तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ (भाग-1): सियासत मुस्कुरा कर दामन बचा रही है, जवाब कोई देना नही चाहता, फिर वाराणसी जनपद में मांस कारोबार से जुड़े इन 25 हज़ार परिवारों का दर्द आखिर कौन दूर करेगा?
तारिक़ आज़मी
वाराणसी। उत्तर प्रदेश सूबे का सियासी माहोल अपने शबाब पर है। सियासत अपने तरफ वोटरों का रुझान करने में कोई कसर नही छोड़ रही है। हर तबके के बारे में सियासत कुछ न कुछ नया करने का एलान कर रही है। कोई मुफ्त बिजली देने का वायदा किसी एक वर्ग को कर रहा है तो कोई लैपटॉप और अन्य सुविधाओं की बाते कर रहा है। मगर इन सबके बीच एक तबका और भी है जिसके ऊपर आज तक सियासत की नज़र ही नही गई है। वह तबका है “कुरैश” समाज। ये वह तबका है जो मांस कारोबार से जुडा हुआ है।
मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग कुरैश समाज है। इसका प्रमुख कारोबार मांस का होता है। मांस के कारोबार से कभी एक समय था कि कुरैश समुदाय अपनी आजीविका अच्छी तरीके से चलाता था। यही नही इनके कारोबार के सहारे एक एक कारोबारी के साथ लगभग दस और लोगो का कारोबार चलता था। जैसे ट्राली वाले, कारीगर आदि। मगर समय की मार इस समाज पर वर्ष 2016 से शुरू हुई। कारोबार को तत्कालीन सरकार ने कुछ बंदिशों में किया और फिर वर्ष 2017 में इस कानूनी कारोबार को लगभग बंद कर दिया गया। वजह थी “स्लाटर हाउस को मानक के अनुसार बनाने की।” जिसके बाद इस समाज का कारोबार बुरी तरीके से प्रभावित हुआ।
अगर जनपद की बात करे तो कुरैश समाज का पुरे जनपद में लगभग 30-35 हज़ार परिवार है जिसका मुख्य कारोबार मांस बिक्री का है। अब इस कारोबार के भरोसे पलने वाले परिवार की गिनती करे तो हर एक कारोबारी का अपना एक ट्राली वाला और कम से कम एक कारीगर होता है। जिसके बाद अगर जोड़े तो मांस कारोबार के सहारे जनपद में एक लाख से अधिक परिवार का भरण पोषण होता है। मगर वर्ष 2017 से इस कारोबार पर बंदिशे शुरू हुई और वाराणसी का स्लाटर हाउस बंद हो गया। इसके पूर्व वर्ष 2016 तक नगर निगम मांस कारोबार का लाइसेंस जारी करता था। मगर वर्ष 2016 के बाद इस कार्य को फ़ूड एंड सेफ्टी विभाग को हस्तांतरित किया गया। फ़ूड एंड सेफ्टी विभाग के द्वारा लाइसेंस आज तक किसी का जारी ही नही हुआ और कारोबार पर मंदी और अन्य मुसीबतों का दौर शुरू हुआ।
कुरैश समाज के तरफ से हाईकोर्ट की भी शरण लिया गया। अदालत ने हुक्म भी दिया कि पर्यावरण नियमो को ध्यान में रखकर स्लाटर हाउस का निर्माण किया जाए। निर्माण कार्य शुरू भी हुआ मगर अन्धुरे में ही लटक गया। इसका कई कारण निकल कर सामने आता है। विवादित कारणों पर तो हम बात नही करेगे मगर मुख्य कारण था कार्यदाई संस्था को समय से भुगतान न होना। वाराणसी के पक्की बाज़ार में निर्माणाधीन इस स्लाटर हाउस का कार्य लगभग 80 फीसद पूरा हो चूका है। मगर बकिया काम अधर में लटका हुआ है।
वाराणसी ही नहीं आसपास के जनपदों को मिल सकता है इस स्लाटर हाउस से सहारा
