लखीमपुर खीरी जो कि आजकल पूरे देश में तिकुनिया कांड को लेकर चर्चा में बना हुआ है ऐसे में सभी पार्टियों के आलाकमानों की नजर सबसे ज्यादा जिले पर दिखाई दे रही है।

यदि जिले के पलिया विधानसभा 137 की बात करें तो विधानसभा 137 में कांग्रेस पार्टी के हाईकमान के द्वारा क्षेत्रवासियों के मन का प्रत्याशी मैदान में ना उतारने को लेकर क्षेत्रवासियों में ही नहीं बल्कि कांग्रेस के भीतर खाने में भी गहरा आक्रोश देखने को मिल रहा है। जिसका कहीं ना कहीं असर आने वाले मतदान में साफ तौर पर देखने को मिल सकता है। जानकार तो यहाँ तक कह रहे है कि प्रियका गांधी ने तिकुनिया कांड के बाद जो लीड लिया था वह लीड प्रत्याशी के कारण पीछे छुट गई है।

प्रियंका गांधी ने सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में महिलाओं को प्रत्याशियों के रूप में मैदान में उतारा है, जिससे कि पार्टी की पैठ उत्तर प्रदेश में मजबूत हो सके। लेकिन वही पार्टियों के द्वारा चुने गए प्रत्याशियों को लेकर पार्टी के अन्दर खाने में ही सियासत और विरोध तेज़ हो चूका है। काफी चर्चित नेता और कार्यकर्ता इस विरोध के कारण शांत घरो में बैठ गए है और पार्टी के काम ही नही कर रहे है। जो पार्टी के सियासी ज़मीन को खिसकते हुवे दिखाई दे रही है।

देखा जाए तो पलिया विधानसभा 137 में कांग्रेस पार्टी के कई उम्मीदवार काफी वक्त से क्षेत्र में अपने वर्चस्व और पार्टी के वर्चस्व को बनाए रखने को लेकर लगातार मेहनत करते तो दिखाई दे रहे थे, जिसमें साफ तौर पर स्थानीय निवासी बलराम गुप्ता, जिन्होंने विधानसभा क्षेत्र में क्षेत्र वासियों के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई थी ओर दूसरी तरफ सैफ अली नकवी जो किसानों से लेकर मुस्लिम समुदाय व अन्य समुदायों के बीच पहुंचकर अपनी पैठ बनाने में सफल हुए थे, उनको किनारे करने से पार्टी को अभी नुक्सान होता दिखाई दे रहा है।

सबसे अधिक गौर करने वाली बात यह सामने आ रही है कि जहां क्षेत्र में काफी मेहनत करने के बावजूद भी सैफ अली नकवी व बलराम गुप्ता को पार्टी के द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद जहां बलराम गुप्ता के द्वारा निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की गई थी लेकिन कहीं ना कहीं पार्टी के द्वारा दबाव पडने को लेकर वह प्रत्याशी का साथ निभाने के लिए जरूर जुड़ गए हैं, लेकिन यदि सूत्रों की बात करें तो अभी भी वह पूर्ण रुप से पार्टी का सहयोग करते तो नही ही दिखाई दे रहे है। वहीं पार्टी के द्वारा बेहतर प्रत्याशी नहीं चुने जाने को लेकर कई कांग्रेसी पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ता भी प्रत्याशी से दूरी बनाते हैं नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के भीतर खाने में चल रही इस खामोश विरोध के लहर ने दुसरे दलों को अधिक फायदा देती दिखाई दे रही है।

विधानसभा के पिछले दो चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी यहां मुख्य मुकाबले में भी नहीं पहुंच पाए थे। देखा जाए तो 2012 के विधान सभा चुनाव में पलिया विधानसभा क्षेत्र से रोमी साहनी ने बहुजन समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा था और 55480 वोट प्राप्त कर जीत हासिल की थी। जबकि दूसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी कृष्ण गोपाल पटेल रहे और 49541 मत प्राप्त किये थे। कांग्रेस प्रत्याशी आसपास भी नही रहे। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा के बैनर तले रोमी साहनी ने 118069 मत प्राप्त कर जोरदार जीत दर्ज की थी। जबकि  काँग्रेस प्रत्याशी सैफ अली नकवी को केवल 48841 वोट हासिल हुए थे। वो भी तब जब कांग्रेस का गठबंधन सपा के साथ था। अगर गठबंधन के मतों को जोड़े तो कांग्रेस प्रत्याशी को मिले मत उनके दूसरी पोजीशन को इमानदारी से प्रस्तुत तो नही कर रहे है।

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