अपराध है उसकी सहेली, वाराणसी पुलिस कमिश्नरेट के लिए है “बीकेडी” आज भी एक पहेली, फ़िल्मी अंदाज़ जैसा है इस अपराधी का जीवन, जाने कैसे मर्चेंट नेवी में काम करने वाला इन्द्रदेव सिंह बन गया “बीकेडी”  

तारिक़ आज़मी

नाम इन्द्रदेव सिंह, प्यार से अथवा खौफ से लोग उसको बीकेडी कहते है। नाम तो सुना ही होगा आपने। पुलिस विभाग में इसकी कोई तस्वीर नही है। सिर्फ चंद पुलिस वाले इसको पहचान सकते है। जिसमे शिवानन्द मिश्रा अनिरुद्ध सिंह और विक्रम सिंह जैसे नाम है। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसका हुलिया कुछ इस प्रकार है कि कद पांच फिट 6 इंच, रंग गोरा, छरहरा बदन, सर पर बाल नही मगर चेहरे पर रौब दमदार है। सिर्फ नाम ही काफी है बीकेडी के खौफ को ज़ाहिर करने के लिए। अपराध की दुनिया में आज ये बेताज बादशाह के तौर पर है। “ये कहा है,? क्या करता है? क्या सोचता है?” ये आज तक पुलिस महकमे के लिए एक पहेली की तरह है।

पुलिस के पास इसके ठिकानों का केवल एक अंदाज़ है। आज तक पुलिस के हत्थे न पड़ने वाला बीकेडी पुलिस के लिए एक अबूझ पहेली है। नाम और पहचान बदलने में माहिर बीकेडी पर पुलिस ने एक लाख का इनाम घोषित कर रखा है। मगर बीकेडी कहा है ये किसी को नही मालूम। वैसे पुलिस ये भी मानती है कि बीकेडी के पास आधुनिक असलहे भी है। सतीश सिंह की हत्या हुई और अजय खलनायक पर जानलेवा हमला हुआ। इसके बाद बृजेश के करीबी और उसका काम संभालने वाले राम बिहारी चौबे की हत्या कर दी गई। बृजेश के एक अन्य करीबी सतेंद्र सिंह की भी हत्या हुई। इन सभी में इंद्रदेव सिंह उर्फ बीकेडी का नाम आया।

पुलिस के पास बीकेडी को लेकर सिर्फ अंदाज़ ही है। वाराणसी तहसील परिसर में मारे गए नितेश सिंह बबलू की तेरही पर कई बाहुबली के शामिल होने की चर्चा रही। पुलिस सूत्रों के अनुसार तेरहवीं में एक लाख के इनामी इंद्रदेव सिंह उर्फ बीकेडी के भी शामिल होने की चर्चा रही। लेकिन पुष्टि नहीं हो सकी। वही मुन्ना बजरंगी के मारे जाने के बाद से बीकेडी द्वारा गैंग को सँभालने की बाते भी फिजाओं में रही। पुलिस सूत्र का कहना है कि पुलिस को भी इस बात की जानकारी हुई है। मगर कोई पुष्टि इस बात की नही हुई है। बीकेडी के लिया पुलिस अँधेरे में तीर चलाने जैसे काफी प्रयास कर चुकी है मगर सफलता शुन्य हाथ है। कभी पुलिस बीकेडी को नेपाल भाग जाना मानती है तो कभी हरियाणा में इसका अड्डा होने की बात करती है। कभी विश्वास नेपाली से इसके मधुर सम्बन्ध की बात होती है तो कभी अज़ीम उर्फ़ डाक्टर से मधुर सम्बन्ध होने की बात होती है। मगर ये सब सिर्फ एक कयास ही है। पुख्ता पुलिस के पास कुछ नही है। सभी सूत्र भी इसके आगे फेल हो जाते है, वैसे सूत्रों की माने तो बीकेडी फिलहाल हरियाणा में अपने पाँव जमाए हुवे है। मगर इसको पुष्ट जानकारी नही माना जा सकता है।