गौर से अगर देखे तो वाराणसी के पक्की बाज़ार में स्लाटर हाउस का निर्माण पूरा हो जाने से जनपद ही नही आसपास के जनपद में भी मांस कारोबार दुबारा जीवित हो उठेगा। जैसे चंदौली, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, भदोही जैसे जनपद जो वाराणसी से महज़ 2 से तीन घंटे की दुरी पर है। अगर पक्की बाज़ार का स्लाटर हाउस चालु होता है तो इन जनपदों में मांस कारोबार का लाइसेंस भी आसानी से जारी हो सकता है और 4 से 5 लाख परिवार के रोज़ी का जरिया दुबारा बन सकता है। फ़ूड एंड सेफ्टी विभाग में हमारी बात से इस बात का निष्कर्ष भी निकला कि यहाँ से लाकर उन जनपदों में भी मांस कारोबारी अपना कारोबार कर सकते है।
नहीं है पूर्वांचल में एक भी स्लाटर हाउस
पूर्वांचल में न तो सरकार और न ही निजी कोई स्लाटर हाउस है। एक बड़े प्रोजेक्ट पर पैसे लगाने की चाहत और एनओसी जैसे जंजाल से कोई भी कारोबारी हमेशा बचता ही दिखाई दिया है। आज भी बचता दिखाई दे रहा है। किसी भी व्यापारी ने खुद का अपना स्लाटर हाउस बनवाने हेतु प्रयास भी नही किया। जिसके कारण सभी की निगाहें पक्की बाज़ार के निर्माणाधीन स्लाटर हाउस पर टिकी है। मगर इसका निर्माण जिस प्रकार से रुका हुआ है उसको देख कर लगता ही नही कि निर्माण कार्य जल्द पूरा हो सकेगा।
भोला है कुरैश समाज, नही है सियासी सुझबुझ
दरअसल “कसाई” शब्द जितना क्रूर समझ में आता है, वैसा है नही। ये समाज काफी भोला और दबा हुआ है। कभी किसी हुक्म के तले दब जाता है तो कभी किसी फरमान के उदूली न होने का डर इसको सताता है। असल में ये पूरा समाज काफी भोला और डरा हुआ है। सियासी सुझबुझ और रहनुमाई की कमी भी इस समाज को है। बेशक कुछ इस वर्ग के लोग सियासत में ज़रूर है मगर उनका फायदा इस समाज को आज तक कितना मिला है ये जग ज़ाहिर है। एक वैध कारोबार को चोरी छिपे करना आज इस समाज की मज़बूरी है। खुद का पैसा, खुद की मेहनत लगा कर कारोबार करने वाले इस समाज के वैध कारोबार को भी आज अवैध का ठप्पा तो लगा हुआ ही है। सियासी रहनुमाओं ने इनका इस्तेमाल सिर्फ अपनी सियासत चमकाने के लिए किया ये कहना कही से गलत नही होगा। मगर इस समाज के लिए किसी ने कुछ किया ऐसी कोई नजीर सामने तो नही दिखाई दे रही है।
कुरैश समाज ने अपने अधिकारों की मांग काफी उठाई। उनके लिए उनका साथ देने कोई भी सियासी दल सामने नही आया। इस दरमियान समाजसेवा से जुड़े कुछ लोग कुरैश समाज के लिए खड़े हुवे। हमारी बात गांधीवादी विचारधारा के समाज सेवक मनीष शर्मा से हुई। मनीष ने भी इस समाज के लिए लड़ाई लड़ी। कई बैठक अधिकारियों के साथ हुई। कई बार इस मामले में बातचीत हुई। इसी दरमियान मनीष शर्मा के ऊपर मुक़दमे भी होते है। जिसके बाद से कुरैश समाज की आवाज़ लगभग दब सी गई है।
मनीष ने हमसे बात करते हुवे बताया कि कुरैश समाज असल में काफी भोला और सियासी रहनुमाई से वंचित समाज है। बुनकर समाज अपना सामाजिक और राजनैतिक हक जानता है। मगर कुरैश समाज के पास न तो सियासी रहनुमाई है और न ही यह भोला समाज अपने हक़ के लिए लड़ भी नही पाता है। इसकी आवाज़ उठाने वाला भी कोई नही है। इसी कारण आज भी इस समाज को मुलभुत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। अगर वाराणसी के पक्की बाज़ार का स्लाटर हाउस शुरू हो जाता है तो बेशक पूर्वांचल के लाखो परिवार की रोज़ी रोटी का जरिया बन जायेगा। क्रमशः – भाग2