नाऊपुर गाँव में खेलकूद कर बड़ा हुआ था बीकेडी

पहचान की बात पर पुलिस इससे काम चला लेती है कि बीकेडी को शिवानन्द मिश्रा, अनिरुद्ध सिंह विक्रम सिंह पहचानते है। मगर एक स्केच आर्टिस्ट के साथ बैठ कर उसका स्केच तक पुलिस के पास नही है ये भी एक हकीकत है। नाऊपुर में जाकर पुलिस ने काफी पूछताछ किया ये सच है। मगर नाऊपुर में पुलिस को बीकेडी का कोई बचपन का दोस्त या फिर तस्वीर भी नही मिल सकी। पुलिस के पास एक दो नही बल्कि 42 इसके शरणदाताओं की पूरी लम्बी लिस्ट है, जिसमे पत्रकार से लेकर नेता तक है। मगर पुलिस के पास अगर नही है तो इसका सुराग।फिर भी पुलिस इसको जल्द पकड़ लेने का दावा करती है। क्राइम कंट्रोल के नाम पर एक दुसरे को कमतर दिखाने की और अधिकारियो के नज़र में दुसरे साथी कर्मी को कम दिखाने की कोशिश में ही लगे क्राइम एक्सपर्ट के तौर पर मशहूर काफी लोगो को इसके नाम “बीकेडी” के मायने तक नही मालूम है। सूत्रों से मिली एक जानकारी इस अपराधी पर पुलिस की लगाम को बता देगी कि पुलिस इसको पकड़ने में कितनी संजीदा है। तत्कालीन कप्तान अमित पाठक ने एक बार क्राइम मीटिंग में अपने मतहतो से बीकेडी के मायने पूछ लिया था तो मीटिंग में बैठे लोग इसके मायने तक नही बता सके थे। ये जानकारी हमको हमारे पुलिस सूत्र ने उपलब्ध करवाया था।

पुलिस इसके गैंग पर कार्यवाही की बात तो करती है। गैंग के सदस्यों के तौर पर पुलिस के पास एक और लिस्ट है जिसमे सतीश सिंह, पंकज सिंह, रणधीर यादव, नामवर यादव, मनोज सिंह, मंगला मिश्रा, लल्लन, राजूसिंह, छोटे सिंह, छब्बू सिंह, राघवेन्द्र प्रताप, वरुण सिंह, राजेश यादव, अमित ठाकुर और प्रभात सिंह के नाम शामिल है। मगर ये भी हकीकत है कि इनसे जानकारी लेकर एक तस्वीर नही बनाया जा सका है।

क्या है बीकेडी के मायने 

इन्द्रदेव सिंह बीकेडी बन गया है इसकी जानकारी तो पुलिस को है, मगर इस बीकेडी के मायने क्या होते है ये सवाल का जवाब काफी पुलिस कर्मियों के पास नही है। बीकेडी के पिता हरिहर सिंह ने एक राजनैतिक दल का निर्माण किया था, जिसके नाम “भारतीय किसान दल” था। कुछ लोग इस नाम का शार्ट कट बीकेडी बताते है। मगर दूसरी हकीकत ये भी है कि शायद या फिर पक्का बीकेडी का मायने ये नही है। बीकेडी उर्फ़ इन्द्रदेव सिंह के करीबियों ने पुलिस को इसका मायने “बृजेश का दुश्मन” बताया था। मगर पुलिस के रिकार्ड में ये बात दर्ज कभी नही रही। वैसे इस नाम के मायने यही होता है कि पुष्टि इससे भी होती है कि बीकेडी खुले तौर पर बृजेश सिंह को अपना दुश्मन मानता है।

कौन है बीकेडी ? कैसे मर्चेंट नेवी का जवान “इन्द्रदेव सिंह” बन गया बीकेडी

पुलिस सूत्रों के अनुसार इन्द्रदेव सिंह के बीकेडी बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। एक एक्शन थ्रिलर की तरह इसके जीवन का उतार चढ़ाव है। स्व मुन्नी देवी और स्व हरिहर सिंह थाना चौबेपुर के धरहौरा ग्राम के निवासी थे। परिवार का अच्छा रुतबा समाज में था। समाज में सम्मान के नज़र से परिवार देखा जाता था। इनके चार बेटे थे। बड़े लड़के का नाम इंद्र प्रकाश सिंह उर्फ़ पांचू था। दुसरे नम्बर पर था सत्यदेव उर्फ़ साचु और तीसरे नंबर पर था इन्द्रदेव सिंह उर्फ़ बीकेडी तथा चौथे नम्बर पर सिद्धार्थ सिंह उर्फ़ सीकेडी। बचपन से ही बीकेडी अपने फूफा अभयजीत सिंह और बुआ सुरमा देवी के पास ही रहा, जहा उसकी शिक्षा दीक्षा होती थी। बुआ सुरमा देवी का एक ही बेटा है गोपाल जो आँख और कान से माज़ूर है। बीकेडी ने बुआ के घर थाना केराकत के थानागद्दी क्षेत्र स्थित ग्राम जखिया नाऊपुर में रहकर हाई स्कूल तक की शिक्षा ग्रहण किया।

पुलिस रिकार्ड के अनुसार वर्ष 1985 में बीकेडी के पिता हरिहर सिंह की हत्या माफिया डॉन बृजेश सिंह के गैंग द्वारा कर दिया गया था। इसका असर ये पड़ा कि पांचू उर्फ़ इंद्रप्रकाश सिंह ने अपराध का रास्ता अपना लिया। इधर बीकेडी पिता के हत्या के बाद से दबंग किस्म का हो गया। इसका साथ संगत अपराधी किस्म के लोगो के साथ हो गया। लड़ाई-झगडा आम बात हो चुकी थी। हाई स्कूल पास होने के बाद इन्द्रदेव सिंह उर्फ़ बीकेडी ने मुंबई में मर्चेंट नेवी ज्वाइन कर लिया और वही रहने लगा था। तभी वर्ष 1999 के जनवरी माह के 11 तारिख को थाना सारनाथ क्षेत्र में बंशी सिंह और बीकेडी के बड़े भाई पाचू की पुलिस से मुठभेड़ हो गई। इस मुठभेड़ में पांचू सिंह भी मारा गया। यहाँ एक बात गौर करने लायक है कि जिस समय पांचू सिंह मुठभेड़ में मारा गया था उस समय तक पुलिस के सोर्सेस कहते है कि पांचू सिंह के पास एके सीरिज़ की रायफल थी। जबकि मुठभेड़ के बाद पुलिस को वह रायफल बरामद नही हुई थी।

भाई का सुना एनकाउंटर तो इन्द्रदेव सिंह बन बैठा “बीकेडी”

पुलिस रिकार्ड के अनुसार अपने बड़े भाई पांचू के एनकाउंटर की खबर सुनकर बीकेडी जो तब तक इन्द्रदेव सिंह ही था, मर्चेंट नेवी की नौकरी छोड़ कर वापस आ गया। इन्द्रदेव सिंह को शक था कि पाचू के एनकाउंटर की मुखबिरी अजय सिंह खलनायक और सतीश सिंह के द्वारा किया गया था। इन्द्रदेव सिंह ने वापस आकर अपना मुख्य अड्डा गाजीपुर जनपद को बनाया और यही उसने अपना नामकरण किया बीकेडी। वर्ष 2013 तक बीकेडी गाजीपुर जनपद में रहकर अपने गैंग को बढ़ा रहा था। इस दरमियान अपने खर्चो हेतु वह छोटे मोटे ठेके भी ले रहा था। ठेकेदारी में उसने अपना नाम दिनेश रखा था और समान्तर खुद का गैग खड़ा कर लिया।

अजय खलनायक पर हुवे जानलेवा हमले के बाद मौके पर तफ्तीश करती पुलिस

इस गैंग में नामवर सिंह जैसे शूटर थे। वर्ष 2013 में बृजेश सिंह के तिहाड़ जेल स्थानांतरण के बाद से इन्द्रदेव सिंह ने अपना नामकरण बीकेडी जगजाहिर करते हुवे 4 मई 2013 को देर शाम टकटकपुर रोड पर अजय सिंह खलनायक पर जानलेवा हमला किया। ये हमला उस समय हुआ जब अजय खलनायक अपनी पत्नी के साथ जा रहा था। एक साथ कई गोलियां चलाई गई थी। शहर उस समय गैंगवार के दहशत से खौफजदा हो गया था। इसके बाद इस घटना में शामिल लोगो की शिनाख्त पुलिस ने इंद्रदेव सिंह, राजेश सिंह, वरुण सिंह, राकेश यादव, बिरादर यादव, नामवर सिंह सहित सात लोगों के रूप में किया था। जिसमे से राघवेन्द्र सिंह को पुलिस ने दुसरे दिन ही गिरफ्तार कर लिया था। इसके कुछ समय बाद वरुण सिंह ने अदालत में सरेंडर कर दिया था। इसके बाद एक लम्बी ख़ामोशी के बाद 2014 के जुलाई में नामवर सिंह को जब एसटीऍफ़ ने गिरफ्तार किया तो नामवर सिंह ने सतीश सिंह हत्याकाण्ड का भी खुलासा किया था। इस मामले में पुलिस को बड़ी सफलता हाथ नही लगी थी और बीकेडी की परछाई तक उसके हाथ नही लगी थी। राघवेन्द्र के पास से भले पुलिस ने विदेशी पिस्टल बरामद किया था मगर इसको बहुत बड़ी उपलब्धी के तौर पर नही देख सकते है।

अजय खलनायक गोली कांड में गिरफ्तार हुआ था राघवेन्द्र

शुरू में बीकेडी अपने साथियों के लिए भी एक अबूझ पहेली की तरह था। जब 2008 में चौबेपुर के मनीष सिंह का अपहरण हुआ था तो उसमे बीकेडी भी शामिल था। इस अपहरण में गैंग के अन्य सदस्य इसको दीपक नाम से जानते थे। पुलिस रिकार्ड के अनुसार बीकेडी की शादी कैमूर में हुई। अभी तक पुलिस के हाथ बीकेडी के कालर तक नही पहुच पाए है। पुलिस मानती है कि बीकेडी के शरणदाता काफी है। पुलिस रिकार्ड के अनुसार 3 दर्जन से अधिक शरणदाता है। जिनमे नेता से लेकर कथित पत्रकार तक है। मगर पुलिस के पास इन जानकारियों के अलावा कोई तस्वीर तक नही है।

कितना गंभीर है पुलिस बीकेडी के खिलाफ

पुलिस कागजों पर तो काफी गंभीर है बीकेडी के खिलाफ, मगर हकीकत में देखे तो पुलिस की गंभीरता शुन्य नज़र आती है। पुलिस ने आज तक नाऊपुर में बीकेडी का बचपन नही तलाशा। पुलिस को मालूम है कि बीकेडी ने कैमूर जनपद में विवाह किया है, इसकी पत्नी अक्सर अपने मायके रहती है, मगर पुलिस ने आज तक रिकार्ड में उसका नाम तक दर्ज नही किया है। पुलिस रिकार्ड तलाशने की बात करती है मगर बीकेडी के आय के श्रोत पुलिस को अभी तक कन्फर्म नही है। फिर भी पुलिस इसकी गिरफ्तारी के लिए गंभीर है। परीक्षा करवाने से लेकर वीआईपी मूवमेंट और सड़क पर लगा जाम खाली करवाने वाली वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस के पास आखिर वक्त ही कहा है ऐसे शातिर अपराधियों के सम्बन्ध में सूचनाये एकत्र करने के लिए ?

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